ब्लॉग: ईपीएफ ब्याज वृद्धि, महंगाई के दौर में मामूली राहत
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: February 12, 2024 10:42 AM2024-02-12T10:42:46+5:302024-02-12T10:48:04+5:30
चुनाव के पहले कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) अकाउंट के लिए ब्याज दर 0.10 फीसदी से बढ़ाकर 8.25 प्रतिशत करने का ऐलान कर दिया है।
चुनाव के पहले कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) अकाउंट के लिए ब्याज दर 0.10 फीसदी से बढ़ाकर 8.25 प्रतिशत करने का ऐलान कर दिया है। ईपीएफओ के तय करने के बाद करीब सात करोड़ कर्मचारियों के लिए वित्त मंत्रालय अंतिम फैसला लेगा। ईपीएफ बीस या अधिक कर्मचारियों वाले संगठनों में वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए एक अनिवार्य योगदान है।
इसके तहत कर्मचारी के वेतन से मासिक आधार पर 12 प्रतिशत हिस्सा ईपीएफ खाते में डाला जाता है और उतना ही योगदान नियोक्ता द्वारा दिया जाता है। नियोक्ता के हिस्से में से 3.67 प्रतिशत हिस्सा ईपीएफ खाते में और बाकी का 8.33 प्रतिशत हिस्सा कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) में जमा किया जाता है। कुल जमा कर्मचारियों की मेहनत का पैसा सरकार अपने पास जमा करती है और कर्मचारियों के ईपीएफ खाते पर हर साल एक बार 31 मार्च को अलग-अलग दर से ब्याज देती है। मगर अब देखने में यह आ रहा है कि पिछले कुछ सालों में ईपीएफ पर ब्याज दर नहीं बढ़ रही है।
पिछले साल ईपीएफओ ने 2022-23 के लिए 8.15 प्रतिशत की ब्याज दर की घोषणा की थी। वहीं उससे पहले 2021-22 में 8.10 प्रतिशत दर से ब्याज दिया था, जो वित्त वर्ष 1977-78 की ब्याज दर 8 प्रतिशत के बाद से सबसे कम था। हालांकि उससे पहले साल 2020-21 में ब्याज दर 8।5 प्रतिशत थी। वित्त वर्ष 2015-16 में ब्याज दर 8.8 प्रतिशत भी थी, जबकि उससे पहले 2014-15 में 8.75 प्रतिशत की दर से ब्याज दिया गया था। मगर वित्त वर्ष 2016-17 में गिरावट का दौर आरंभ हुआ और ब्याज दर 8।65 प्रतिशत तक पहुंची। फिर 2017-18 में दर 8.55 प्रतिशत पर जा पहुंची। इसके बाद से ब्याज दर कभी पुराने आंकड़ों को छू नहीं पाई।
इस बीच, संगठन ने अपने उपभोक्ता कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना का भी ऐलान किया। मगर उस पर भी अब तक कोई अंतिम निर्णय नहीं आया है। फिलहाल ताजा ब्याज दर के निर्णय पर वित्त मंत्रालय की मुहर लगना बाकी है। दरअसल निजी क्षेत्र में काम करने वालों की एकमात्र जमा पूंजी ईपीएफ होती है, जिससे सेवानिवृत्ति के बाद उनके जीवन-यापन की चिंताएं दूर होती हैं।
सरकार हर बार दावा करती है कि ईपीएफओ से लगातार नए कर्मचारी जुड़ रहे हैं और उसके पास जमा पूंजी भी अच्छी खासी है। किंतु उसका प्रत्यक्ष व वास्तविक स्थितियों के अनुसार कर्मचारियों को लाभ नहीं मिल पाता, जिससे कर्मचारियों की निधि उनका भविष्य उज्ज्वल नहीं कर पा रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार कर्मचारियों के हित में निर्णय लेने के साथ केवल अपने चुनावी भविष्य ही नहीं, बल्कि कर्मचारियों के भविष्य की भी चिंता करेगी। यह केवल कुछ लोगों का ही नहीं, अपितु सात करोड़ से अधिक कर्मचारियों और उनसे जुड़े परिवारों का मामला है।