चुनावी राजनीति में ‘बी’ टीम होने के आरोपों का क्या है सच?

By राजकुमार सिंह | Updated: February 27, 2025 05:39 IST2025-02-27T05:38:42+5:302025-02-27T05:39:39+5:30

Delhi Election 2025: केंद्रीय सत्ता का लक्ष्य हासिल नहीं हुआ तो दिल्ली में आप को हराने के उद्देश्य के साथ कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में ताल ठोंक दी.

Delhi Election 2025 What is truth about allegations being 'B' team electoral politics blog raj kumar singh | चुनावी राजनीति में ‘बी’ टीम होने के आरोपों का क्या है सच?

सांकेतिक फोटो

Highlightsराष्ट्रीय राजनीति में मोदी की भाजपा से मुकाबले के लिए कांग्रेस और आप, ‘इंडिया’ गठबंधन में साथ आ गए.कम-से-कम 14 सीटों पर आप को हरवा दिया.आप ने जो भूमिका निभाई, वही इस बार दिल्ली में कांग्रेस ने निभाई.

Delhi Election 2025: आम आदमी पार्टी के दिल्ली की सत्ता से बेदखल होने से संतुष्ट कांग्रेस ने अब बसपा पर निशाना साधा है. राहुल गांधी ने अब मायावती की चुनावी रणनीति पर सवाल उठाते हुए बसपा को भाजपा की ‘बी’ टीम बताने की कोशिश की है. आप और कांग्रेस के बदलते रिश्ते किसी से छिपे नहीं. आप ने कांग्रेस से दिल्ली और पंजाब की सत्ता तो छीनी ही, गुजरात और गोवा समेत कुछ अन्य राज्यों में भी उसे नुकसान पहुंचाया. फिर भी राष्ट्रीय राजनीति में मोदी की भाजपा से मुकाबले के लिए कांग्रेस और आप, ‘इंडिया’ गठबंधन में साथ आ गए.

लेकिन जब केंद्रीय सत्ता का लक्ष्य हासिल नहीं हुआ तो दिल्ली में आप को हराने के उद्देश्य के साथ कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में ताल ठोंक दी. पिछली बार साढ़े चार प्रतिशत से कम मत पानेवाली कांग्रेस 2.8 प्रतिशत मत बढ़ा कर भी लगातार तीसरी बार खाता नहीं खोल पाई, लेकिन कम-से-कम 14 सीटों पर आप को हरवा दिया.

अतीत में आप ने जो भूमिका निभाई, वही इस बार दिल्ली में कांग्रेस ने निभाई. तब आप को भाजपा की ‘बी’ टीम कहा गया, अब कांग्रेस को क्या कहा जाए? चुनावी मुकाबले में तीसरे खिलाड़ी पहले भी बाजी पलटते रहे हैं. दिल्ली, पंजाब, गुजरात और गोवा में तो आप की चुनावी मौजूदगी बहुत स्पष्ट नजर आई, लेकिन हरियाणा में भी उसकी भूमिका नजरअंदाज नहीं की जा सकती.

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से बमुश्किल एक प्रतिशत मत ज्यादा पा कर भाजपा वहां भी सत्ता की ‘हैट्रिक’ में सफल हो गई. बेशक इनेलो-बसपा और जजपा-आसपा जैसे गठबंधनों ने चुनाव को बहुकोणीय बना दिया था, लेकिन कांग्रेस-आप साथ होते तो परिणाम बदल भी सकता था. अब राहुल गांधी द्वारा बसपा पर टिप्पणी को समझते हैं. अतीत में बसपा से चुनावी गठबंधन कर चुकी कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दलित राजनीति में कांशीराम और मायावती के योगदान की प्रशंसा करते हुए टिप्पणी की कि अब बहन जी सरकारात्मक ढंग से चुनाव नहीं लड़तीं.

उन्होंने कहा कि अगर बसपा, ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ होती तो भाजपा नहीं जीत पाती. जाहिर है, वह पिछले लोकसभा चुनाव की बात कर रहे हैं, जिनमें ‘इंडिया’ गठबंधन के चलते भाजपा 303 से घटकर 240 सीटों पर आ गई. उत्तर प्रदेश ने पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा को बहुमत दिलवाने में बड़ी भूमिका निभाई और लगातार दूसरी बार राज्य में उसकी सरकार भी बनाई.

 पर लोकसभा चुनाव में जोरदार झटका दे दिया. इसीलिए राहुल कह रहे हैं कि बसपा भी साथ होती तो भाजपा हार जाती. मामला चुनावी रणनीति के अलावा वोट बैंक का भी है. आप ने कांग्रेस के परंपरागत गरीब, दलित और अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध लगाकर नुकसान पहुंचाया तो उसने वापस पाने की कवायद में इस बार दिल्ली में हिसाब बराबर कर लिया.

कांग्रेस और बसपा के बीच तल्खी के मूल में दलित वोट बैंक भी है. बसपा  से पहले दलित, कांग्रेस का वोट बैंक रहे. उत्तर प्रदेश और पंजाब में बड़ी संख्या में होने के अलावा शेष देश में भी दलित वोट बैंक की चुनावी राजनीति में प्रभावशाली भूमिका है.  कांग्रेस की नजर दलित वोट बैंक पर है, जिसमें मायावती की अबूझ राजनीति के चलते बिखराव दिख रहा है.  

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