आरएसएस-मोदी के सौहार्द्र के पीछे कौन?, प्रधानमंत्री ने संघ की तारीफ की...

By हरीश गुप्ता | Updated: April 10, 2025 05:22 IST2025-04-10T05:22:42+5:302025-04-10T05:22:42+5:30

पीएम ने कहा कि आरएसएस की वजह से उन्हें जीवन का उद्देश्य मिला है और प्रधानमंत्री के तौर पर नागपुर में आरएसएस मुख्यालय का ऐतिहासिक दौरा किया.

delhi Who behind RSS mohan bhagwat pm narendra modi harmony blog harish gupta History created assembly elections of Haryana, Maharashtra and Delhi | आरएसएस-मोदी के सौहार्द्र के पीछे कौन?, प्रधानमंत्री ने संघ की तारीफ की...

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Highlightsभाजपा अपने ही रास्ते पर चलती रही और ‘अबकी बार 400 पार’ का लक्ष्य रखा. 2024 के लोकसभा चुनावों में केवल 240 सीटों पर सिमट गई.हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में इतिहास रच दिया.

अरुण कुमार के बारे में सुना है! पूर्वी दिल्ली की झिलमिल कॉलोनी में जन्मे, वे 18 साल की उम्र में आरएसएस के प्रचारक (पूर्णकालिक कार्यकर्ता) बन गए और 2021 में भाजपा के साथ समन्वयक बने. यह एक बड़ी चुनौती है क्योंकि उन्होंने अपने पूर्ववर्ती कृष्ण गोपाल की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली है, जिनके तहत आरएसएस ने अपने राजनीतिक विंग पर नियंत्रण खोना शुरू कर दिया था.

भाजपा अधिक मुखर हो गई थी और प्रमुख मुद्दों पर परामर्श कम हो गया था. भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के यह कहने के बाद कि संगठन ‘सक्षम’ है और उसे राजनीतिक समर्थन के लिए अपने मूल निकाय पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है, संबंध और खराब हो गए. आरएसएस नेतृत्व ने चेतावनी दी लेकिन भाजपा अपने ही रास्ते पर चलती रही और उसने ‘अबकी बार 400 पार’ का लक्ष्य रखा.

लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में केवल 240 सीटों पर सिमट गई. यह धैर्य का खेल था और अरुण कुमार ने उस केमिस्ट्री को फिर से स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई जिसे नजरंदाज कर दिया गया था. आरएसएस फिर से सक्रिय हो गया और भाजपा ने हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में इतिहास रच दिया.

मोदी ने भी एक कदम आगे बढ़कर दिल्ली में मराठी साहित्य सम्मेलन में आरएसएस की तारीफ की. बाद में, लेक्स फ्रीडमैन के पॉडकास्ट पर बोलते हुए, पीएम ने कहा कि आरएसएस की वजह से उन्हें जीवन का उद्देश्य मिला है और प्रधानमंत्री के तौर पर नागपुर में आरएसएस मुख्यालय का ऐतिहासिक दौरा किया. उन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की भी तारीफ की.

संघ परिवार के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अरुण कुमार ने मोदी के साथ व्यक्तिगत संबंध विकसित कर लिए थे क्योंकि उन्होंने दिल्ली, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में प्रचारक के तौर पर भी काम किया था, जब मोदी इन राज्यों के मामलों को संभाल रहे थे. अरुण कुमार की अतिरिक्त योग्यता यह है कि वे कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ हैं.

बताया जाता है कि अनुच्छेद 370 को हटाने के संबंध में सरकार की जम्मू-कश्मीर नीति तैयार करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. अरुण कुमार की सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के नए अध्यक्ष की तलाश है जो एक साल से अटकी हुई है क्योंकि ऐसे व्यक्ति को आरएसएस और मोदी दोनों का भरोसा हासिल करना होगा.

नड्डा चुप क्यों हैं?

केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा में भाजपा संसदीय दल के नेता जे.पी. नड्डा, जो वर्तमान में पार्टी प्रमुख के रूप में काम संभाल रहे हैं, को अनिश्चित काल के लिए सेवा विस्तार दिया जा सकता है. हालांकि, पार्टी प्रमुख की भूमिका को सक्रिय रूप से निभाने के बजाय, नड्डा चुपचाप काम कर रहे हैं और ऐसा लगता है कि अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति होने तक, जब तक अपरिहार्य न हो,  पार्टी की गतिविधियों से खुद को अलग कर रखा है. इसी वजह से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह देश भर में यात्रा कर रहे हैं और पार्टी के कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं.

