जिला परिषद चुनावः कांग्रेस के समर्थन से बना बीजेपी का डूंगरपुर जिला प्रमुख!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: December 14, 2020 04:36 PM2020-12-14T16:36:10+5:302020-12-14T16:37:28+5:30
दिलचस्प बात यह है कि पिछली बार के राजस्थान के सियासी संकट से सीएम अशोक गहलोत की सरकार को बचाने के लिए बीटीपी के ही दो विधायकों ने समर्थन किया था.
सियासत में केवल सत्ता ही सत्य है, सिद्धांत बेमतलब हैं, इसे साबित किया है राजस्थान के डूंगरपुर जिले में संपन्न जिला प्रमुख चुनाव ने, जिसमें डूंगरपुर जिला परिषद के जिला प्रमुख पद पर कांग्रेस के समर्थन से बीजेपी ने अपना जिला प्रमुख बनाया है.
जिला प्रमुख पद पर निर्दलीय नामांकन भरकर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी की सूर्या अहारी ने कांग्रेस के समर्थन से बीटीपी समर्थित पार्वती को एक वोट से हराकर जिला प्रमुख पद पर जीत हासिल की है. उल्लेखनीय है कि जिला परिषद की 27 सीटों में से बीटीपी समर्थित 13 निर्दलीय जीतकर आये थे, तो कांग्रेस के 6 और बीजेपी के 8 उम्मीदवार जीते थे.
जाहिर है, कांग्रेस या बीजेपी में से किसी के भी पास बहुमत नहीं था, जिसके नतीजे में जिला प्रमुख चुनाव में बीटीपी को हराने के लिए पहली बार दो एकदम विरोधी राष्ट्रीय दल बीजेपी और कांग्रेस ने हाथ मिलाया, जिला प्रमुख चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा और बीजेपी ने सियासी आपदा को जीत के अवसर में बदल दिया.
ऐसा नहीं है कि विरोधी विचारधारा के दल सत्ता के लिए एकसाथ नहीं आए हों, आपातकाल के बाद सारे गैर-कांग्रेसी दल एक मंच पर थे, तो ऐसे ही अनेक मौकों पर गैर-कांग्रेसी या गैर-भाजपाई दल एक मंच पर आते रहे हैं, किन्तु बीजेपी और कांग्रेस के एकसाथ आने का यह चमत्कारिक उदाहरण है.
यह बात अलग है कि केन्द्र में पीएम मोदी की सरकार आने के बाद कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना के चलते बीजेपी का तेजी से कांग्रेसीकरण किया गया है और अनेक प्रमुख कांग्रेसी नेताओं को बीजेपी ने अपनी पार्टी में शामिल किया है.
दिलचस्प बात यह है कि पिछली बार के राजस्थान के सियासी संकट से सीएम अशोक गहलोत की सरकार को बचाने के लिए बीटीपी के ही दो विधायकों ने समर्थन किया था, लेकिन अब बीटीपी नेता छोटूभाई वसाना ने ट्वीट किया है- बीजेपी, कांग्रेस एक हैं, राजस्थान सरकार से बीटीपी अपना समर्थन वापस लेगी.
याद रहे, दक्षिण राजस्थान के इस क्षेत्र की लंबे समय से उपेक्षा हो रही है, बीसवीं सदी में भीखाभाई, मामा बालेश्वर दयाल, हरिदेव जोशी आदि प्रमुख नेताओं की विशेष कोशिशों के कारण इस क्षेत्र की तस्वीर बदलने लगी थी और स्थानीयवाद की धारणा कमजोर पड़ी थी, लेकिन पिछले लंबे से यह क्षेत्र विकास की मुख्यधारा से दूर होता जा रहा है!