ब्लॉग: मादक पदार्थों का कारोबार, अनेक हाथों का साथ
By Amitabh Shrivastava | Published: October 21, 2023 10:40 AM2023-10-21T10:40:12+5:302023-10-21T10:42:19+5:30
इस परिदृश्य में राजनीतिज्ञों, प्रशासन और पुलिस का एक-दूसरे को दोष देना कोरी बयानबाजी है। दरअसल सच्चाई यह है कि यह गोरखधंधा किसी एक संरक्षण में पनपा नहीं है। वर्तमान में प्रमाण भी सामने हैं।
धीमी आवाज में कह कर भी इस बात में अब कोई शक की गुंजाइश नहीं है कि महाराष्ट्र मादक पदार्थों के कारोबार का देश में सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है, जिसकी पुष्टि अपराध जगत से जुड़े आंकड़े कर रहे हैं। हालांकि मादक पदार्थों का उपयोग करने वाली आबादी की तुलना में पंजाब से कम हो सकते हैं, लेकिन व्यापार में तो महाराष्ट्र काफी आगे निकल चुका है।
इस परिदृश्य में राजनीतिज्ञों, प्रशासन और पुलिस का एक-दूसरे को दोष देना कोरी बयानबाजी है। दरअसल सच्चाई यह है कि यह गोरखधंधा किसी एक संरक्षण में पनपा नहीं है। वर्तमान में प्रमाण भी सामने हैं। यद्यपि उन्हें आश्चर्यजनक की तरह देखना सामान्य भूल है।
नशीले पदार्थों का नासिक में रहने वाला बड़ा कारोबारी ललित पाटिल करीब तीन साल पहले गिरफ्तार हुआ था और उसे येरवडा जेल में रखा गया था। मगर वह टीबी और हार्निया के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती हुआ और वहां से भाग गया।
वह अपने नेटवर्क से चेन्नई तक पहुंचा और वहां से दोबारा गिरफ्तार हुआ। एक शराब कंपनी के पूर्व कर्मचारी का नशे का कारोबार विदेशों तक फैला है। यह माना गया है कि उसने जेल से भी अपना धंधा चलाया और जब वह अस्पताल में भी था, तब भी वह अपना काम कर रहा था। उसके भागने से ठीक तीन दिन पहले पुणे पुलिस ने उसके सहयोगी सुभाष मंडल को ससून अस्पताल के बाहर दो करोड़ रुपए मूल्य के 1.70 किलोग्राम से अधिक नशे के सामान के पैकेट के साथ पकड़ा था।
दरअसल, उसके काम करने के तरीके में दबंगई देख कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि उसके हाथ बहुत लंबे हैं। कुछ प्रमाणों के अनुसार वह एक राजनीतिक दल से संबंध रखता था। यही वजह है कि जब उसकी कारस्तानी उजागर होने लगी तो आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला आरंभ हो गया। यहां तक कि मामले में सत्तारूढ़ गठबंधन के मंत्री पर भी आरोप लगा। इस संबंध में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी खुलकर सामने आए और उन्होंने जल्द ही बड़ा खुलासा करने का दावा किया।
महाराष्ट्र में चल रहे नशे के कारोबार में पहली बार राजनीति खुलकर सामने आई है। नशे के लिए बदनाम पंजाब में एक पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया और हाल में कांग्रेस के विधायक सुखपाल सिंह खैरा के नाम सीधे तौर पर जांच में सामने आए और कार्रवाई भी हुई है। यह स्पष्ट भी है और अनेक बार प्रमाणित हो चुका है कि इतना बड़ा तथा व्यापक गैरकानूनी कार्य बिना राजनीतिज्ञों, पुलिस और प्रशासन के प्रश्रय के पनप नहीं सकता है। महाराष्ट्र की समुद्री सीमा और अंतरराष्ट्रीय हवाई यातायात के साथ गुजरात और गोवा जैसे राज्यों से सीधा संपर्क नशे के कारोबार को रसद पहुंचाने का काम करते हैं। केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो (एनसीबी) की महाराष्ट्र में विशेष रूप से मुंबई, पुणे और नागपुर में कार्रवाइयां इसका समर्थन करती हैं।
