ब्लॉग: सांस्कृतिक और प्रासंगिक मनोविज्ञान के पुरोधा थे दुर्गानंद सिन्हा

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: September 23, 2024 10:34 IST2024-09-23T10:32:41+5:302024-09-23T10:34:15+5:30

प्रतिरोध और नए दृष्टिकोण से विचार करने का काम जोखिम वाला भी है और अधिक श्रम की भी अपेक्षा करता है. इस तरह की पहल करने वालों में प्रोफेसर दुर्गानंद सिन्हा (1922-1998) का नाम अग्रगण्य है. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय और कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन किया था.

Girishwar Mishra Blog Durganand Sinha was the pioneer of cultural and contextual psychology | ब्लॉग: सांस्कृतिक और प्रासंगिक मनोविज्ञान के पुरोधा थे दुर्गानंद सिन्हा

प्रोफेसर दुर्गानंद सिन्हा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की स्थापना की

Highlightsप्रोफेसर दुर्गानंद सिन्हा ने पटना विश्वविद्यालय और कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन किया थाउन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की स्थापना की भारत में राष्ट्रीय मनोविज्ञान अकादमी की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी

भारत में आधुनिक विषयों का अध्ययन अंग्रेजी राज के दौरान शुरू हुआ और उनका पाठ्यक्रम प्रायः यूरोप से आयात किया गया जो भारत की ज्ञान परंपरा से विच्छिन्न रखकर आगे बढ़ा. स्वतंत्र भारत में समाज तथा व्यवहार विज्ञानों के लिए यह विचित्र चुनौती साबित हुई कि किस तरह इन विषयों के अध्ययन को भारत के लिए प्रासंगिक बनाया जाए. 

ज्ञान की राजनीति और आर्थिक वर्चस्व के साथ यूरोप और उत्तरी अमेरिका का दबदबा कुछ यों रहा कि विचार, सिद्धांत और विधि ही नहीं, अनुसंधान की समस्या को भी आयात किया जाता रहा. पश्चिम ज्ञान का केंद्र बना और बाकी औपनिवेशिक देश हाशिये पर चले गए. इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी था कि इन सचेत सजीव मनुष्य से जुड़े विषयों को समझने के लिए पूरा नजरिया (पैराडाइम) प्राकृतिक विज्ञानों, खासतौर पर भौतिक-शास्त्र की तर्ज पर विकसित किया जाता रहा. देशकाल से परे शाश्वत ज्ञान के प्रति आस्था को वैज्ञानिक विधि अपनाने से बड़ा बल मिला और भावना, विश्वास, व्यवहार, व्यक्तित्व, बुद्धि, प्रेरणा सबकुछ का अवलोकन कर इच्छानुसार अंकों में बदल कर ज्ञान-सृजन की वैज्ञानिक कार्यवाही चलती रही. स्थानीय संस्कृति को अध्ययन की परिधि से बाहर रखा गया.

उच्च शिक्षा के इस परिवेश में प्रतिरोध और नए दृष्टिकोण से विचार करने का काम जोखिम वाला भी है और अधिक श्रम की भी अपेक्षा करता है. इस तरह की पहल करने वालों में प्रोफेसर दुर्गानंद सिन्हा (1922-1998) का नाम अग्रगण्य है. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय और कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन किया था. दर्शनशास्त्र से अध्ययन आरंभ कर वह मनोविज्ञान के क्षेत्र में आए. लगभग पांच दशकों तक वे सक्रिय रहे और एक आदर्श अध्येता के रूप में सांस्कृतिक रूप से आधारित, सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण अनुसंधान के प्रतिमान स्थापित करते रहे. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की स्थापना की और इसे एक उत्कृष्ट अध्ययन केंद्र के रूप में स्थापित किया. 

उनके व्यापक दृष्टिकोण ने विभाग को अकादमिक नेतृत्व प्रदान करते हुए शिक्षण-प्रशिक्षण और अनुसंधान कार्यक्रमों, शोध पत्रिका प्रकाशन, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और अध्येताओं के व्यावसायिक विकास आदि सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया. उन्होंने लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत और अन्य विकासशील देशों के दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया. भारत में राष्ट्रीय मनोविज्ञान अकादमी की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्होंने मनोविज्ञान विषय के दायरे को भारतीय सांस्कृतिक दृष्टिकोण और वैश्विक वास्तविकताओं से जोड़ते हुए व्यापक बनाने के लिए अथक प्रयास किया. ऐसा करते हुए उन्होंने पश्चिमी मनोविज्ञान के विचारों और धारणाओं की समीक्षा की और उसे चुनौती दी. भारतीय दृष्टिकोण पर जोर देते हुए उन्होंने समकालीन विषयों और कठिनाइयों का भी गहन विश्लेषण किया. अंत: सांस्कृतिक और सांस्कृतिक मनोविज्ञान की दृष्टि को आगे बढ़ाने में विशेष योगदान दिया.

Web Title: Girishwar Mishra Blog Durganand Sinha was the pioneer of cultural and contextual psychology

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