ब्लॉग: ढील देने के बावजूद फंसी हुई है 'पतंग'

By Amitabh Shrivastava | Published: April 20, 2024 09:45 AM2024-04-20T09:45:50+5:302024-04-20T09:49:01+5:30

आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 0.93 प्रतिशत मत मिले, जो वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में दो सीट जीतकर ही 1.34 प्रतिशत तक पहुंच गए।

Despite relaxation in AIMIM issue stuck | ब्लॉग: ढील देने के बावजूद फंसी हुई है 'पतंग'

ब्लॉग: ढील देने के बावजूद फंसी हुई है 'पतंग'

जैसा ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के सांसद इम्तियाज जलील अपने भाषणों और साक्षात्कारों में कहते आए हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का औरंगाबाद सीट पर लड़ने का इरादा कभी नहीं था। वह सबसे आखिरी में संसदीय चुनाव की राजनीति में किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतरे और जीत भी गए।

एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी बिहार की किसनगंज सीट को लक्ष्य बना कर पार्टी का विस्तार करना चाह रहे थे, लेकिन सब कुछ आशा के विपरीत ही हुआ। किंतु जो हुआ सो हुआ, अब वैसा नहीं है। इस बार एआईएमआईएम पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ने के लिए तैयार है, लेकिन उससे हाथ मिलाने के लिए कोई तैयार नहीं है। यहां तक कि पिछले साथी भी मुंह फेर कर देखने को तैयार नहीं हैं।

हैदराबाद की पार्टी एआईएमआईएम ने महाराष्ट्र में मराठवाड़ा के दरवाजे से नांदेड़ में प्रवेश किया और महानगर पालिका में अपनी मजबूत जगह बनाई। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को औरंगाबाद मध्य से इम्तियाज जलील और मुंबई के उपनगर भायखला से वारिस पठान के रूप में दो विधायक मिले। बाद में तत्कालीन औरंगाबाद महानगर पालिका में भी उसे सफलता मिली।

राजनीतिक दृष्टि से मुंबई, धुलिया, मालेगांव, परभणी, हिंगोली, जालना, सोलापुर और पुणे में अपने अस्तित्व को तैयार करने का रास्ता बना। पार्टी की सोच स्थानीय निकायों के माध्यम से आगे बढ़ने की थी, लेकिन वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव ने पार्टी महत्वाकांक्षा को पंख ही लगा दिए।

विधायक के बाद सांसद बनने से इम्तियाज जलील के रूप में संभावना के द्वार खुल गए। फिर अकोला, अमरावती, नागपुर, महाराष्ट्र से लगे मध्यप्रदेश के भाग बुरहानपुर और खंडवा तक पैर पसारने का सपना देखा गया। किंतु वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में औरंगाबाद मध्य की सीट से हाथ धोना पड़ा और मुंबई की सीट भी गंवानी पड़ी। हालांकि दो नई सीटें धुलिया और मालेगांव के रूप में जरूर हाथ लग गईं। आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 0.93 प्रतिशत मत मिले, जो वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में दो सीट जीतकर ही 1.34 प्रतिशत तक पहुंच गए।

इसके साथ लोकसभा चुनाव में पार्टी का ग्राफ एक सीट पर चुनाव लड़ने और जीतने के साथ 0.73 प्रतिशत मत तक टिका रहा। इस जीत में उसे प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी का समर्थन काम आया। हालांकि अकोला, सोलापुर जैसे स्थानों पर एआईएमआईएम का लाभ वंचित बहुजन आघाड़ी को नहीं मिला। उसे सोलापुर में 2,78,848 और अकोला में 1,70,007 मत मिले।

कुल जमा 47 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए उसे कुल 6.99 प्रतिशत मत हासिल हुए। वहीं दूसरी तरफ वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में वंचित बहुजन आघाड़ी ने 288 में से 234 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4.6 प्रतिशत मत पाए. मगर लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में 12 लाख मतों की कमी आई। फिर भी गठबंधन के लिए आधार अच्छा माना गया।

बीते विधानसभा और लोकसभा चुनाव की स्थितियों को देखते हुए वंचित बहुजन आघाड़ी के प्रति अन्य दलों का आकर्षण स्वाभाविक है। एआईएमआईएम के औरंगाबाद के सांसद इम्तियाज जलील ने अनेक बार प्रकाश आंबेडकर से गठबंधन करने का प्रस्ताव रखा, मगर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।

यहां तक कि अमरावती में जब उनके भाई आनंदराज आंबेडकर ने लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन भरा तो सांसद जलील ने उन्हें अपने घर पर समर्थन देने की घोषणा की। इसके बाद बीत रहे सप्ताह में जब ओवैसी छत्रपति संभाजीनगर के जिले के दौरे पर आए तो उन्होंने अनेक मंचों से वंचित बहुजन आघाड़ी को समर्थन देने का ऐलान किया। यहां कि अपने समर्थन को भावनात्मक बनाने के लिए पिछले चुनाव का अहसान चुकाना तक बताया।

इतना सब कुछ होकर भी प्रकाश आंबेडकर की ओर से कोई न धन्यवाद आया और न ही सहयोग को अस्वीकार करने की घोषणा की गई। स्पष्ट है कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में एआईएमआईएम को अपनी सीट बचाने के लिए दलित मतों की अत्यधिक आवश्यकता है। उसने बीते पांच साल में अपने विस्तार में दलितों को आकर्षित करने का प्रयास किया। किंतु उसे स्वाभाविक तौर पर दलित मतों को खींचने वाला नेता नहीं मिला।

ऐसे में उसे केवल मुस्लिम मतों के सहारे नैया पार करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। एआईएमआईएम के साथ वंचित बहुजन आघाड़ी की बेरुखी की सीधी वजह पिछले लोकसभा चुनाव में उसे एक भी सीट नहीं मिल पाना है। औरंगाबाद सीट पर समर्थन देने के बाद प्रकाश आंबेडकर को अपेक्षा थी कि सोलापुर या अकोला में मुस्लिम मतों का साथ मिलने से कम से कम एक जगह तो विजय मिलेगी। मगर औरंगाबाद सीट पर जीत के बाद अर्थ यही निकाला गया कि वंचित बहुजन आघाड़ी को एआईएमआईएम का साथ नहीं मिला।

अब ताजा परिदृश्य में एआईएमआईएम ने भले ही बीते दिनों में अपने पांव पसारने की कोशिश की हो, लेकिन उसके साथ कोई नया वोट बैंक नहीं जुड़ा है। पार्टी की लगातार कोशिशों को कोई सफलता नहीं मिली है। नौबत यहां तक है कि एआईएमआईएम को संदेश देने के लिए वंचित बहुजन आघाड़ी ने अपना एक उम्मीदवार मैदान में उतार दिया है। इतना सब होने के बावजूद एआईएमआईएम ने आशा नहीं छोड़ी है। वह अपनी फंसी ‘पतंग’ को ढील देकर फिर आसमान में उड़ाने की कोशिश कर रही है।

यद्यपि इस बार चुनावी समीकरण अलग हैं, जिनमें वह पूरी तरह से अलग-थलग है। मत विभाजन की आशंका पूरी-पूरी है, किंतु जीत के लिए आवश्यक मतों का एकजुट रहना आसान नहीं है। फिर भी चुनावी हवा किसे उड़ा ले जाए और किसे जमीन पर ले आए, कहा नहीं जा सकता है। यूं भी आशा से ही तो आसमान टिका है।

Web Title: Despite relaxation in AIMIM issue stuck

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