अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: क्या वरदान भी साबित हो सकता है ओमिक्रॉन? दक्षिण अफ्रीका के अनुभव के बाद दुनिया के अनेक वैज्ञानिकों को बंध रही है उम्मीद

By Amitabh Shrivastava | Updated: December 30, 2021 16:32 IST2021-12-30T16:20:27+5:302021-12-30T16:32:34+5:30

दक्षिण अफ्रीकी राज्य गुटेंग के स्वास्थ्य विभाग की सलाहकार और विटवाटरसेंड विश्वविद्यालय की पब्लिक हेल्थ मेडिसिन विशेषज्ञ हर्षा सोमारू का कहना है कि पहले की तुलना में इस बार हर उम्र के मरीज को ज्यादा दिनों तक अस्पताल में रहना नहीं पड़ रहा है।

corona effect does omicron termed as blessing to us after south africa experience | अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: क्या वरदान भी साबित हो सकता है ओमिक्रॉन? दक्षिण अफ्रीका के अनुभव के बाद दुनिया के अनेक वैज्ञानिकों को बंध रही है उम्मीद

अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: क्या वरदान भी साबित हो सकता है ओमिक्रॉन? दक्षिण अफ्रीका के अनुभव के बाद दुनिया के अनेक वैज्ञानिकों को बंध रही है उम्मीद

Highlightsओमिक्रॉन के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि ये गले में पहुंच कर शरीर के श्वसन तंत्र में मौजूद एंटीबॉडी तंत्र को फायदा पहुंचाता है। ओमिक्रॉन के मरीजों में इसके संक्रमण खत्म होने के बाद हृदय, किडनी और त्वचा संबंधी दिक्कते देखने को मिल रही है।वहीं हाल में ही अमेरिका और ब्रिटेन में हुई एक-दो मौत का जिम्मेदार केवल ओमिक्रॉन को ही नहीं ठहराया जा सकता है।

कुछ वैज्ञानिक ताजा संक्रमण की स्थिति को कोरोना के अंत की ओर बढ़ते कदम मान रहे हैं. वे अतीत के सापेक्ष यह मानते हैं कि किसी भी वायरस का अंत कोई दूसरा वायरस ही करता है. इसलिए संभव है कि ओमिक्रॉन, कोरोना के खिलाफ प्राकृतिक एंटीबॉडी बनकर व्यवहार करे, जो शुरुआती परीक्षणों में सामने आ रहा है.

शायद इस लेख का शीर्षक कुछ लोगों को अविश्वसनीय लगे, कुछ के चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुस्कान आए और विज्ञान से जुड़े लोगों को ये बात एक जल्दबाजी लगे, मगर सार्स-टू श्रेणी में कोविड-19 का नया स्वरूप बन कर आए ‘ओमिक्रॉन वायरस’ के प्रभाव के नतीजे फिलहाल इसी बात के संकेत दे रहे हैं. एक कहावत है कि लोहा, लोहे को ही काटता है, कुछ हद तक यह ओमिक्रॉन के मामले में साबित होने की तरफ बढ़ रही है. बावजूद इसके कि दुनिया में नए वायरस को लेकर दहशत का वातावरण तैयार हुआ. प्रशासनिक तंत्र इसे डेल्टा और डेल्टा प्लस वायरस के संक्रमण जैसी ही खतरनाक स्थिति मानकर सभी सावधानियों को बरत रहा है और आम जन से भी सुरक्षित रहने की अपील की जा रही है.

करीब एक माह पहले दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन की पहचान हुई थी, जिसके बाद लाखों की तादाद में वहां मरीज आए और बहुत कम अंतराल में वायरस का सर्वोच्च शिखर देखा गया और अब हालात ये हैं कि मरीजों की संख्या में तेजी से गिरावट दर्ज हो रही है. अभी तक कोई बड़ा संकट सामने आया नहीं है. यह भी साबित हुआ है कि ओमिक्रॉन के मरीजों की संख्या में मृत्यु दर नगण्य है, जिससे यह मानने की गुंजाइश बनती है कि नया वायरस घातक नहीं है. खास तौर पर तब, जब यह दुनिया के करीब दो सौ देशों तक पहुंच चुका है. इसकी संक्रमण दर डेल्टा से भी कई गुना ज्यादा मानी जा रही है. ऐसे में ओमिक्रॉन की जांच जब तक हर देश के लिए आसान नहीं हो जाती है, तब तक यह कैसे माना जा सकता है कि उसका संक्रमण उससे अधिक बढ़ा हुआ नहीं है, जितना जांच के सीमित साधनों से नजर आ रहा है. 

