स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र की जीवनदायिनी है, डॉ. विजय दर्डा की पुस्तक विमोचन पर शशि थरूर ने क्या कुछ कहा; पढ़िए भाषण के मुख्य अंश

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 2, 2023 09:48 AM2023-06-02T09:48:45+5:302023-06-02T10:07:58+5:30

एक ईमानदार और कुशल सरकार के लिए एक स्वतंत्र और पेशेवर मीडिया आवश्यक है। क्योंकि एक वास्तविक उच्च-गुणवत्ता वाला मीडिया, सत्ता में किसे आना चाहिए यह निर्णय लेने के लिए नागरिकों को जानकारी प्रदान करता है और सत्तासीन लोगों को जवाबदेह ठहराता है।

Free Media is the Lifeblood of Democracy | स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र की जीवनदायिनी है, डॉ. विजय दर्डा की पुस्तक विमोचन पर शशि थरूर ने क्या कुछ कहा; पढ़िए भाषण के मुख्य अंश

फाइल फोटो

Highlightsकोई भी डेमोक्रेट यह नहीं सोचेगा कि स्वतंत्र मीडिया पर कोई सेंसरशिप या नियंत्रण होना चाहिए।मीडिया का सतहीपन और सनसनीखेज प्रवृत्ति देश के कई महत्वपूर्ण मुद्दों की गंभीरता को कम करती है।एक ईमानदार और कुशल सरकार के लिए एक स्वतंत्र और पेशेवर मीडिया आवश्यक है।

मीडिया का सतहीपन और सनसनीखेज प्रवृत्ति देश के कई महत्वपूर्ण मुद्दों की गंभीरता को कम करती है। लोकमत मीडिया समूह के एडिटोरियल बोर्ड के चेयरमैन और पूर्व राज्यसभा सदस्य डॉक्टर विजय दर्डा की पुस्तक ‘रिंगसाइड-अप, क्लोज एंड पर्सनल ऑन इंडिया एंड बियॉन्ड’ के विमोचन  समारोह में कांग्रेस नेता व सांसद डॉक्टर शशि थरूर  के भाषण पर आधारित लेखमैं डॉक्टर दर्डा का मित्र हूं, यह मेरे लिए गौरव की बात है।

उन्होंने एक व्यक्ति के रूप में विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान ने समाज पर अमिट छाप छोड़ी है। मैंने इस पुस्तक के लिए लिखी टिप्पणी में कहा है, ‘भारतीय राजनीति में ऐसी आवाज मिलना दुर्लभ है जो संक्षिप्त, गहन और पूर्वाग्रह से अप्रभावित हो।’

उनके चौथे स्तंभ के प्रमुख मार्गदर्शक के रूप में और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर एक अनुभवी सांसद के रूप में प्रभावशाली योगदान से अनेक लोग अवगत हैं। शेखर गुप्ता गलत नहीं कहते हैं कि दर्डा किस पार्टी से संबद्ध हैं, ये सभी जानते हैं फिर भी  वह स्वतंत्र रूप से और दृढ़ता से अपने विचार व्यक्त करने में सफल रहते हैं।

लोकमत की यात्रा 1971 में लोकमत के संस्थापक-संपादक और डॉक्टर दर्डा के दिवंगत पिता जवाहरलाल दर्डा के नेतृत्व में शुरू हुई। वहां से चलकर लोकमत ने आज भारत के सबसे बड़े क्षेत्रीय समाचार पत्रों में से एक होने की प्रतिष्ठा हासिल कर ली है।शेखर गुप्ता ने सही कहा कि हमारे देश में मौजूद क्षेत्रीय मीडिया के लिए वर्नाक्यूलर शब्द का उपयोग करना वास्तव में अपमानजनक है।

इससे उनका महत्व कम होता है। हम यह मानकर चलते हैं कि अंग्रेजी मीडिया एजेंडा सेट करता है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि बड़ी संख्या में पाठक और मतदाता भारतीय भाषाओं से प्रभावित होते हैं। डॉक्टर विजय दर्डा की बहुमुखी प्रतिभा का एक और प्रभावशाली पहलू ‘रिंगसाइड’ पुस्तक ने प्रभावी ढंग से सामने लाया है।

‘रिंगसाइड’ हाल के दिनों में सार्वजनिक जीवन में हुई महत्वपूर्ण घटनाओं पर टिप्पणी करने वाले लेखों का एक बड़ा संग्रह है। इस पुस्तक में मैं भी डॉक्टर दर्डा के एक लेख का विषय बना हूं। उस लेख का शीर्षक है ‘थ्री चीयर्स फॉर शशि’। भारत और उपनिवेशों का अंग्रेजों पर कर्ज है-इस विषय पर मैंने ऑक्सफोर्ड यूनियन में जो भाषण दिया था, डॉक्टर दर्डा ने उस पर बहुत ही उदारतापूर्वक एक लेख लिखा है। उन्होंने मेरे भाषण के मुख्य तर्कों को बहुत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है।

इस पुस्तक के गंभीर मुद्दों की चर्चा की जाए तो, भारतीय राजनीति का एक विशाल व्यक्तित्व, साथ ही साथ समावेशी और लोकतांत्रिक भारत के प्रतिबद्ध जनप्रतिनिधि डॉक्टर दर्डा में बहुत गहनता और महीनता से अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने का गुण है। भारत में मीडिया और राजनीतिक वर्ग के बीच संबंधों पर टिप्पणी करने वाला लेख वास्तव में उल्लेखनीय है।

