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संपादकीय: नोटबंदी का अध्ययन क्यों नहीं कराया?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: December 28, 2018 05:00 IST

नोट बदलवाने के लिए लंबी-लंबी लाइनों में लगने से कितने ही लोगों की मृत्यु हो गई. देश के जाने कितने ही छोटे-छोटे उद्योग-धंधे चौपट हो गए. और नोटबंदी का नतीजा क्या निकला? 

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केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा संसद को यह जानकारी देना कि देश में नोटबंदी के असर को लेकर कोई अध्ययन नहीं कराया गया है, बहुत ही गंभीर बात है. सर्वोच्च मूल्य वर्ग के नोटों को अचानक ही चलन से बाहर कर देना कोई मामूली बात नहीं थी. पूूरे देश को इसके लिए महीनों तक बुरी तरह से परेशान होना पड़ा था. नोट बदलवाने के लिए लंबी-लंबी लाइनों में लगने से कितने ही लोगों की मृत्यु हो गई. देश के जाने कितने ही छोटे-छोटे उद्योग-धंधे चौपट हो गए. और नोटबंदी का नतीजा क्या निकला? 

चलन से बाहर किए गए लगभग सारे नोट वापस आ गए. नए नोटों की छपाई में जो नुकसान हुआ, सो अलग. इतना विध्वंसक कदम उठाने के बाद आप देश को बताते हैं कि उसके असर का कोई अध्ययन ही नहीं कराया गया है! क्या यह लापरवाही की इंतेहा नहीं है! व्यवस्था सनक से नहीं चलती कि बिना कुछ सोचे-समङो अचानक ही आप एक दिन घोषणा कर दें कि चलो नोटबंदी कर दी जाए, सिर्फ इस उम्मीद में कि इससे देश में छिपा कालाधन बाहर आ जाएगा. न तो आप ने नोटबंदी के पहले विशेषज्ञों से सलाह ली कि हकीकत में वह कितनी कारगर साबित होगी और न नोटबंदी के बाद उसके असर का कोई अध्ययन कराया. फिर आप किस आधार पर उसकी सफलता का ढोल पीट रहे हैं? 

देश को चलाने के लिए बहुत सोच-विचार कर बनाई गई नीतियों की आवश्यकता होती है. यह कोई बच्चों का खेल नहीं है कि मनमाने कदम उठाने के बाद, उसका मनमुताबिक परिणाम नहीं आने पर आप बहाने बनाने शुरू कर दें कि आपका मकसद ऐसा नहीं वैसा था. सच्चाई स्वीकार करने का आपके भीतर साहस होना चाहिए, तभी अपनी गलतियों से सीखकर आगे बढ़ सकते हैं और देश को भी आगे ले जा सकते हैं. 

लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति का योगदान महत्वपूर्ण होता है, इसमें व्यवस्था को केंद्रीकृत करने से काम नहीं चलता. लेकिन आज हम देख रहे हैं कि रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है, संवैधानिक संस्थाओं में राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते घमासान मचा है और नतीजे मनमुताबिक नहीं आने पर धमकाने वाली भाषा का प्रयोग किया जाता है. यह लोकतंत्र को मजबूत करने के लक्षण नहीं हैं. आपको सबको साथ लेकर चलना होगा. सभी स्वायत्त संस्थाओं का सम्मान करना होगा और स्वीकार करना होगा कि आपसे भिन्न मत रखने वालों को भी वजूद में रहने का हक है. लोकतंत्र की इन खूबियों को अपनाए बिना आप जनता के बीच ज्यादा समय तक टिक नहीं सकते.

टॅग्स :नोटबंदीdemonetisation
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