डॉ. एस. एस. मंठा का ब्लॉग: डिजिटल क्रांति और मानव संवेदना
By डॉ एसएस मंठा | Published: March 14, 2020 07:58 AM2020-03-14T07:58:13+5:302020-03-14T07:58:13+5:30
शरीर की शुद्धि का मार्ग आयुर्वेद में बताया गया है. यह है पंचकर्म अथवा पांच प्रक्रियाएं, जो मानव शरीर से विषाक्त पदार्थो को बाहर निकालती हैं. हम जो खाद्य पदार्थ ग्रहण करते हैं उसमें पचने लायक पदार्थों को शरीर ग्रहण कर लेता है और जो विष शेष बचता है उसे शरीर से बाहर निकालने की आवश्यकता होती है. लेकिन आज के आधुनिक युग में जो डिजिटल विष फैल रहा है, कौन सा ‘पंचकर्म’ इस जहर को बाहर निकाल सकता है?
मोटे तौर पर हमारे जीवन के दो हिस्से होते हैं- एक तर्कप्रधान और दूसरा भावनाप्रधान. मनुष्य की संतुष्टि उसकी इच्छाओं की पूर्ति पर निर्भर करती है. इच्छापूर्ति नहीं होने पर ही वह असंतोष का अनुभव करता है. लेकिन आज की तेज रफ्तार दुनिया में कई बार इच्छाएं बेलगाम हो जाती हैं और हम खुद को अस्वस्थ महसूस करने लगते हैं.
शरीर की शुद्धि का मार्ग आयुर्वेद में बताया गया है. यह है पंचकर्म अथवा पांच प्रक्रियाएं, जो मानव शरीर से विषाक्त पदार्थो को बाहर निकालती हैं. हम जो खाद्य पदार्थ ग्रहण करते हैं उसमें पचने लायक पदार्थों को शरीर ग्रहण कर लेता है और जो विष शेष बचता है उसे शरीर से बाहर निकालने की आवश्यकता होती है. लेकिन आज के आधुनिक युग में जो डिजिटल विष फैल रहा है, कौन सा ‘पंचकर्म’ इस जहर को बाहर निकाल सकता है?
इस डिजिटल विष का ज्वलंत उदाहरण सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग है. कई बार सोशल मीडिया के अत्यधिक इस्तेमाल से अनेक मित्र हमारे शत्रु भी बन जाते हैं. परिवार के सदस्यों के बीच जीवंतता नहीं दिखाई देती. खाने की टेबल पर भी लोग एक दूसरे से बात करने के बजाय अपने-अपने मोबाइल स्क्रीन में ही उलझे रहते हैं.
प्रौद्योगिकी के अत्यधिक इस्तेमाल से हमारी नींद पर असर पड़ने लगता है, आंखें थकने लगती हैं, देखने की क्षमता घटने लगती है, सिरदर्द बढ़ने लगता है. सात हजार लोगों पर की गई एक रिसर्च से पता चला है कि कम्प्यूटर पर लगातार काम करने वाले करीब 70 प्रतिशत लोगों की आंखों पर बुरा असर पड़ा.
जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार डिजिटल मीडिया का सतत इस्तेमाल करने वाले किशोरों और युवाओं के लिए किसी एक चीज पर ध्यान केंद्रित करना संभव नहीं हो पाता. इसलिए हमें डिजिटल पंचकर्म की भी आज आवश्यकता है, जिसमें सोशल मीडिया के अनावश्यक इस्तेमाल में कमी लाना शामिल है.
वर्तमान में हमें विचार करने के लिए समय ही नहीं मिल रहा है, जिससे हमारी सोचने-समझने की शक्ति का ह्रास हो रहा है. कृत्रिम बुद्धिमत्ता के आगमन के बाद इसके और बढ़ने की आशंका है.