ब्लॉग: नई तकनीकों के इस्तेमाल के बीच रोजगार की चुनौती

By भरत झुनझुनवाला | Published: January 18, 2022 10:32 AM2022-01-18T10:32:13+5:302022-01-18T10:35:16+5:30

हमारी आर्थिक विकास दर में गिरावट केवल आर्थिक नीतियों के बल पर नहीं संभल सकती. वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी चुनौती नई तकनीकों से सामंजस्य बैठाने की है. 

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ब्लॉग: नई तकनीकों के इस्तेमाल के बीच रोजगार की चुनौती

Highlights2050 में चीन के बाद भारत विश्व की नंबर-2 अर्थव्यवस्था बन सकता है.वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी चुनौती नई तकनीकों से सामंजस्य बैठाने की है. 2035 तक 50 प्रतिशत रोजगार का हनन हो जाएगा क्योंकि ये कार्य रोबोट द्वारा किए जाएंगे.

तमाम वैश्विक आकलनों के अनुसार भारत विश्व की सबसे तेज आर्थिक विकास हासिल करने वाली अर्थव्यवस्था बन चुका है. वैश्विक सलाहकार संस्था प्राइस वाटरहॉउस कूपर्स ने कहा है कि 2050 में चीन के बाद भारत विश्व की नंबर-2 अर्थव्यवस्था बन सकता है यदि आर्थिक सुधारों को लागू किया जाए. 

सामान्य रूप से वैश्विक संस्थाओं का दबाव रहता है कि जीएसटी, बुनियादी संरचना, पूंजी के मुक्त आवागमन और मुक्त व्यापार जैसे सुधारों को लागू किया जाए. 

गौर करने वाली बात यह है कि इन्हीं सुधारों को लागू करने के बावजूद हमारी आर्थिक विकास दर पिछले छह वर्षो में लगातार गिर रही है. इसलिए इतना सही है कि हमें आर्थिक नीतियों में बदलाव करना पड़ेगा. लेकिन यह सही नहीं कि इन्हीं आर्थिक सुधारों के सहारे हम आगे बढ़ सकेंगे.

यहां विश्व की सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था और आर्थिक विकास दर में गिरावट के विपरीताभास से भ्रमित नहीं होना चाहिए क्योंकि हमारी कथित तेज विकास दर अंधों में काना राजा जैसी है.

सत्य यह है कि हमारी आर्थिक विकास दर में गिरावट केवल आर्थिक नीतियों के बल पर नहीं संभल सकती. वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी चुनौती नई तकनीकों से सामंजस्य बैठाने की है. 

सेंट स्टीफेंस यूनिवर्सिटी, कनाडा के प्रोफेसर मैथ्यू जानसन ने कहा है कि 2035 तक 50 प्रतिशत रोजगार का हनन हो जाएगा क्योंकि ये कार्य रोबोट द्वारा किए जाएंगे. 

भारत के लिए यह परिस्थिति विशेषकर दुरूह है क्योंकि बड़ी संख्या में युवा हमारे श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं. यदि इन्हें आय अर्जित करने का समुचित अवसर नहीं मिलेगा तो ये कुंठित होंगे और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होंगे. 

औरंगाबाद के एक प्रोफेसर ने बताया कि उनके एमए की डिग्री हासिल किए हुए छात्र एटीएम तोड़ने जैसी आपराधिक घटनाओं में लिप्त हो रहे हैं क्योंकि उनके पास रोजगार नहीं है. 

दूसरी तरफ केरल में एक रेस्तरां में एक रोबोट द्वारा भोजन परोसा जा रहा है और हमारी अपनी मेट्रो में भी बिना ड्राइवर की ट्रेन को चलाया गया है. इसलिए दो परस्पर विरोधी चाल हमारे सामने है. एक तरफ नई तकनीकों के उपयोग से रोजगार का हनन हो रहा है तो दूसरी ओर बड़ी संख्या में युवा श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं.