इस लेख में मीडिया और राजनीतिक वर्ग में खंडित हो रहे सौहार्द्रपूर्ण लेकिन अव्यावसायिक संबंधों की जांच-पड़ताल की है। इस लेख में डॉ. दर्डा ने कहा कि राजनीतिक नेताओं के बीच धैर्य और आलोचना सहन करने की क्षमता धीरे-धीरे खत्म हो रही है। डॉक्टर दर्डा ने राजनीतिक दलों में आदर्शवाद, वैचारिक मतभेदों और व्यक्तिगत संबंधों में बुनियादी स्तर की शालीनता और संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया है।

उन्होंने भारतीय राजनेताओं को तीन श्रेणियों में बांटा है। पहली श्रेणी सर्किट नेताओं की है। वे स्थायी रूप से सर्किट हाउस में ही जमे रहते हैं। उनके हाथों में फूलमालाएं रहती हैं। वे आने वाले किसी भी नेता को माला पहनाकर अभिवादन करते हैं और सर्किट हाउस में नेताओं के ठहरने की व्यवस्था करते हैं। अंततः वे स्वयं राजनेता बन जाते हैं। दूसरी श्रेणी सप्लीमेंट वाली है। इस श्रेणी के पार्टी कार्यकर्ता अपने नेताओं के जन्मदिन और वर्षगांठ पर समाचार पत्रों में विज्ञापन के सप्लीमेंट देते हैं और अपने नेताओं के साथ अपनी तस्वीरें प्रकाशित करते हैं। इस तरह वे खुद नेता बन जाते हैं। तीसरी श्रेणी में ऐसे नेता शामिल हैं जिनके पास वास्तव में बड़ा जनाधार और नेतृत्व गुण होता है।

डॉक्टर दर्डा ? प्रश्न यह है कि सर्किट और सप्लीमेंट की राह पर चलकर जो लोग नेता बन गए हैं, उनसे शिष्ट और परिपक्व व्यवहार की उम्मीद कैसे की जा सकती है? वास्तव में डॉक्टर दर्डा ने एक गंभीर प्रश्न मीडिया के समक्ष प्रस्तुत किया है। संतुलित रिपोर्टिंग के बजाय किसी से प्रेरित होकर रिपोर्टिंग पर ध्यान न देना हमारे देश के लिए आम बात हो गई है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है।मुझे भारतीय मीडिया के द्वेषपूर्ण आचरण का व्यक्तिगत अनुभव है।

भारत में चौथा स्तंभ  गवाह, सरकारी वकील, न्यायाधीश और पुलिस की भूमिका एकसाथ निभाता है। प्राचीन समय में, लोगों और राजनीतिक नेताओं की अग्नि परीक्षा होती थी। आज मीडिया ट्रायल होता है। वास्तव में, यह कई तरह से राजनीति और मीडिया दोनों का माहौल खराब करता है। कई लोगों का मानना है कि स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र की जीवनदायिनी है।

क्योंकि एक वास्तविक उच्च-गुणवत्ता वाला मीडिया, सत्ता में किसे आना चाहिए यह निर्णय लेने के लिए नागरिकों को जानकारी प्रदान करता है और सत्तासीन लोगों को जवाबदेह ठहराता है। सरकार की आलोचना न करते हुए विपक्ष की बुराई करने का सुरक्षित रास्ता ढूंढने के बजाय निर्वाचित सरकार के प्रदर्शन या निष्क्रियता का मूल्यांकन करना मीडिया का काम है।

मीडिया की सतहीपन और सनसनीखेज प्रवृत्ति देश के कई महत्वपूर्ण मुद्दों की गंभीरता को कम करती है। नतीजा यह है कि हमारा स्वतंत्र मीडिया उम्मीद के मुताबिक हमारे लोकतंत्र का प्रहरी होने का अपना दायित्व नहीं निभा रहा है। इसलिए सत्ताधारियों को दिन मूल और वास्तविक मुद्दों का समाधान करना है, उनकी ओर से लोगों का ध्यान भटक जाता है। हमें इससे निपटना जरूरी है, क्योंकि आम जनता से जुड़े ज्वलंत मुद्दों से सामूहिक रूप से ध्यान हटाने के लिए मीडिया को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

कोई भी डेमोक्रेट यह नहीं सोचेगा कि स्वतंत्र मीडिया पर कोई सेंसरशिप या नियंत्रण होना चाहिए। मुझे लगता है कि हमें बेहतर पत्रकारिता की जरूरत है, निम्न दर्जे की पत्रकारिता की नहीं। मुझे यकीन है कि राजदीप, शेखर और संजय मेरी इस बात से असहमत नहीं होंगे कि अच्छी पत्रकारिता हमारे लोकतंत्र के लिए हमेशा फायदेमंद रहेगी।

एक ईमानदार और कुशल सरकार के लिए एक स्वतंत्र और पेशेवर मीडिया आवश्यक है।  मैं डॉक्टर विजय दर्डा को उनकी पुस्तक के प्रकाशन और उसके विभिन्न भाषाओं में अनुवाद की सफलता के लिए शुभकामनाएं देना चाहता हूं और हम उन्हें उनकी असंख्य उपलब्धियों के लिए बधाई भी देते हैं।

Web Title: Free Media is the Lifeblood of Democracy

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे