ब्लॉग: हैकर्स पर आखिर लगाम लगेगी कैसे..?

By विकास मिश्रा | Published: January 29, 2022 09:01 AM2022-01-29T09:01:53+5:302022-01-29T09:04:01+5:30

कहा जा रहा है कि साइबर अपराधियों ने करीब 20 हजार लोगों का डाटा बिक्री के लिए रखा है जिसमें सबका नाम, पता और मोबाइल नंबर से लेकर उनकी कोविन रिपोर्ट तक उपलब्ध है. जाहिर सी बात है कि यदि साइबर अपराधियों ने एप्प के भीतर पैठ बनाई होगी तो क्या उन्होंने लाखों लोगों का डाटा नहीं चुराया होगा?

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ब्लॉग: हैकर्स पर आखिर लगाम लगेगी कैसे..?

Highlightsसाइबर अपराधियों ने कोविन एप्प के करीब 20 हजार लोगों का डाटा बिक्री के लिए रखा है.अभी कहना मुश्किल है कि कितने लोगों का डाटा लीक हुआ है.

कोविड-19 से लड़ने के लिए जब कोविन एप्प की परिकल्पना सामने आई तो उस वक्त यह सवाल उठा था कि क्या लोगों की निजी जानकारियां वहां सुरक्षित रह पाएंगी? सरकारी एजेंसियों ने दावा किया कि सब कुछ सुरक्षित है और किसी भी व्यक्ति का कोई भी डाटा अवैध तरीके से बाहर आने की कोई आशंका नहीं है. 

मगर पिछले सप्ताह जब साइबर सुरक्षा शोधकर्ता राजशेखर राजहरिया ने ट्वीट किया कि बहुत सारे लोगों का डाटा ‘रेड फोरम’ की वेबसाइट पर बिक्री के लिए अपराधियों ने डाल दिया तो सब के होश फाख्ता हो गए.

कहा जा रहा है कि साइबर अपराधियों ने करीब 20 हजार लोगों का डाटा बिक्री के लिए रखा है जिसमें सबका नाम, पता और मोबाइल नंबर से लेकर उनकी कोविन रिपोर्ट तक उपलब्ध है. जाहिर सी बात है कि यदि साइबर अपराधियों ने एप्प के भीतर पैठ बनाई होगी तो क्या उन्होंने लाखों लोगों का डाटा नहीं चुराया होगा? 

बहरहाल, अभी कहना मुश्किल है कि कितने लोगों का डाटा लीक हुआ है लेकिन इतना तो साफ लग रहा है कि मामला बहुत बड़ा है. हालांकि पहली बार ऐसा नहीं हुआ है. साइबर अपराधियों ने पहले भी इस तरह की डाटा चोरी की है और बाजार में उसे बेचा भी है.

स्वाभाविक रूप से आपके जेहन में यह सवाल पैदा होगा कि ये डाटा खरीदेगा कौन? ...और हमारी-आपकी निजी जानकारी खरीद कर कोई करेगा क्या? यदि आप ऐसा सोच रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप बहुत भोले-भाले इंसान हैं. 

क्या आपने कभी सोचा है कि आपके नंबर पर किसी टेली-मार्केटिंग वाले का या फिर किसी कंपनी के प्रतिनिधि का फोन कैसे आ जाता है? या आपके मेल आईडी पर अनजाने मेल कहां से आ जाते हैं. आपने तो फोन नंबर या मेल आईडी शेयर किया नहीं था, फिर सामने वाले को ये कैसे मिल गए? 

दरअसल, ये मामला तो स्थानीय स्तर का है जहां टेलीफोन सर्विस देने वाली कंपनी से मोबाइल नंबर की सूची दूसरों तक पहुंच जाती है. मेल आईडी के साथ भी ऐसा ही होता है. 

