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ब्लॉग: बाल विवाह रोकने के लिए अदालत का ठोस कदम सराहनीय

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: May 4, 2024 10:34 IST

छह राज्यों में लड़कियों के बाल विवाह बढ़े जिनमें मणिपुर, पंजाब, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल शामिल हैं, वहीं आठ राज्यों में लड़कों की शादियां नाबालिग रहते हो रही हैं जिनमें छत्तीसगढ़, गोवा, मणिपुर और पंजाब शामिल हैं।

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आगामी दस मई को अक्षय तृतीया के अवसर पर बाल विवाह होने की आशंका के मद्देनजर राजस्थान हाईकोर्ट ने इसके लिए सरपंच और पंच को जिम्मेदार ठहराने की जो बात कही है वह निश्चित रूप से बाल विवाह जैसी कुरीति को रोकने के लिए एक सराहनीय कदम है। उच्च न्यायालय ने राजस्थान सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि राज्य में कोई बाल विवाह नहीं हो। इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि बाल विवाह होने पर सरपंच और पंच को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। 

उल्लेखनीय है कि बाल विवाह की कई घटनाएं मुख्य रूप से अक्षय तृतीया पर होती हैं। वैसे तो सरपंच और पंच को जिम्मेदार ठहराने का यह आदेश केवल राजस्थान के लिए है लेकिन पूरे देश के लिए इस तरह का नियम बनाए जाने की जरूरत है। हालांकि अधिकारियों के प्रयासों और जनजागरूकता के कारण बाल विवाह में पहले के मुकाबले अब काफी कमी आई है लेकिन अभी भी इस कुरीति का पूरी तरह से खात्मा नहीं हुआ है। चिंताजनक यह भी है कि पिछले दिनों बाल विवाह को लेकर एक वैश्विक हेल्थ जर्नल- लैंसेट के अध्ययन में कहा गया कि पिछले कुछ साल में बाल विवाह को रोकने के लिए होने वाले प्रयास रुक गए हैं। 

वर्ष 2016 से 2021 के बीच पांच वर्षों की अवधि में बाल विवाह को लेकर हुए अध्ययन में कहा गया  कि कुछ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में बाल विवाह बेहद आम बात हो गई है। छह राज्यों में लड़कियों के बाल विवाह बढ़े जिनमें  मणिपुर, पंजाब, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल शामिल हैं, वहीं आठ राज्यों में लड़कों की शादियां नाबालिग रहते हो रही हैं जिनमें छत्तीसगढ़, गोवा, मणिपुर और पंजाब शामिल हैं। 

वर्ष 1993 से 2021 के दौरान भारत का राष्ट्रीय फैमिली हेल्थ सर्वे हुआ था और बाल विवाह पर लैंसेट के अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने इसी सर्वे का डाटा इस्तेमाल किया. शोध टीम में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्च अधिकारी और भारत सरकार से जुड़े अधिकारी भी शामिल थे। वर्ष 2021 में नेशनल क्राइम ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों में भी बताया गया था कि साल 2020 में बाल विवाह के मामलों में उसके पिछले साल की तुलना में करीब 50 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।

करीब तीन साल पहले बाल अधिकार संस्था ‘सेव द चिल्ड्रेन’ ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि दक्षिण एशिया में हर साल 2000 लड़कियों (हर दिन 6) की मौत बाल विवाह के कारण हो रही है।  जाहिर है कि इस कुप्रथा पर रोक लगाना बेहद जरूरी है. हालांकि अक्षय तृतीय पर होने वाले बाल विवाह को रोकने के लिए विभिन्न राज्यों में हर साल कदम उठाए जाते हैं, फिर भी अगर इस पर रोक नहीं लग पा रही है तो राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों की तरह देश भर में ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

टॅग्स :कोर्टराजस्थान
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