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रहीस सिंह का ब्लॉगः भटकाव की स्थिति में नजर आया जी-20

By रहीस सिंह | Updated: July 2, 2019 22:01 IST

जापान का ओसाका शहर यदि एक तरफ दुनिया की आर्थिक ताकतों को जमावड़ा बना तो दूसरी तरफ वह दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ते तनावों और कमजोर होते आर्थिक विकास का साक्षी भी बना. यही वजह है कि शिखर सम्मेलन की शुरुआत में ही जापान के प्रधानमंत्री ¨शंजो आबे ने सदस्य देशों से समझौते की तैयारी को प्रदर्शित करने का आह्वान किया था जिसमें उनका इशारा जी-20 देशों के बीच व्याप्त आपसी विवादों की ओर कहीं अधिक था और वे इन मतभेदों पर जोर देने के बदले सहमतियां ढूंढने पर बल दे रहे थे.

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रहीस सिंह सोवियत पतन के बाद जब दुनिया एकध्रुवीय हुई तो अमेरिकी नेतृत्व वाले पूंजीवादी विश्व ने यह समझे बिना कि इसके भविष्य में क्या परिणाम आएंगे, एकाधिकारवादी व्यवस्था को थोपना शुरू किया. इसके दुष्प्रभाव देखे भी गए लेकिन वैचारिक शुद्धता चूंकि डिवाइनिज्म की सीमा पार कर चुकी थी इसलिए इसमें कोई बदलाव नहीं आया. लेकिन 2008 में जब पूंजीवाद की दीवारें अमेरिका से गिरनी शुरू हुईं तो पूंजीवादी दैववाद ने खुद को बदलना शुरू किया. फिर पूंजीवादी विश्व धीरे-धीरे संरक्षणवाद की ओर बढ़ा. 

इस संरक्षण का ही परिणाम है कि बर्लिन दीवार के लगभग तीन दशक बाद डोनाल्ड ट्रम्प एक दीवार फिर बनाना चाहते हैं. इसका असर अब उस जी-20 पर भी दिख रहा है जिसके झंडे के नीचे 20 देश खुद को दुनिया का नेता मानकर चल रहे थे. जी-20 के ब्रिस्बेन सम्मेलन से लेकर ओसाका तक को देखें तो इनकी एकता बिखरती दिख रही है और ये जाने-अनजाने दुनिया को संरक्षण वाद, राष्ट्रवाद के साथ नए टकरावों की ओर धकेलते दिख रहे हैं. 

जापान का ओसाका शहर यदि एक तरफ दुनिया की आर्थिक ताकतों को जमावड़ा बना तो दूसरी तरफ वह दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ते तनावों और कमजोर होते आर्थिक विकास का साक्षी भी बना. यही वजह है कि शिखर सम्मेलन की शुरुआत में ही जापान के प्रधानमंत्री ¨शंजो आबे ने सदस्य देशों से समझौते की तैयारी को प्रदर्शित करने का आह्वान किया था जिसमें उनका इशारा जी-20 देशों के बीच व्याप्त आपसी विवादों की ओर कहीं अधिक था और वे इन मतभेदों पर जोर देने के बदले सहमतियां ढूंढने पर बल दे रहे थे. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने जिस तरह से अपने बयान दिए या फिर ट्वीट के माध्यम से संदेश देने की कोशिश की वह लगभग सभी देशों को असहज करने वाला लगा. 

कुल मिलाकर जी-20 संगठन में दुनिया की 19 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के अलावा यूरोपीय संघ शामिल है इसलिए यह विश्व के बड़े भू-भाग और मानव संपदा के साथ-साथ सकल घरेलू उत्पादन के 80 प्रतिशत हिस्से को समेटे हुए है. ये देश दुनिया के तीन चौथाई कारोबार का संचालन करते हैं. इसलिए इनसे उम्मीद की जा सकती है कि ये दुनिया को एक ऐसी दिशा देंगे जिसमें सुरक्षा, शांति, प्रगति और सम्बद्धता प्रमुख होगी. लेकिन अब ऐसा दिखाई नहीं दे रहा है. इसके विपरीत ये देश खेमेबंदी करते हुए दिख रहे हैं. 

इनकी प्रतिस्पर्धा में एक-दूसरे को पीछे छोड़ना भर नहीं है बल्कि उसे असफल बनाकर स्वयं सफल बनने का विशेष गुण विद्यमान है. फिर तो यही कहा जा सकता है कि जी 20 एक ऐसे खेल का मैदान बन चुका है जहां शह और मात जैसी चालें चली जा रही हैं. स्वाभाविक है कि इसके परिणाम बहुत अच्छे नहीं होंगे. 

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