दिनकर कुमार का ब्लॉग: एनआरसी- नाजी प्रयोग को असम में दोहराने की तैयारी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 27, 2019 02:46 PM2019-06-27T14:46:43+5:302019-06-27T14:46:43+5:30
30 मई 2019 को भाजपा सरकार की तरफ से विदेशी (ट्रिब्यूनल) संशोधन आदेश, 2019 जारी कर देश के सभी राज्यों में ऐसे ट्रिब्यूनल गठित करने का निर्देश दिया गया है.
असम में अगले महीने 30 जुलाई को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का प्रकाशन होने वाला है. राज्य के लाखों भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों से नागरिकता छीनकर उनको यातना शिविरों में बंद करने की पूरी तैयारी हो चुकी है. एक ऐसे प्रयोग के लिए जमीन तैयार की जा रही है जिसे आने वाले समय में देश भर में आजमाया जा सकता है और एक ही झटके में अल्पसंख्यकों से नागरिकता छीनकर उनका सामूहिक संहार किया जा सकता है.
देश के नए गृह मंत्नी अमित शाह ने चुनावी भाषणों में घुसपैठियों की तुलना दीमक से करते हुए उनको कुचलने की मंशा जाहिर करते हुए कहा था, ‘‘हम पूरे देश में एनआरसी को लागू करेंगे और एक-एक घुसपैठिए को निकाल बाहर करेंगे. हम घुसपैठियों को अपना वोट बैंक नहीं मानते. हमारे लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है. हम सुनिश्चित करेंगे कि प्रत्येक हिंदू और बौद्ध शरणार्थी को भारत की नागरिकता मिले.’’ सत्ता में आते ही शाह ने अपनी घोषणा पर गंभीरता से काम करना शुरू कर दिया है.
30 मई 2019 को भाजपा सरकार की तरफ से विदेशी (ट्रिब्यूनल) संशोधन आदेश, 2019 जारी कर देश के सभी राज्यों में ऐसे ट्रिब्यूनल गठित करने का निर्देश दिया गया है. इससे साफ संकेत मिलता है कि शाह अगले पांच सालों में पूरे देश में नागरिकता छीनने का अभियान एनआरसी के बहाने शुरू करना चाहते हैं.
गृह मंत्नालय ने विदेशी (ट्रिब्यूनल) संशोधन आदेश, 1962 में दो नए पैराग्राफ जोड़कर न्याय के सिद्धांत पर ही सवालिया निशान लगा दिया है. अब अगर किसी व्यक्ति को विदेशी होने के संदेह में गिरफ्तार किया जाता है तो वह सिर्फ ट्रिब्यूनल में ही कुछ नियमों और शर्तो के आधार पर अपील कर सकता है. वह ऊंची अदालत में अब नहीं जा पाएगा. इसका अर्थ है कि सेना के पूर्व जवान सानुल्ला ने जिस तरह उच्च न्यायालय में जाकर अपनी नागरिकता साबित की और डिटेन्शन कैंप से रिहा हो पाए, उस तरह अब कोई व्यक्ति अपनी फरियाद लेकर ऊंची अदालत में नहीं जा पाएगा. इस तरह ट्रिब्यूनल को असीमित अधिकार प्रदान किए गए हैं. किसी भी निचली अदालत को इस तरह असीमित अधिकार नहीं दिए गए हैं. नागरिकता के सर्वाधिक महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार को लेकर ट्रिब्यूनल को मनमानी करने की पूरी छूट दे दी गई है.
असम में केंद्र 31 जुलाई 2019 से पहले ऐसे 1000 ट्रिब्यूनल बनाने के लिए असम सरकार की मदद कर रहा है. ट्रिब्यूनल के सदस्य के तौर पर ऐसे लोगों को शामिल किया जा रहा है जो कानून के जानकार नहीं हैं और जिनकी योग्यता भी संदिग्ध है. उच्चतम न्यायालय का निर्देश था कि ट्रिब्यूनल में न्यायिक सदस्यों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए. हकीकत में ऐसा नहीं हो रहा है. सरकार के नजदीकी लोगों को सदस्य बनाया जा रहा है.