ब्लॉग: आम आदमी की पहुंच से दूर होते जा रहे खर्चीले चुनाव
By प्रमोद भार्गव | Published: April 4, 2024 11:10 AM2024-04-04T11:10:19+5:302024-04-04T11:12:07+5:30
चुनाव आयोग ने लोकसभा उम्मीदवार को 95 लाख रुपए तक खर्च करने की छूट दी हुई है। लेकिन हम सब जानते हैं कि करीब आठ विधानसभाओं में लड़े जाने वाले इस चुनाव में यह राशि ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है।
केंद्र सरकार में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा है कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए धन नहीं है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि 'मुझे इस बात को लेकर भी मलाल है कि चुनाव में समुदाय व धर्म जैसी चीजों को जीत तय करने का आधार बनाना पड़ता है। इसलिए मैंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है।'
सीतारमण कई बार लोकसभा का चुनाव लड़ने के अनुभव से गुजर चुकी हैं। इसलिए वे जो कह रही हैं उसमें निश्चित ही सच्चाई है। हम देख भी रहे हैं कि अनैतिक रूप से कमाए गए धन और आवारा पूंजी ने चुनावी खर्च इतना बढ़ा दिया है कि गरीब आदमी तो छोड़िए मध्यमवर्गीय व्यक्ति का भी चुनाव लड़ना मुश्किल है।
वैसे चुनाव आयोग ने लोकसभा उम्मीदवार को 95 लाख रुपए तक खर्च करने की छूट दी हुई है। लेकिन हम सब जानते हैं कि करीब आठ विधानसभाओं में लड़े जाने वाले इस चुनाव में यह राशि ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है। वास्तविक खर्च इससे कई गुना अधिक होता है। प्रत्याशी और दल तो चुनाव में धन खर्च करते ही हैं, सरकार को भी चुनाव कराने में बड़ी धनराशि खर्च करनी पड़ती है। इसलिए खर्च के इस छुटकारे के उपाय एक साथ चुनाव बनाम संयुक्त चुनाव में देखे जा रहे हैं। संभव है 2029 का चुनाव इसी प्रणाली से हो।
लोकसभा, विधानसभा, नगरीय निकायों और पंचायतों के चुनाव एक साथ हों तो लंबी चुनाव प्रक्रिया के चलते मतदाता में जो उदासीनता छा जाती है, वह दूर होगी। एक साथ चुनाव में वोट डालने के लिए मतदाता को एक ही बार घर से निकलकर मतदान केंद्र तक पहुंचना होगा, अतएव मतदान का प्रतिशत बढ़ जाएगा।
यदि यह स्थिति बनती है तो चुनाव में होने वाले सरकारी धन का खर्च कम होगा। 2019 के आम चुनाव में करीब 60000 करोड़ खर्च हुए थे, जबकि 2014 में इसके आधे 30 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थे. 2024 के चुनाव में एक लाख करोड़ रु. से अधिक खर्च होने की उम्मीद है।
गैर-लाभकारी संगठन सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के अध्ययन के अनुसार 2019 का आम चुनाव दुनिया में सबसे महंगा चुनाव रहा है। इस चुनाव में औसतन प्रति लोकसभा क्षेत्र 100 करोड़ रु. खर्च हुए। एक तरह से यह खर्च एक मत के लिए 700 रु. बैठता है। यह खर्च केवल चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होने के बाद का है।
कई उम्मीदवार जिनका लड़ना तय होता है, वह साल-छह माह पहले से ही चुनाव की तैयारियों में लग जाते हैं। इस खर्च को अध्ययन में शामिल नहीं किया गया है। यदि लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो 75 से 80 सीटें ऐसी थीं, जहां प्रत्याशी विशेष ने 40 करोड़ रु. से भी अधिक खर्च किए। यह चुनाव आयोग द्वारा प्रत्याशी के लिए तय की गई खर्च की अधिकतम सीमा से 50 गुना से भी अधिक है।