ब्लॉग: अर्थव्यवस्था और आम आदमी को राहत देने वाला पूर्वानुमान
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 11, 2024 10:47 AM2024-04-11T10:47:50+5:302024-04-11T10:48:33+5:30
अल नीनो प्रभाव के ला नीना में तब्दील होने की प्रक्रिया शुरू हो जाने के कारण अच्छे मानसून के अनुकूल हालात बन रहे हैं। हालांकि, स्काईमेट के पूर्वानुमान से बिहार समेत पूर्वी राज्यों में चिंता पैदा हो सकती है क्योंकि यहां कम बारिश का अंदेशा जताया गया है।
इस वर्ष देश में मानसून के बारे में पूर्वानुमान अर्थव्यवस्था के लिए ही नहीं उन प्रदेशों के लिए भी राहत देने वाले संकेत हैं, जो सूखे के संकट का सामना कर रहे हैं। दस दिन पूर्व भारतीय मौसम विभाग ने इस साल अच्छी वर्षा का पूर्वानुमान जताया था और अब मंगलवार को निजी एजेंसी स्काईमेट ने भी औसत से ज्यादा बारिश होने की भविष्यवाणी की है।
अल नीनो प्रभाव के ला नीना में तब्दील होने की प्रक्रिया शुरू हो जाने के कारण अच्छे मानसून के अनुकूल हालात बन रहे हैं। हालांकि, स्काईमेट के पूर्वानुमान से बिहार समेत पूर्वी राज्यों में चिंता पैदा हो सकती है क्योंकि यहां कम बारिश का अंदेशा जताया गया है। पिछले दो दशकों से ये इलाके ज्यादातर समय औसत से कम वर्षा का सामना करते आ रहे हैं।
पिछले वर्ष बिहार, पश्चिम बंगाल तथा अन्य पूर्वी राज्यों में औसत से कम बारिश हुई थी। गत वर्ष महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना में भी वरुण देवता की कृपा नहीं हुई थी। इससे इन राज्यों के अधिकांश हिस्सों में सूखे की स्थिति रही। फसलों को नुकसान होने के साथ-साथ पशुओं के लिए चारे तथा लोगों के लिए गंभीर पेजयल संकट खड़ा हो गया था।
कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु तो अभी भी भीषण पेजयल संकट का सामना कर रही है जबकि महाराष्ट्र में पीने के पानी की आपूर्ति के लिए लगभग दो हजार टैंकरों की मदद लेनी पड़ रही है। महाराष्ट्र का मराठवाड़ा इलाका सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित है। विदर्भ में भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। गत वर्ष की तुलना में महाराष्ट्र ही नहीं देश के अधिकांश हिस्सों में छोटे-बड़े बांधों में जल भंडारण कहीं आधा तो कहीं एक तिहाई रह गया है। बड़ी संख्या में छोटे बांधों के जलाशयों में तो पानी बचा ही नहीं है। मौसम विभाग तथा स्काईमेट का पूर्वानुमान देश के पूर्वी हिस्से को छोड़कर बाकी हिस्सों के लोगों के चेहरों पर मुस्कान ला सकता है।
अच्छा मानसून अर्थव्यवस्था के विकास की ऊंची दर को कायम रखने के लिए भी जरूरी है। गत वर्ष कम वर्षा के बावजूद सरकार के ठोस कदमों के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था के बढ़ने की गति धीमी नहीं पड़ी थी। विश्व बैंक समेत विश्व की तमाम महत्वपूर्ण वित्तीय एजेंसियों ने वित्त वर्ष 2024-25 में भी भारत की विकास दर 7 प्रतिशत से ज्यादा रहने का अनुमान व्यक्त किया है। यदि मौसम एजेंसियों के पूर्वानुमान सही निकले तो अच्छा मानसून हमारी अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने में मददगार सिद्ध होगा।
भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और अगले तीन साल में वह तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर कदम बढ़ा रहा है। इसके लिए अर्थव्यवस्था के अन्य बुनियादी क्षेत्रों की तरह कृषि विकास की दर भी 4 प्रतिशत से ज्यादा रखनी होगी। यह तभी संभव है जब मानसून अनुकूल हो। हमारे यहां सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में कृषि की भागीदारी अभी भी महत्वपूर्ण है। ऐसे में ऊंची विकास दर में निरंतरता बनाए रखने के लिए कृषि क्षेत्र का मजबूत होना जरूरी है।
दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत भी जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का सामना कर रहा है। इससे मौसम चक्र बदलने लगा है। मानसून के आगमन तथा विदाई से भी इसका अंदाज लगाया जा सकता है। भारत में पिछले कुछ वर्षों से मानसून निर्धारित समय से करीब एक माह बाद अर्थात जुलाई में ही पूरी तरह सक्रिय होता है और सितंबर के बजाय अक्तूबर-नवंबर तक बारिश चलती रहती है।
किसानों ने बदलते मौसम के साथ कृषि कार्यों में बदलाव लाना शुरू कर दिया है। लेकिन देश की कृषि अभी भी मानसून पर ही निर्भर है। सिंचाई सुविधाएं सीमित होने, भूजल स्तर लगातार गिरने, हजारों छोटी नदियों, जलाशयों के लुप्त हो जाने से मानसून पर किसानों की निर्भरता बढ़ गई है। पिछले वर्ष की कम वर्षा से किसान संकट में थे और आशंकित थे कि इस साल भी कम वर्षा न हो जाए। सकारात्मक पूर्वानुमान ने आम जनता तथा किसानों के साथ-साथ सरकार को जरूर राहत पहुंचाई होगी।