गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: धरती पर प्रकृति का आपातकाल!

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 6, 2019 08:18 AM2019-12-06T08:18:03+5:302019-12-06T08:18:03+5:30

देश में पर्यावरण, प्रदूषण, वन, नदी, जल, वन्य-जंतु, समुद्र, पर्वत आदि को लेकर अनेकानेक सरकारी महकमे बने हुए हैं जिनमें मंत्नी और बड़े-छोटे अधिकारी वर्ग का भारी लाव-लश्कर भी कार्यरत है.

Girishwar Mishra's blog: Nature's Emergency on Earth! | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: धरती पर प्रकृति का आपातकाल!

गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: धरती पर प्रकृति का आपातकाल!

Highlights देश की राजधानी दिल्ली कुछ वर्षो से ‘स्मॉग’ ङोलने को विवश है. बावजूद इसके कि प्रदेश और देश की उच्च से उच्च सभी विधायी और कार्यपालक व्यवस्थाएं यहीं आवासित हैं

 देश की राजधानी दिल्ली कुछ वर्षो से ‘स्मॉग’ ङोलने को विवश है.  बावजूद इसके कि प्रदेश और देश की उच्च से उच्च सभी विधायी और कार्यपालक व्यवस्थाएं यहीं आवासित हैं, कुछ भी हो नहीं पा रहा है और प्रकृति के हाल पर सब कुछ छोड़ दिया जाता है. उच्चतम न्यायालय की तल्ख टिप्पणी कि ‘सांसों से महरूम कर आप लोगों को गैस चेंबर में रख कर क्यों मारना चाहते हैं, उन्हें विस्फोटक से ही उड़ा दें’ का भी किसी पर असर नहीं हुआ, सिवाय इसके कि राजनीतिज्ञों को एक-दूसरे के सिर पर ठीकरा फोड़ने का एक मौका जरूर हासिल हो गया. देश और प्रदेश के मंत्नी और नेता अपने स्वाभाविक नित्य कर्म ‘तू-तू मैं-मैं’  में लग गए.

देश में पर्यावरण, प्रदूषण, वन, नदी, जल, वन्य-जंतु, समुद्र, पर्वत आदि को लेकर अनेकानेक सरकारी महकमे बने हुए हैं जिनमें मंत्नी और बड़े-छोटे अधिकारी वर्ग का भारी लाव-लश्कर भी कार्यरत है. हम मुस्तैदी से समस्या के समाधान पर विचार करने और उस विचार पर योजना तैयार करने के लिए तमाम सेमिनार और गहन विचार-विमर्श करते ही रहते हैं. इनकी रपटें भी यदा-कदा प्रकाशित होती हैं. मंत्निगण इन सबसे कृतकृत्य रहते हैं. दूसरी ओर धरती, हवा, पानी, पेड़-पौधे और आदमी सब का स्वास्थ्य दिनोंदिन बिगड़ता ही जा रहा है. विकराल होता प्रदूषण इन सबसे बेखबर अपनी जगह ज्यों का त्यों सिर्फ काबिज ही नहीं है उसमें निरंतर इजाफा दिख रहा है.

अन्न हो या सब्जी, दूध हो या पानी, दवा-दारू या फिर हवा हो, आप जो भी ग्रहण करते हैं सभी में मिलावट और जहरीले रासायनिक तत्वों के सहारे बीमारी के प्रत्यारोपण का कार्य नियमित रूप से चल रहा है. सभी निरुपाय हैं. धनी लोग ‘ऑर्गेनिक फूड’ और ‘एयर प्यूरिफायर’ और आरओ से आगे बढ़कर विशेष तरह के जल शोधक के उपयोग जैसी युक्तियों का लाभ उठा लेते हैं पर अधिकांश लोग त्नस्त ही हैं. आज जिस तरह कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप आदि रोग तेजी से बढ़ रहे हैं उसका  गहरा संबंध  पर्यावरण और आहार की गुणवत्ता के साथ हो रहे समझौते के साथ भी प्रतीत होता है.

पृथ्वी की पूरी प्रणाली तहस नहस होने के कगार पर पहुंच रही है. खतरे बढ़ रहे हैं और हस्तक्षेप करने  के लिए उपलब्ध  समय सीमा घटती जा रही है.  पूरी धरती के ऊपर प्रकृति का आपातकाल लगने की तैयारी हो चुकी है. न चेतने और जरूरी कदम न उठाने के घातक परिणाम होंगे.

Web Title: Girishwar Mishra's blog: Nature's Emergency on Earth!

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