डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉगः चुनाव में ‘नोटा’ का बढ़ता इस्तेमाल  

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 6, 2019 02:29 AM2019-01-06T02:29:09+5:302019-01-06T02:29:09+5:30

हालांकि नोटा के प्रावधान ने लोगों का ध्यान खींचा है, लेकिन अभी यह सकारात्मक भूमिका नहीं निभा रहा है.

Dr. S. S. Blog of Mantha: Increasing use of 'Nota' in elections | डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉगः चुनाव में ‘नोटा’ का बढ़ता इस्तेमाल  

सांकेतिक तस्वीर

हाल ही में हुए पांच राज्यों के चुनाव में चार राज्यों में पहले से विद्यमान सरकार को मतदाताओं ने नकार दिया और एक राज्य में वर्तमान सरकार को भारी बहुमत से बरकरार रखा. वर्तमान में गठबंधन सरकारों की प्रथा है. लेकिन इस बार के चुनाव में गठबंधनों की कोई विशेष भूमिका नहीं थी. कांग्रेस को दो राज्यों में बढ़त मिली तो तीसरे राज्य में उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं था. तेलंगाना राष्ट्र समिति ने एआईएमआईएम से हाथ मिलाया था तो मिजोरम में राजग का घटक मिजो नेशनल फ्रंट था. लेकिन इस बार गठबंधनों में घटक दलों का महत्व कुछ खास नहीं था. इन चुनावों में यह महत्वपूर्ण बात देखने को मिली. 

इन चुनावों में घटक दलों की अपेक्षा नोटा (नन ऑफ न अवव) अधिक प्रभावी साबित हुआ है. सभी राज्यों में कुल मिलाकर करीब 15 लाख लोगों ने नोटा का बटन दबाकर सारे उम्मीदवारों के प्रति अपनी नापसंदगी व्यक्त की. अगर राज्यवार देखा जाए तो राजस्थान में 1.3 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 1.4 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में  2.1 प्रतिशत मत नोटा को गए हैं. राजस्थान में 15 निर्वाचन क्षेत्रों में हार-जीत के अंतर से ज्यादा मत नोटा को मिले हैं. मध्य प्रदेश में नोटा का प्रभाव 22 निर्वाचन क्षेत्रों में दिखाई दिया और इसकी वजह से चार मंत्रियों को पराजय ङोलनी पड़ी.

हमारी मतदान व्यवस्था में नोटा का विकल्प उपलब्ध कराया गया है ताकि किसी को अगर कोई उम्मीदवार पसंद न हो तो वह नोटा के माध्यम से इसे व्यक्त कर सके. इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश पी. सदाशिवम ने कहा था, ‘‘जैसे मतदान का अधिकार वैधानिक अधिकार है, वैसे ही उम्मीदवारों को नकारने का अधिकार भी भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे संविधान के मूलभूत अधिकारों में शामिल होना चाहिए.’’

लेकिन नोटा ने कई सवाल भी पैदा किए हैं. नोटा में दिए गए मत को क्या विद्यमान सरकार के खिलाफ दिए गए वोट समझना चाहिए? कारण यह कि विपक्ष के उम्मीदवारों का मतदाताओं को अनुभव नहीं होने से उन्हें नकारने का प्रश्न ही नहीं उठता. लेकिन यदि पंजीकृत राजनीतिक दलों को नोटा में पड़े मतों से कम मत मिलें तो क्या होगा? उस स्थिति में संबंधित निर्वाचन क्षेत्र को रिक्त घोषित करने संबंधी कानून क्या बनाया जा सकता है? नोटा के प्रभाव के बारे में ध्यान नहीं देना कितना उचित है? वर्तमान में उम्मीदवारों की जमानत रकम  जब्त करते समय नोटा को मिलने वाले मतों पर विचार नहीं किया जाता है.

हालांकि नोटा के प्रावधान ने लोगों का ध्यान खींचा है, लेकिन अभी यह सकारात्मक भूमिका नहीं निभा रहा है. अगर मैं वोट देता हूं तो चाहता हूं कि उसे अन्य वोटों के समान ही माना जाए, वह निरुपयोगी न साबित हो अथवा उसकी गणना शून्य के रूप में न की जाए!

Web Title: Dr. S. S. Blog of Mantha: Increasing use of 'Nota' in elections