संपादकीय: स्वदेशी युद्धक दवाएं जवानों के लिए साबित होंगी वरदान
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 13, 2019 11:38 AM2019-03-13T11:38:12+5:302019-03-13T11:38:12+5:30
देश में स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी को बड़े पैमाने पर विकसित करने की जरूरत है और इस दिशा में जो भी समस्याएं हैं, उन्हें सरकार द्वारा अविलंब दूर करना होगा.
पुलवामा जैसे हमलों और युद्ध में हताहतों की संख्या में कमी लाने के लिए डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) की चिकित्सकीय प्रयोगशाला कॉम्बैट कैजुएलिटी ड्रग (युद्धक दवाएं) लेकर आई है. इस खोज से अब अस्पताल ले जाते समय घायल जवान दम नहीं तोड़ेंगे. दवा बनाने का मकसद था कि घायल जवानों को अस्पताल में पहुंचाए जाने से पहले तक के बेहद नाजुक समय को बढ़ाया जा सके, जिसे जान बचाने के लिहाज से ‘गोल्डन’ समय कहा जाता है. इन दवाओं से मृतक संख्या में कमी लाई जा सकती है.
डीआरडीओ की प्रयोगशाला इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलाइड साइंसेस में दवाओं को तैयार करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार घायल होने के बाद और अस्पताल पहुंचाए जाने से पहले यदि घायल को प्रभावी प्राथमिक उपचार दिया जाए तो उसके जीवित बचने की संभावना अधिक होती है. इस लिहाज से हमारे वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई ये दवाएं अर्धसैनिक बलों और रक्षा कर्मियों के लिए निश्चित ही वरदान साबित होंगी. इन दवाओं में रक्तस्नव वाले घाव को भरने वाली दवा, अवशोषक ड्रेसिंग और ग्लिसरेटेड सैलाइन शामिल हैं.
वास्तव में, देश में स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी को बड़े पैमाने पर विकसित करने की जरूरत है और इस दिशा में जो भी समस्याएं हैं, उन्हें सरकार द्वारा अविलंब दूर करना होगा. सरकार को यह महसूस करना चाहिए कि अत्याधुनिक आयातित प्रणाली भले ही बहुत अच्छी हो, लेकिन कोई भी विदेशी प्रणाली लंबे समय तक अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा नहीं कर सकती. फिर वह जीवन रक्षक दवाओं की आवश्यकता हो, या सैन्य तकनीक और हथियार उत्पादन का मामला हो- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से आत्मनिर्भरता बहुत आवश्यक है.
देश को अपनी आयात प्रवृत्ति पर रोक लगानी चाहिए. अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं, तो आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी. खासतौर पर चीन से मिल रही युद्ध की धमकियों और पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंधों के मद्देनजर हमारी चुनौतियां लगातार, चौतरफा बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में सरकार और सेना को अब तय कर लेना चाहिए कि वह युद्ध की तैयारी के लिए आयात पर निर्भर नहीं रहेगी.
एक स्वाभिमानी देश के नाते अपनी सैन्य क्षमताओं को स्वदेशी तकनीक से अत्याधुनिक बनाना होगा, जिससे कोई भी दुश्मन देश हमारी तरफ देखने से पहले सौ बार सोचे. बहरहाल, स्वदेश में निर्मित जीवनरक्षक दवाओं से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि युद्धक्षेत्र में हमारे जांबाज जवानों का खून व्यर्थ न बहे. इस खोज के लिए डीआरडीओ बधाई का पात्र है.