ब्लॉग: गोद लेने के कानून में बदलाव की कवायद, अब कोई बच्चा 'नाजायज' नहीं होगा
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: August 9, 2022 03:24 PM2022-08-09T15:24:49+5:302022-08-09T15:24:49+5:30
बच्चों को नाजायज कहना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है. अगर नाजायज कहना ही हो तो वास्तव में उस बच्चे के पिता को कहा जा सकता है जो उसे नाम देने की हिम्मत नहीं जुटा पाता.
एक संसदीय समिति ने गोद लेने के कानून से ‘नाजायज बच्चे’ के संदर्भ को हटाने की जो सिफारिश की है, वह बिल्कुल ठीक है. भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी की अध्यक्षता में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने अभिभावक और वार्ड कानून की समीक्षा करते हुए यह सिफारिश की और समिति द्वारा मौजूदा मानसून सत्र में संरक्षकता (अभिभावक) और गोद लेने के कानूनों की समीक्षा पर अपनी रिपोर्ट पेश करने की संभावना है.
समिति ने विभिन्न संरक्षण पहलुओं को शामिल करते हुए एक व्यापक कानून बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है, जो धर्म से परे सभी पर लागू हो. बच्चा चाहे वह विवाह के भीतर पैदा हुआ हो या बाहर, वह नाजायज हो ही नहीं सकता, क्योंकि अपने जन्म लेने में उसका कोई हाथ नहीं होता. इसलिए किसी बच्चे को अगर ‘नाजायज’ के संदर्भ के कारण भविष्य में शर्मिंदगी झेलनी पड़े तो वह उचित नहीं है, कानून सभी बच्चों के लिए समान होना चाहिए.
दरअसल हमारे समाज का परिवेश ऐसा है कि किसी के भी साथ ‘नाजायज’ का ठप्पा जुड़ जाए तो उसे समाज में अच्छी निगाहों से नहीं देखा जाता और उसके साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया जाता. ऐसे में किसी बच्चे के साथ अगर ‘नाजायज बच्चे’ का संदर्भ जुड़ा हो तो इससे उसको होने वाली मानसिक तकलीफ की कल्पना की जा सकती है.
अगर नाजायज कहना ही हो तो वास्तव में उस बच्चे के पिता को कहा जा सकता है जो किसी लड़की को अपनी वासना का शिकार बनाने के बाद, पैदा होने वाले बच्चे को अपना नाम देने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. इसलिए बच्चों को नाजायज कहना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है.
वैसे भी अब तो सिंगल पैरेंट्स अर्थात एकल माता-पिता का चलन भी शुरू हो गया है, जिसमें माता या पिता कोई एक ही बच्चे का पालन-पोषण करता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि संसदीय समिति की इस सिफारिश के बाद गोद लेने के कानून में आवश्यक परिवर्तन हो सकेगा और किसी भी बच्चे को ‘नाजायज’ होने का दंश नहीं झेलना पड़ेगा.