फहीम खान का ब्लॉग: घने हरे-भरे जंगल के लिए पहचाना जाता था गढ़चिरोली, विकास की भेंट चढ़ सकती है खूबसूरती
By फहीम ख़ान | Published: November 22, 2023 08:49 PM2023-11-22T20:49:14+5:302023-11-22T20:50:54+5:30
सरकार ने हाल ही में सुरजागढ़ पहाड़ी के अतिरिक्त 4 ब्लॉक की निविदा प्रक्रिया आरंभ की है। यह प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद जेएसडब्ल्यू (जिंदल), रायपुर की सारडा, नागपुर की यूनिवर्सल और जालना जिले के ओम साईंराम कंपनी को आगे की प्रक्रिया बढ़ाने के लिए जिला प्रशासन ने आमंत्रित भी किया है।
आदिवासी बहुल और नक्सल प्रभावित गढ़चिरोली जिले में लगातार बढ़ रही बेरोजगारों की समस्या को देखते हुए केंद्र व राज्य सरकार ने यहां उद्योगों को बढ़ावा देने का फैसला लिया है। कभी विदर्भ का जो जिला अपने घने, हरे भरे जंगल के लिए पहचाना जाता था, आज उसके इस जंगल को धूल के गुब्बारों से ढंक देने की कोशिश होती दिख रही है। असल में इस जिले में रहने वाले किसी भी शख्स ने कभी ऐसा सपना नहीं देखा था। कभी किसी ने यह भी नहीं चाहा था कि वह जिस प्राकृतिक सुंदरता के बीच रह रहा है, वह इलाका धूल के गुब्बारों से घिरा नजर आने लगे। विकास की चाह तब भी सभी को थी, आज भी सभी में है। लेकिन विकास के नाम पर पहाड़ों का सीना चिरती खदानें और प्रकृति की सुंदरता को समाप्त करने वाले कारखानों की भी चाह कभी किसी की नहीं थी।
सरकार ने हाल ही में सुरजागढ़ पहाड़ी के अतिरिक्त 4 ब्लॉक की निविदा प्रक्रिया आरंभ की है। यह प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद जेएसडब्ल्यू (जिंदल), रायपुर की सारडा, नागपुर की यूनिवर्सल और जालना जिले के ओम साईंराम कंपनी को आगे की प्रक्रिया बढ़ाने के लिए जिला प्रशासन ने आमंत्रित भी किया है। वहीं पिछले तीन दशकों से अधर में पड़ी अहेरी तहसील की देवलमरी-काटेपल्ली चुनखड़ी उत्खनन के लिए अंबुजा कंपनी इच्छुक होने के कारण जिला प्रशासन ने इस कंपनी को भी आगे की प्रक्रिया के लिए आमंत्रित किया है।
नक्सलग्रस्त एटापल्ली तहसील में सुरजागढ़ पहाड़ी बसी हुई है। केंद्र व राज्य सरकार द्वारा इस पहाड़ी पर लोह उत्खनन की अनुमति मिलने के बाद पिछले डेढ़ वर्ष से लॉयड्स एंड मेटल्स कंपनी द्वारा लोह उत्खनन का कार्य किया जा रहा है। वर्तमान में सुरजागढ़ पहाड़ी पर 348 हेक्टेयर वनभूमि उत्खनन के लिए कंपनी को हस्तांतरित की गई है। अब नए खदान की निविदा प्रक्रिया पूर्ण होने से सुराजगढ़ पहाड़ी पर लगभग 4 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में उत्खनन का कार्य किया जाएगा। इस उत्खनन के माध्यम से स्थानीय नागरिकों को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से अब सरकार द्वारा सभी प्रस्तावित खदान को शुरू करने का कार्य किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि, देवलमरी-काटेपल्ली चुनखड़ी के लिए प्रस्तावित की गई 538 हेक्टेयर जमीन में से 263 हेक्टेयर जमीन वनविभाग की है और शेष 258 हेक्टेयर जमीन निजी है। यहां पर केवल 16 हेक्टेयर जमीन राजस्व विभाग की है।
हम सभी जानते कि तेज रफ्तार में वाहन दौड़ाना हादसों का कारण बनता है। बावजूद इसके जब एक्सप्रेस हाईवे बनाए जाते है तो 120-130 की स्पीड से वाहन चलाने की अनुमति दी जाती है। यह ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि सुरक्षा के लिए जरूरी उपाय भी किए जाते है. मसलन, स्पीड के हिसाब से अलग -अलग लेन बनाना, सीट बेल्ट अनिवार्य रूप से पहनना, वाहन में एयर बैग की व्यवस्था का होना आदि। अब यही बात किसी भी इंडस्ट्री के लिए लागू होनी चाहिए। अगर विकास और रोजगार के लिए आपको उद्योगों को बढ़ाना देना जरूरी है तो फिर उस क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों की सेहत का भी खयाल हमें रखना पड़ेगा। ऐसे उपाय भी किए जाने चाहिए कि उस क्षेत्र की हरियाली खत्म न हो। केवल उत्खनन कराकर आप लंबे समय तक प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते है। क्योंकि जब प्रकृति का कोप होगा तो फिर उसका सामना करना हर किसी के लिए मुश्किल भरा हो जाएगा।
गढ़चिरोली अपने जंगलों के लिए जाना जाता रहा है। उसकी इस प्राकृतिक संपत्ति को बचाए रखते हुए अगर हम कुछ ऐसा रोजगार और उद्योग जुटा पाए, जो प्रकृति को बचाने में भी सहायक बने, तो यकीनन हम सभी के लिए वरदान साबित हो सकता है। गढ़चिरोली का जंगल, नदियां, नदियों में प्रचूर मात्रा में पड़ी हुई रेत आदि को लेकर भी तो कोई उद्योग लग सकता है। सबसे बड़ा उद्योग तो पर्यटन के माध्यम से खड़ा किया जा सकता है। लेकिन इस दिशा में कभी सोचा ही नहीं जाता है। केवल जमीन का दोहन करने से बहुत कुछ हासिल नहीं हो सकेगा। यह हमने देश के पूर्वोत्तर इलाकों में कई बार देख लिया है। पहाड़ियों का सीना चिरकर इंसान जब -जब प्रकृति को छेड़ता है, उसके दुष्परिणाम ही देखने मिलते है। गढ़चिरोली के साथ कही भविष्य में यही न दोहराया जाए।