फहीम खान का ब्लॉग: अपहृत जवान की रिहाई के बहाने हीरो बन गए नक्सली
By फहीम ख़ान | Published: April 9, 2021 12:49 PM2021-04-09T12:49:40+5:302021-04-09T13:32:59+5:30
इसी तरह तत्कालिन मंत्री धर्मराव बाबा आत्राम, लॉयड मेटल के दो अधिकारी भी नक्सलियों द्वारा बंधक बनाए जा चुके है. इन सभी को रिहा करने के लिए हमेशा ही नक्सलियों के साथ बड़ी डील होती रही है, यह बात और है कि कभी इसका खुलासा नहीं किया गया.
जन अदालत लगाकर ग्रामीणों के बीच अपनी छवि सुधारने की कोशिश छत्तीसगढ़ के बीजापुर में 3 अप्रैल को हुई मुठभेड़ के बाद नक्सलियों ने सुरक्षा बलों के जिस जवान को बंधक बनाया था, उस अपहृत जवान राकेश्वर सिंह को गुरुवार को आयोजित भरी जन अदालत में ग्रामीणों की मौजूदगी में रिहा कर दिया.
लगभग 100 घंटे तक राकेश सिंह नक्सलियों के साथ रहे और इसके बाद जन अदालत बुलाकर नक्सलियों ने राकेश सिंह को रिहा भी कर दिया. इस पूरे घटनाक्रम के साथ ही नक्सलियों ने खुद को हीरो बना डाला. साथ ही यह संदेश भी देने की कोशिश की है कि इस इलाके में जहां चप्पे चप्पे पर सुरक्षा बलों की मौजूदगी का दावा सरकार कर रही थी, वहां अब भी उनका एकछत्र राज चल रहा है.
कोशिश यह भी की गर्र्ई कि पिछले दिनों जिस तरह हिंसा और नक्सलवाद एक ही सिक्के के दो पहलू है, ऐसा दर्शाया जाता रहा है उस छवि को सुधारा जाए. पांच दिनों तक यह जवान नक्सलियों के कब्जे में था लेकिन उसे पूरे सम्मान के साथ नक्सलियों ने रखते हुए आखिरकार रिहा कर दिया.
इस माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश हुई है कि नक्सली संगठन अब भी निहत्थे, निरपराधों को मारने के पक्ष में नहीं है, भले ही वह सुरक्षा बल का जवान ही क्यों न हो.
नक्सली संगठन ने संदेश दिया कि अब भी इस इलाके में उनकी तूती बोलती है...
इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाली बात तो यह थी कि राकेश्वर सिंह की रिहाई के लिए नक्सलियों ने उसी स्थान को चुना है जहां उन्होंने सुरक्षाबलों पर हमला किया था. इतनी बड़ी संख्या में ग्रामीणों को यहां बुलाकर इस जनसभा के सामने राकेश्वर सिंह को हाथ बांधकर पेश किया गया.
इस पूरे मामले को सारी दुनिया ने वीडियो के माध्यम से देखा. यह पूरा मामला नक्सलियों की रणनीति का हिस्सा लग रहा है. नक्सलियों ने जानबुझकर अपहृत जवान को रिहा करने के लिए यह सबकुछ किया. इस माध्यम से उन्होंने बाहरी दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश की है कि अब भी इस इलाके में उनकी तूती बोलती है.
सुरक्षा बल और सरकार लाख दावे कर ले लेकिन उसी स्थान पर इस जन अदालत का आयोजन कर नक्सलियों ने अपनी ताकत तो दिखा ही दी है. यह भी लगता है कि नक्सली इस इलाके पर जारी अपने राज को चिन्हित करने में कामयाब रहे.
साथ ही जन अदालत में मौजूद गांववालों को यह अप्रत्यक्ष संदेश भी उन्होंने दे दिया है कि जिस सरकार और सुरक्षा बलों पर वे विश्वास कर नक्सलियों से पंगा ले रहे है उनके साथ नक्सली क्या कर सकते है? यह संदेश नक्सली इलाकों में सुरक्षा बलों के ग्रामीणों को अपने साथ जोड़ने के अभियान पर भविष्य में जरूर असर दिखाएगा.
दुश्मनी सिर्फ सरकारों से है...
इस पूरे घटनाक्रम में नक्सली यह साबित करने में कामयाब रहे कि एक जवान के अपहरण के बाद सरकार और सुरक्षा बलों के तमाम तरह के दावों के बावजूद सब कुछ नक्सलियों के ही हाथ में है.
इस पूरे घटनाक्रम में नक्सली इस तरह हीरो बनते चले गए कि मुठभेड़ के अगले दिन 4 अप्रैल को नक्सलियों ने खुद ही फोन कर यह बता दिया कि उन्होंने ही जवान का अपहरण किया है. फिर यह भी बता दिया कि अपहृत कमांडो सुरक्षित भी है. उसे जल्द रिहा करने के बारे में भी वे कहते रहे.
नक्सल गतिविधियों के जानकार भी यह मान रहे है कि ऐसा करके नक्सलियों ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि उनकी दुश्मनी सुरक्षा बलों के जवानों से नहीं है, बल्कि सरकार से है. ऐसा नक्सली संगठन कई बार कर भी चुके है. अपने हर प्रेस विज्ञप्ति में नक्सली अपनी सीधी लढ़ार्ई सरकार से होने की बात कहते आए है.
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों सुरक्षा बल और पुलिस के जवानों के नाम नक्सलियों ने एक पत्र भी लिखा था जिसमें नक्सलियों ने जवानों से कहा था कि नक्सली उनके दुश्मन नहीं है.
नक्सलियों का बड़ा हथियार बन गया है अपहरण...
महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले में आज भले ही पुलिस और सुरक्षा बल नक्सलियों पर भारी पड़ रहे है लेकिन एक ऐसा भी समय था जब नक्सलियों ने यहां पर भी अपहरण का रास्ता चुना था. सरकारी अधिकारी, जनप्रतिनिधियों के साथ ही नक्सलियों ने निजी कंपनियों के अधिकारियों को भी बंधक बनाया था.
गढ़चिरोली के अतिरिक्त कलेक्टर का भी अपहरण नक्सलियों ने किया था. इसी तरह तत्कालिन मंत्री धर्मराव बाबा आत्राम, लॉयड मेटल के दो अधिकारी भी नक्सलियों द्वारा बंधक बनाए जा चुके है. इन सभी को रिहा करने के लिए हमेशा ही नक्सलियों के साथ बड़ी डील होती रही है, यह बात और है कि कभी इसका खुलासा नहीं किया गया.
21 अप्रैल 2012 को बस्तर के सुकमा जिले के कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन का नक्सलियों ने अपहरण किया था. करीब 12 दिन के बाद उन्हें रिहा कराया था.