डेरेक ओ ब्रायन का ब्लॉगः राज्यों के साथ समन्वय की इच्छा का केंद्र में अभाव

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: June 1, 2020 10:06 AM2020-06-01T10:06:22+5:302020-06-01T10:06:22+5:30

Derek O Brien s blog: lack of desire to coordinate with states | डेरेक ओ ब्रायन का ब्लॉगः राज्यों के साथ समन्वय की इच्छा का केंद्र में अभाव

migrant workers

भारत में नोवेल कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ लड़ाई का सबसे दुखद और निराशाजनक पहलू प्रवासी श्रमिकों की भयावह तकलीफें रहा है. वे दूसरे राज्यों में फंसे, अचानक नौकरी, आजीविका के साधन या सिर की छत से भी हाथ धो बैठे. उसी समय स्पष्ट रूप से प्रवासी श्रमिक अपने घर जाना चाहते थे. यह एक आर्थिक और भावनात्मक जरूरत थी. उन्हें अपने पैतृक गांवों में अपने परिवार के साथ सुरक्षित महसूस करवाने की आवश्यकता थी.
चूंकि केवल चार घंटे के नोटिस के साथ लॉकडाउन की घोषणा की गई थी इसलिए वे नहीं जा पाए. और फिर गर्मी की भयानक त्रसदी ने भी अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया. इसे टाला ज सकता था. सांसदों को दिल्ली से उड़ कर अपने घर जाने के लिए 48 घंटे दिए गए - लेकिन प्रवासी श्रमिक, जो व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर थे, को सिर्फ चार घंटे दिए गए!

एक वैकल्पिक परिदृश्य पर विचार करें. भारतीय रेलवे के पास 2.3 करोड़ यात्रियों का प्रतिदिन परिवहन करने की क्षमता है. इसमें लगभग आधे यात्री मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे उपनगरीय शहरों में सफर करते हैं. लगभग 1.20 करोड़ यात्री प्रतिदिन लंबी दूरी की यात्र करते हैं. जब लॉकडाउन किया गया तो सभी यात्री ट्रेनें बंद कर दी गईं. इस प्रकार 1.20 करोड़ यात्रियों के परिवहन की क्षमता उपलब्ध थी. फिजिकल डिस्टेंसिंग के मानकों का पालन करते हुए अपनी आधी क्षमता में भी भारतीय रेलवे साठ लाख यात्रियों को प्रतिदिन एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जा सकती थी, दूरस्थ शहरों से श्रमिकों को उनके गांवों के नजदीक पहुंचा सकती थी.

इस हिसाब से पांच दिनों में 3 करोड़ यात्रियों को ले जाया जा सकता था. अगर कोई यह माने कि कुछ रेल मार्गो पर भारी यातायात होगा तो इस पांच दिवसीय यात्र को एक सप्ताह तक बढ़ाया जा सकता था. यही वह चीज है जिसकी हमें जरूरत थी. लेकिन इस अवधि में रेलवे मृगतृष्णा का शिकार हो गया. उसने कोरोना वायरस के मरीजों के आइसोलेशन बेड की व्यवस्था करने के लिए पांच हजार गैर-वातानुकूलित कोच अलग कर दिए. वे कोच कहां हैं और उनमें से कितनों का उपयोग किया गया है? सुर्खियों में आने के लक्ष्य से परे भी क्या कुछ सोचा गया था?

1 मई को बहुत अधिक धूमधाम और प्रचार के बीच, प्रवासियों के लिए विशेष ट्रेनें शुरू कर दी गईं. निष्ठुरता की हद यह थी कि हफ्तों से बेरोजगार चल रहे यात्रियों से टिकट के पैसे का भुगतान करने को कहा गया. कें द्र सरकार ने दावा किया कि प्रवासी श्रमिकों ने भुगतान नहीं किया. कुछ फर्जी और तकनीकी गणनाएं दिखाकर उसने दावा किया कि वह लागत का 85 प्रतिशत खर्च कर रही है.

केंद्र ने जहां अपनी जिम्मेदारी की अनदेखी की, वहीं राज्यों ने अपने कंधे पर बोझ उठाया. उदाहरण के लिए बंगाल ने अपने घर आने वाले सभी प्रवासी श्रमिकों का स्वागत करते हुए उनका भुगतान किया है. ट्रेनें चलाती तो केंद्रसरकार है लेकिन इसके लिए पृष्ठभूमि बनाने का काम राज्य सरकारों द्वारा ही किया जाता है. राज्य सरकारों को अपने राज्य में आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग करनी होती है. घर में या कहीं बाहर क्वारंटाइन के दौरान प्रवासी श्रमिकों की निगरानी करनी होती है. इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि जिस राज्य से यात्रियों को भेजा जाए, जिस राज्य में वे पहुंचें, उनके और भारतीय रेलवे के बीच पूरा समन्वय हो.

यहां भी रेल मंत्रलय ने संघवाद को नजरंदाज करने और अपनी सुविधा के हिसाब से चलने की कोशिश की. महाराष्ट्र प्रवासी श्रमिकों को भेजने का इच्छुक था और प. बंगाल उनको स्वीकार करके खुश था. दो राज्य सरकारें एक निर्धारित शेड्यूल बनाने के लिए बातचीत कर रही थीं, ताकि सभी सुरक्षा मानकों को बनाए रखा जा सके. इसी बीच भारतीय रेलवे ने महाराष्ट्र-बंगाल के लिए एक के बाद एक करके तेजी से 37 ट्रेनों की घोषणा कर दी. राज्य सरकारों को सूचित तक नहीं किया गया. मुंबई और कोलकाता के बीच गलतफहमी पैदा करने की यह कोशिश थी.

इस तरह के कदमों से बंगाल जैसे राज्य, जिन्होंने महामारी को बेहतर ढंग से संभाला, को दंडित किया जा रहा है. आज बंगाल औसतन नौ हजार टेस्ट रोज कर रहा है, जिसमें केस मिलने की दर 2.5 प्रतिशत है जिसे आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है. अगर प्रवासी कामगारों को पहले भेज दिया जाता जब संक्रमण की दर कम थी या धीरे-धीरे भेजा जाता तब भी ठीक था. लेकिन भारतीय रेलवे भेजने वालों की संख्या अचानक बढ़ा रही है और चीजें अनिश्चित होती जा रही हैं.

संसद सत्र एक बार शुरू होने दें, मोदी-शाह और उनके रेल मंत्री को अनेक प्रश्नों के जवाब देने होंगे.

Web Title: Derek O Brien s blog: lack of desire to coordinate with states

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