अब जरा इसे बड़े स्तर पर समझिए तो आपकी समझ में आ जाएगा कि यदि भारत के बहुत सारे लोगों का फोन नंबर या मेल आईडी और अन्य जानकारियां मिल जाती हैं तो क्या विदेशी जासूसी संस्थानों के लिए भारत के बारे में विश्लेषण करना आसान नहीं हो जाएगा? आपकी जानकारी उनके पास होगी तो क्या वे आपको क्षति नहीं पहुंचा सकते? क्या ब्लैकमेल करने की कोशिश नहीं कर सकते? 

कर सकते हैं, इसीलिए कहा भी जाता है कि इंटरनेट की दुनिया में निजी जानकारियां खजाना होती हैं. कोई कंपनी या एप्प बनाने वाली कंपनी निजता की कितनी भी बात करे, हकीकत यह है कि इंटरनेट की दुनिया में सब कुछ बिकता है. जरा सोचिए कि उन्हें आपके फोन को पूरी तरह एक्सेस करने की अनुमति क्यों चाहिए? जाहिर सी बात है कि दाल में कहीं काला जरूर है..!

यदि किसी के पास आपका मेल आईडी पहुंच जाता है तो वह वायरस वाले मेल आपको भेज सकता है. यदि आपने जरा सी गलती की और लिंक क्लिक कर दिया तो आपके कम्प्यूटर या मोबाइल में वायरस पहुंचते देर नहीं लगेगी. आपका कम्प्यूटर लॉक हो सकता है और उसके बाद साइबर अपराधी आपसे फिरौती मांग सकता है. 

भारत में कई बड़ी कंपनियों के बड़े अधिकारियों और प्रबंधन के साथ ऐसा हो चुका है. इसी तरह कई बार इस तरह का वायरस आपके कम्प्यूटर में पहुंचा दिया जाता है जो आपके हर कामकाज पर नजर रखता है. यहां तक कि आपने की-बोर्ड पर क्या टाइप किया है यह भी हैंडलर तक पहुंच जाता है. 

पिछले दिनों आपने स्पाईवेयर को लेकर भी खूब चर्चा सुनी होगी. आरोप लगे थे कि कुछ वरिष्ठ नेताओं से लेकर पत्रकारों और बड़े उद्योगपतियों तक के फोन पर नजर रखी जा रही थी. यह काम स्पाईवेयर के माध्यम से ही होता है. 

यह स्पाईवेयर कम्प्यूटर चलाने की आपकी आदतों पर तो नजर रखता ही है, ऑनलाइन एक्टिविटी को भी याद रखता है. यहां तक कि आपका माइक्रोफोन भी टेप हो जाता है. इसी तरह ‘की-लॉगर’ नाम का स्पाईवेयर आपके की-वर्ड को याद कर लेता है और साइबर अपराधी को भेज देता है. यदि आपने अपने क्रेडिट कार्ड का नंबर और पासवर्ड अपने की-बोर्ड पर टाइप किया है तो वह साइबर अपराधी तक पहुंच जाएगा.

यहां मैं साइबर ठगी की तो बात कर ही नहीं रहा हूं जिसका शिकार हर घंटे कोई न कोई हो रहा होता है. अरबों-खरबों रुपए ठगे जा रहे हैं लेकिन वो पैसा वापस नहीं आ पाता है. निश्चित रूप से लोगों की सतर्कता से ही ठगी रुक सकती है लेकिन यदि हमारी सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हो तो साइबर अपराधियों पर नकेल कसी जा सकती है. 

आखिर कोई अपराधी किसी व्यवस्था से बड़ा कैसे हो सकता है? कहने को हर राज्य में पुलिस का साइबर सेल मौजूद है लेकिन उसके पास जितने संसाधन होने चाहिए, क्या वो हैं? क्या साइबर क्राइम को रोकना हमारी सरकार की प्राथमिकता में है? 

सरकार को इस मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनानी चाहिए. साइबर विजिलेंस बढ़ाने के साथ ही साइबर अपराध को इतना दंडनीय बना देना चाहिए कि अपराध करने के पहले अपराधी कई बार सोचे. तभी लगेगी लगाम.

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