इसमें कोई शक नहीं है कि वे पीएम मोदी के सबसे भरोसेमंद सिपहसालार हैं और फ्रंटफुट पर बल्लेबाजी कर रहे हैं. मोदी के नागपुर दौरे से पहले, शाह आरएसएस के नए बने दिल्ली मुख्यालय केशव कुंज गए और शीर्ष नेतृत्व के साथ बातचीत की. शाह सरकार और संगठन में नियुक्तियों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं.

संसद हो या पार्टी, अमित शाह दूसरे नंबर की कमान संभालते रहे हैं. कई लोगों को आश्चर्य है कि क्या नए पार्टी प्रमुख को चुनने में और भी देरी हो सकती है क्योंकि कई राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरा करने की प्रक्रिया अभी भी लंबित है और ऐसा लगता है कि इस प्रक्रिया को पूरा करने की कोई जल्दी नहीं है.

प. बंगाल में भाजपा को करिश्माई नेता की तलाश

भाजपा पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ एक करिश्माई चेहरे की तलाश कर रही है, खासकर एक महिला की. भाजपा ने 2021 के विधानसभा चुनावों में 77 सीटें जीती थीं और अब यह संख्या घटकर 65 हो गई है. भाजपा 2026 के चुनावों में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती और सत्ता हथियाने के लिए दृढ़ संकल्प है.

चूंकि ममता बनर्जी अपने पारंपरिक वोट बैंक के अलावा लगभग 27-28% अल्पसंख्यक वोटों पर निर्भर हैं, इसलिए भाजपा उनकी छवि को नुकसान पहुंचाना चाहती है. भाजपा को चुनावी रणनीति बदलनी होगी और उस लक्ष्य की ओर दृढ़ता से काम करना होगा. यदि पिछले महीने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की पश्चिम बंगाल की 10 दिवसीय लंबी यात्रा के संकेतों को मानें तो आक्रामक हिंदुत्व नया चुनावी मुद्दा है.

भागवत ने ‘हिंदू एकता’ की बात कही और इस साल आरएसएस शाखाओं की संख्या 6000 से बढ़ाकर 12,000 करने की घोषणा की. एक साल के भीतर शाखाओं की संख्या दोगुनी करने का उद्देश्य पश्चिम बंगाल में भगवा झंडा फहराना है, जो भाजपा के लिए अभेद्य किला है. आरएसएस ने 6 अप्रैल को राम नवमी से बंगाल में अपनी पहुंच की शुरुआत की थी और कम से कम 1,000 जगहों पर जुलूस निकाले थे.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए शिक्षक घोटाले के फैसले ने हालांकि ममता की छवि पर दाग लगाया है, लेकिन उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है क्योंकि अभी तक उन पर भ्रष्टाचार का कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं लगा है.

2026 के चुनावों में राज्य में भाजपा बनाम तृणमूल मुकाबला देखने को मिल सकता है क्योंकि कांग्रेस और सीपीएम तीसरी ताकत बनने के लिए जमीन पर पैर नहीं जमा पा रहे हैं. भाजपा की असली चुनौती एक करिश्माई महिला नेता को ढूंढ़ना है, भले ही वह ‘आयातित किस्म’ की ही क्यों न हो.

और अंत में

लोकसभा सांसद मीसा भारती अपने पिता लालू प्रसाद यादव की जगह राजद अध्यक्ष बनना चाहती हैं, जिनकी तबीयत ठीक नहीं है. हालांकि वे परिवार के अन्य सदस्यों के साथ ‘जमीन के बदले नौकरी’ घोटाले में ईडी और सीबीआई जांच का सामना कर रही हैं. लेकिन यह कोई बाधा नहीं है.

उनके छोटे भाई तेजस्वी यादव पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं और इस पद के लिए दावेदार हैं. लेकिन मीसा इस प्रतिष्ठित पद को चाहती हैं और उनके भाई तेज प्रताप यादव सहित परिवार के अन्य सदस्यों ने उनका समर्थन किया है. लालू यादव फिलहाल एम्स में भर्ती हैं और परिवार में इस पद के लिए खींचतान है.

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