पहले यह माना जाता था कि मुंबई का माफिया नशे के कारोबार को चलाता है, मगर पिछले कुछ सालों में पुलिस ने मुठभेड़ों के माध्यम से उसकी कमर तोड़ दी है. लिहाजा अब नशे का कारोबार केवल उसी धंधे में लिप्त लोगों के हाथ में है। जिसका एक उदाहरण ललित पाटिल है। हालांकि यह नाम केवल सामने आया है। ऐसे दर्जनों नामों की फेहरिस्त बनाई जा सकती है।
यह भी स्पष्ट है कि मादक पदार्थ आते कहां से हैं और जाते कहां पर हैं, फिर भी उन्हें स्थाई रूप से खत्म कर पाने में कोई समक्ष साबित नहीं हो पाता है। भारत सरकार ने समाज कल्याण मंत्रालय की ओर से 15 अगस्त 2020 को देश के 272 जिलों में ‘नशा मुक्त भारत अभियान’ की शुरुआत की थी फिर भी नशे के पदार्थों का उत्पादन और आयात दोनों अपनी जगह अपने स्तर से जोरों से चल रहा है। महानगरों के युवाओं में नशे की खपत लगातार बढ़ रही है।
यह बीमारी कस्बों में भी फलने-फूलने लगी है। इसका कारण गांजा, अफीम, चरस, हेरोइन, ब्राउन शुगर, स्मैक आदि की सहज उपलब्धता है। कहा जाता है कि शराब के बाद सबसे ज्यादा अफीम, गांजा तथा भांग का सेवन किया जाता है। भारत में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पूर्वी राज्य, राजस्थान आदि गांजा और अफीम का अच्छा खासा उत्पादन करते हैं। अनेक बार खेतों में कार्रवाई भी होती है मगर सिलसिला अपनी जगह जारी रहता है।
इसके अतिरिक्त दक्षिण अमेरिका और पश्चिमी अफ्रीका से लेकर पाकिस्तान-अफगानिस्तान तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नशीले पदार्थों का नेटवर्क काम करता है। इसमें भारत से बड़े पैमाने पर चलने वाला अफीम का कारोबार शामिल रहता है। इसके व्यापार में सड़क और हवाई मार्ग से कई बार छापे पड़े हैं और माल जब्त किया गया है। मगर उनमें यह भी जानकारी मिलती है कि भौगोलिक दृष्टि से कितनी दूर-दूर तक इन गैरकानूनी नशीले पदार्थों की सप्लाई होती है।
भारत में नशीले पदार्थों के इस्तेमाल या कारोबार पर यूं तो आपराधिक कार्रवाई का प्रावधान है, फिर भी कई ‘फार्मास्युटिकल ड्रग्स’ का स्वास्थ्य से संबंधित अनेक समस्याओं में महत्वपूर्ण ढंग से इस्तेमाल होता है. दूसरी ओर इनका प्रयोग अवैध नशीले पदार्थों के रूप में भी होता है। यह साफ करता है कि इतना बड़ा नेटवर्क बिना किसी सहयोग और समर्थन के आगे नहीं बढ़ सकता है।
राज्य में गैरकानूनी कारोबार के रूप में चलने वाले शराबखानों, नाचखानों, जुआ अड्डे और नशीले पदार्थों के कारोबारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिज्ञों के संरक्षण में चल रहे हैं या फिर उन पर पुलिस और प्रशासन का वरदहस्त है। अन्यथा इतने सुरक्षित ढंग से अवैध धंधों के संचालन का प्रश्न ही नहीं उठता है। समस्या और नाम उजागर तभी होते हैं, जब किसी के हित आहत होते हैं या अपेक्षित लाभ नहीं मिलता है। चुनावी राजनीति में भी अक्सर सहायता इन्हीं के माध्यम से पहुंचती है।
बीते दिनों तो मामला तब बिगड़ा जब आतंकवाद के पालन-पोषण में भी इन्हीं तत्वों का हाथ नजर आने लगा इसलिए व्यापक पैमाने पर कार्रवाइयां होने लगीं।
इस बीच, अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान, अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या जैसे मामलों में मादक पदार्थों की भूमिका से चर्चाओं का बाजार गर्म हुआ है। किंतु बिना राजनीतिक इच्छाशक्ति और ईमानदारी के इस पर न तो सवाल उठाए जा सकते हैं, न इसे समूल नष्ट किया जा सकता है। सच्चाई यही है कि नशे कारोबार पर उंगली उठाने वाले सभी हाथ हमाम में नंगे हैं।