डॉ. विशाला शर्मा का ब्लॉग: हिंदी साहित्य में गांधीवादी विचारधारा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 30, 2020 06:11 AM2020-01-30T06:11:01+5:302020-01-30T06:11:01+5:30
हिंदी साहित्यकारों में रामधारीसिंह ‘दिनकर’, सुमित्रानंदन पंत, माखनलाल चतुर्वेदी, मैथिलीशरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी, सोहनलाल द्विवेदी, भवानीप्रसाद मिश्र आदि कवियों ने गांधी विचारधारा को साहित्य में अपनी कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया है.
महात्मा गांधी की विचार पद्धति का व्यापक नाम गांधी विचारधारा है. हिंदी साहित्य पर महात्मा गांधी के विचारों का स्पष्ट प्रभाव हमें दिखलाई देता है. 1921 से 1940 के बीच गांधी के विचारों का प्रभाव साहित्य पर पड़ा. सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह एवं रामराज्य उनके आदर्श थे. उनका मानना था कि सत्ता संभालने का अर्थ स्वयं को समाज सेवा से जोड़ना है. हिंदी साहित्यकारों में रामधारीसिंह ‘दिनकर’, सुमित्रानंदन पंत, माखनलाल चतुर्वेदी, मैथिलीशरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी, सोहनलाल द्विवेदी, भवानीप्रसाद मिश्र आदि कवियों ने गांधी विचारधारा को साहित्य में अपनी कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया है.
आलोचना के क्षेत्र में नंददुलारे वाजपेयी ने यह स्वीकार किया कि भौतिकता केंद्रित जीवन दृष्टि की तुलना में गांधी की सर्वसमावेशी जीवन दृष्टि उनके आलोचना कर्म के केंद्र में रही ‘एक गांधीवादी योगी’ शीर्षक से भवानी प्रसाद मिश्र के लिए डॉ. युगेश्वर लिखते हैं-‘‘उन्होंने साहित्य में गांधीवाद को स्थापित किया है. उगाया है.
मिश्र जी ने काव्यगत क्षेत्र में कई प्रकार की रचना की है. वे गांधी के विचारों को महत्वपूर्ण मानते थे. खादी को वे राष्ट्रीयता नहीं मानवता का प्रतीक मानते थे. पं. माखनलाल चतुर्वेदी, पं. बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ तथा श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जैसे व्यक्तित्वों के संपर्क में ढलकर भवानी प्रसाद मिश्र ने गांधी व्यक्तित्व को अपने भीतर उतारकर सशक्त बनाने का सफल प्रयास किया. हिंदी के माध्यम से देश एक हो सके यह कामना महात्मा गांधी की थी. भाषा में देश की आत्मा के स्वर होते हैं. श्रम ही पूजा है, संकल्प में बल है, मैत्री समर्पण से मिलती है, समय का अपना मूल्य है.
हमें अपने अहंकार को जीतना होगा. ऐसे जीवन के विविध पहलुओं पर उनका चिंतन विशाल था. उन्होंने सत्य के प्रयोग में अपनी भूलों को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है. गांधी जी का जीवनचरित्र उन्हें बैरिस्टर मोहनदास गांधी से महात्मा और बापू संबोधन तक ले जाता है. और यही कारण था कि महात्मा गांधी के विराट व्यक्तित्व और जीवन दर्शन की गहरी छाप लगभग सभी भारतीय भाषाओं के साहित्य पर पड़ी. हिंदी में माखनलाल चतुर्वेदी ‘नि:शस्त्र सेनानी’ कविता को गांधी जी पर रचित पहली कविता मानते हैं. गद्य में दिनकर द्वारा ‘साहित्य में गांधी को जिंदा रखने की चाह’ 1943 में लिखा गया. 1920 में ‘पथिक’ रामनरेश त्रिपाठी द्वारा लिखित कविता है. इस कविता में ‘पथिक’ गांधी ही है.
‘वैष्णव जन की पराई पीर’ की अनुभूति हमें मिश्र जी के काव्य में मिलती है.
‘‘बसे वह प्यार की बस्ती
कि जिसमें हर किसी का दुख मेरा शूल हो जाए
मुझे तिरसूल भी मारे कोई यदि दूर करने में उसे
तो फूल हो जाए.’’