ब्लॉग: आरोप-प्रत्यारोप की भेंट चढ़ी संविधान पर चर्चा
By ललित गर्ग | Published: December 17, 2024 06:42 AM2024-12-17T06:42:47+5:302024-12-17T06:43:02+5:30
निश्चित ही संविधान देश का सुरक्षा कवच है. लोकसभा में संविधान पर बहस की मूल आवश्यकता उन कारणों पर बुनियादी चर्चा की थी जिनके चलते संविधान निर्माताओं के सपने अभी भी अधूरे हैं

ब्लॉग: आरोप-प्रत्यारोप की भेंट चढ़ी संविधान पर चर्चा
सर्वोच्च लोकतांत्रिक सदन लोकसभा संजीदा बहस की जगह हंगामे का केंद्र बनती जा रही है, जो दुर्भाग्यपूर्ण एवं विडंबनापूर्ण है. जहां जनता से जुड़े मुद्दों पर सार्थक बहस की जगह शोर-शराबा, हंगामा और सदन का स्थगित होना ही आम होता जा रहा है. यही बात लोकसभा में संविधान को लेकर हुई दो दिनों की बहस की चर्चा के दौरान देखने को मिली.
संविधान निर्माण के 75वें वर्ष पर हुई यह चर्चा भी छिछालेदार, आरोप-प्रत्यारोप एवं उच्छृंखलता का माध्यम बनी, जबकि संविधान पर इस चर्चा से जनता को एवं देश को सही दिशा मिलनी चाहिए थी, कांग्रेस संविधान पर चर्चा करते समय यह भी भूल गई कि वह यदि मोदी सरकार के एक दशक के कार्यकाल की गलतियां गिनाएगी तो उसे भी अपने चार दशकों के कार्यकाल की गलतियों हिसाब देना होगा.
संविधान पर चर्चा के दौरान जैसे विपक्ष ने सत्तापक्ष पर आरोपों की झड़ी लगाई वैसे ही सत्तापक्ष ने भी विपक्ष पर आरोपों की बौछार की. लेकिन यह सब करते हुए पक्ष एवं विपक्ष ने संविधान की विशेषताओं को उजागर करने की सकारात्मकता की बजाय विध्वंसात्मक नीति का ही सहारा लिया.
जहां विपक्ष ने आरक्षण विरोधी आरोपों को दोहराते हुए कहा कि सत्तापक्ष मूल रूप से आरक्षण की व्यवस्था के खिलाफ है और जब-तब दबे-छुपे ढंग से उसकी यह अंदरूनी इच्छा संघ और पार्टी के छोटे-बड़े नेताओं के बयानों से जाहिर होती रहती है. जवाब में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया कि आरक्षण की जो व्यवस्था अभी लागू है, उनकी सरकार उस पर आंच नहीं आने देगी, लेकिन धर्म के आधार पर आरक्षण देने की कोई भी कोशिश वह सफल नहीं होने देगी. जाहिर है, इसमें मतदाताओं को अपनी पाली में करने की दोनों पक्षों की कोशिश भी देखी और पहचानी जा सकती है.
निश्चित ही संविधान देश का सुरक्षा कवच है. लोकसभा में संविधान पर बहस की मूल आवश्यकता उन कारणों पर बुनियादी चर्चा की थी जिनके चलते संविधान निर्माताओं के सपने अभी भी अधूरे हैं और नियम-कानूनों पर संविधान की मूल भावना के अनुरूप पालन नहीं हो पा रहा है. बहरहाल, इसमें शक नहीं कि बहस का केंद्र यही सवाल रहा कि कौन संविधान और संवैधानिक मूल्यों को लेकर समर्पित है और कौन इस पर दोहरा खेल खेल रहा है?