इस समस्या को और गंभीर बनाया है हमारी उन नीतियों ने जिनमें छोटे उद्यमियों को बड़े उद्यमों से सीधे प्रतिस्पर्धा में खड़े होने के लिए कहा गया है. 

बड़े उद्योगों की उत्पादन लागत कम आती है. जैसे दवा का उत्पादन करने वाली बड़ी कंपनी कच्चे माल को चीन से आयात करेगी, कंटेनर को ब्राजील से लाएगी और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जर्मनी से आयात करेगी. इनके पास अच्छी गुणवत्ता के इंजीनियर होंगे. 

बड़े पैमाने पर भी उत्पादन करने से लागत कम आती है, जैसे घानी से तेल निकालने में लागत ज्यादा आती है जबकि एक्सपेलर में लागत कम आती है. 

इसलिए बड़े उद्योगों को बढ़ावा देकर हम सस्ते माल का उत्पादन अवश्य कर रहे हैं लेकिन इसमें रोजगार का हनन हो रहा है. हमारे सामने ही नहीं बल्कि विश्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि हम युवाओं को इस बदलते तकनीकी परिदृश्य में रोजगार उपलब्ध कराएं.

अंतरराष्ट्रीय सलाहकार कंपनी आर्थर डी लिटिल और बैंक ऑफ अमेरिका ने कहा है कि स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहन और छोटे उद्योगों को सहायता देनी चाहिए. लेकिन प्रोत्साहन पर्याप्त नहीं होगा. 

कारण यह कि छोटे उद्यमी की उत्पादन लागत ज्यादा आएगी ही. इन्हें कच्चा माल छोटी मात्रा में स्थानीय सप्लायर से खरीदना पड़ता है, तुलना में घटिया गुणवत्ता के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण लगाने पड़ते हैं और एक ही व्यक्ति को उत्पादन, बैंक, खाता, श्रमिक आदि सब काम देखने पड़ते हैं. 

इन सभी कार्यो में इनकी कुशलता बड़ी कंपनियों की तुलना में न्यून होती है. इस समस्या का समाधान भारत सरकार द्वारा छोटे उद्योगों के क्लस्टर बनाकर हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है. 

मनमोहन सिंह सरकार के समय एक कमेटी ने कहा था कि छोटे उद्योगों का विशेष स्थानों पर एक झुंड बना दिया जाए जैसे मुरादाबाद में पीतल के सामान का और लुधियाना में होजियरी का तो ये बड़े उद्योगों का सामना करने में सक्षम हो सकते हैं. 

इनके कई कार्य सामूहिक स्तर पर किए जा सकते हैं जैसे कच्चे माल की गुणवत्ता की टेस्टिंग करना अथवा प्रदूषण नियंत्रण के उपकरण सामूहिक रूप से स्थापित करना इत्यादि. लेकिन इस नीति के बावजूद अपने देश में छोटे उद्योग पिट रहे हैं और रोजगार की समस्या गहराती जा रही है. 

इसलिए केवल समर्थन की हवाई बातों को करने के स्थान पर हमें समझना होगा कि छोटे उद्योगों को यदि जीवित रखना है तो उन्हें वित्तीय सहायता देनी ही पड़ेगी.

हमारे सामने दो रास्ते हैं. यदि हम बड़े उद्योगों से उत्पादन कराएंगे तो बेरोजगारी बढ़ेगी, अपराध बढ़ेंगे, बेरोजगारी भत्ता देना होगा और अपराध से भी आर्थिक विकास का ह्रास होगा. 

इन बेरोजगारी भत्ते और अपराध के नियंत्रण के मूल्य को यदि छोटे उद्योगों को आर्थिक सहायता के रूप में दे दिया जाए तो छोटे उद्योग चल निकलेंगे, उनके द्वारा रोजगार उत्पन्न होंगे और ये खर्च करने की सरकार को जरूरत नहीं पड़ेगी.

Web Title: economy new technologies employment smes

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