Ganga pollution: हजारों करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी गंगा मैली क्यों?

By पंकज चतुर्वेदी | Published: November 29, 2024 05:21 AM2024-11-29T05:21:43+5:302024-11-29T05:21:43+5:30

Ganga pollution: प्लास्टिक कचरा और रासायनिक खादों में मिलने वाले कि एल्काइल फिनोल और टर्ट-ब्यूटाइल फिनोल सहित कई विषाक्त रसायनों की वजह से गंगा और उसकी सहायक नदियों की मछलियों के अंडे देने की दर में भयानक गिरावट आई है. 

Ganga pollution Why Ganga dirty even after spending thousands of crores of rupees blog Pankaj Chaturvedi | Ganga pollution: हजारों करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी गंगा मैली क्यों?

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Highlightsबात बहुत गंभीर है कि मछलियों की प्रजनन क्षमता 80 प्रतिशत तक घट गई है.डॉ. गीता गौतम का शोध बताते हैं कि रसायनों के कारण मछलियों की भ्रूण में मौत हो रही है. संरक्षण के अभी तक किए गए सभी प्रयास अमूर्त ही रहे हैं.

Ganga pollution: आस्था के केंद्र बनारस में गंगा और उससे मिलने वाली  सहायक धाराओं–वरुणा  और असि में  पारंपरिक देशी मछलियों  का मरना, उनकी संख्या कम होना  और इस इलाके में यदा-कदा  ऐसी विदेशी मछलियों का मिलना जो कि स्थानीय पर्यावरण को खतरा है, दर्शाता है कि नमामि गंगे परियोजना को अभी कागजों से ऊपर उठाकर बहुत  कुछ करना है. मछली और जल-चर  किसी भी जल धार का प्राण और मानक होते हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के  प्राणी विभाग के एक ताजा शोध में बताया गया कि जानलेवा रसायनों के कारण गंगा, वरुणा और असि नदी में सिंघी और मांगुर समेत कई देसी प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं. यह बात बहुत गंभीर है कि मछलियों की प्रजनन क्षमता 80 प्रतिशत तक घट गई है.

अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण पत्रिका ‘स्प्रिंगर’ और पुणे से प्रकाशित होने वाली भारतीय शोध पत्रिका ‘डायमेंशन ऑफ लाइफ साइंस एंड सस्टेनेबल डेवलेपमेंट’ में हाल ही में प्रकाशित शोध पत्र बताते हैं कि रसायन दवाओं, माइक्रो प्लास्टिक, डिटर्जेंट, कास्मेटिक उत्पाद, पेंट, प्लास्टिक कचरा और रासायनिक खादों में मिलने वाले कि एल्काइल फिनोल और टर्ट-ब्यूटाइल फिनोल सहित कई विषाक्त रसायनों की वजह से गंगा और उसकी सहायक नदियों की मछलियों के अंडे देने की दर में भयानक गिरावट आई है.

बीएचयू के प्राणी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर राधा चौबे, सहायक प्रोफेसर डॉ. गीता गौतम का शोध बताते हैं कि रसायनों के कारण मछलियों की भ्रूण में मौत हो रही है. गंगा देश की संस्कृति की पहचान और मानव विकास की सहयात्री है. इसके संरक्षण के अभी तक किए गए सभी प्रयास अमूर्त ही रहे हैं.

वित्त वर्ष 2014-15 से लेकर 2020-2021 तक इस नमामि गंगे योजना के तहत पहले 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का रोडमैप तैयार किया गया था जो कि बाद में बढ़ाकर 30 हजार करोड़ रुपए कर दिया गया. वहीं 2022-23 में योजना मद में 2047 करोड़ आवंटित किए गए थे. वित्त वर्ष 2023-24 में 4000 करोड़ रुपए का बजट अनुमान रखा गया.

हालांकि आवंटन केवल 2400 करोड़ रुपए का ही किया गया. वहीं वित्तीय वर्ष 2024-25 में नमामि गंगे प्रोजेक्ट के फेज दो के लिए 3500 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है. कुल मिलाकर विभिन्न नमो गंगे परियोजनाओं के तहत लगभग 37,550 करोड़ रुपए मंजूर किए गए, लेकिन रिकॉर्ड के अनुसार जून 2024 तक केवल 18,033 करोड़ ही खर्च किए गए.

अकेले सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की लागत 15,039 करोड़ रुपए है. नगरों और मानवीय क्रियाकलापों से निकली गंदगी नहाने-धोने, पूजा-पूजन सामग्री, मूर्ति विसर्जन और दाह संस्कार से निकला प्रदूषण गंगा में समा जाता है. इन सभी पर नियंत्रण करना कठिन नहीं  लेकिन जटिल जरूर है.

Web Title: Ganga pollution Why Ganga dirty even after spending thousands of crores of rupees blog Pankaj Chaturvedi

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