ऐसे में यदि बढ़ा भी है तब भी आम लोगों में कोई बड़ी परेशानी नहीं देखी जा रही है. संभावना यह भी है कि वे बिना लक्षणों के ठीक भी हो गए हों. क्योंकि चिकित्सक ओमिक्रॉन के लिए कोई विशिष्ट दवा बताने में भी असमर्थ हैं. अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय के विषाणु वैज्ञानिक डॉ. डेविड हो का भी कहना है कि कई बार तेजी से फैलती आग अपने आप बुझ जाती है.
वहीं, दूसरे तौर पर जमीनी सच यह भी है कि विदेशों से आए जिन लोगों में यह बीमारी पाई गई है, वे अपनी जांच से पहले अनेक अनजान लोगों से मिल चुके थे. हालांकि सरकारी तौर पर जांच केवल उनके पहचान वाले लोगों के बीच ही हुई, जिनमें कोई लक्षण दिखे नहीं थे. इससे भी स्पष्ट है कि अमेरिका और ब्रिटेन में हुई एक-दो मौत का जिम्मेदार केवल ओमिक्रॉन नहीं हो सकता है. उसके पीछे कुछ और भी कारण होंगे.

उधर, ओमिक्रॉन वायरस और उसके परिणामों पर अनुसंधान कर रहे वैज्ञानिक नए संक्रमण को सकारात्मक ढंग से देख रहे हैं. उनका मानना है कि नया वायरस अभी तक उतना घातक नहीं दिख रहा है, क्योंकि वह गले से नीचे फेफड़ों तक एक विस्फोटक अंदाज में नहीं पहुंच रहा है. इसलिए मरीजों में सांस से संबंधित कोई दिक्कत सामने नहीं आ रही है. दक्षिण अफ्रीकी राज्य गुटेंग के स्वास्थ्य विभाग की सलाहकार और विटवाटरसेंड विश्वविद्यालय की पब्लिक हेल्थ मेडिसिन विशेषज्ञ हर्षा सोमारू का कहना है कि पहले की तुलना में इस बार हर उम्र के मरीज को ज्यादा दिनों तक अस्पताल में रहना नहीं पड़ रहा है. कुछ वैज्ञानिकों का दावा है कि ओमिक्रॉन गले में पहुंच कर शरीर के श्वसन तंत्र में मौजूद एंटीबॉडी तंत्र को सहायता करता है, जिससे शरीर में बीमारी से लड़ने की स्वाभाविक ताकत उत्पन्न हो जाती है, जिससे मरीज कुछ ही दिन में ठीक हो जाता है. यही मरीजों के जल्द ठीक होने का रहस्य है. यही न पहचाने गए संक्रमितों से नए संक्रमितों की पहचान नहीं हो पाने की सच्चाई है. शायद यही विदेशों में लाखों मरीजों की पहचान के बावजूद हलाकान न होने का रहस्य है.

दरअसल, कुछ वैज्ञानिक ताजा संक्रमण की स्थिति को कोरोना के अंत की ओर बढ़ते कदम मान रहे हैं. वे अतीत के सापेक्ष यह मानते हैं कि किसी भी वायरस का अंत कोई दूसरा वायरस ही करता है. इसलिए संभव है कि ओमिक्रॉन, कोरोना के खिलाफ प्राकृतिक एंटीबॉडी बनकर व्यवहार करे, जो शुरुआती परीक्षणों में सामने आ रहा है. यदि यह बात और गहराई तथा विस्तार के साथ मानव शरीर में स्थान बना लेती है तो कोरोना पर जीत संभव है, क्योंकि वह एक टीके की तरह हो जाएगा. इसके अलावा यही तथ्य अन्य प्रजातियों के लिए भी लागू हो जाता है, तो कोरोना की वापसी की संभावनाएं भी क्षीण हो जाती हैं. फिलहाल सभी संकेत सकारात्मक हैं. चिंताएं प्रशासनिक हैं, क्योंकि उसने वायरस के डेल्टा स्वरूप का हाहाकार देखा है. इसलिए इस बार वह भविष्य के खतरे को भांपकर लापरवाही नहीं करना चाहता है. हालांकि ओमिक्रॉन की संक्रमण दर के हिसाब से देखा जाए तो वह किसी भी तंत्र के नियंत्रण के बाहर हो सकती है. 

मगर उसका अनियंत्रित होना भी अभी तक किसी बड़ी मानव आबादी के लिए घातक साबित नहीं हो पाया है. दक्षिण अफ्रीका ने यह साबित भी किया है. फिर भी इस बात में कोई शक नहीं है कि आने वाले कुछ माह बीमारी के लिए निर्णायक साबित होंगे, क्योंकि कोरोना की पहली और दूसरी लहर के कुछ माह बाद मरीजों के शरीर में कुछ दुष्परिणाम देखे गए हैं. खास तौर पर मरीजों को संक्रमण खत्म होने के बाद हृदय, किडनी और त्वचा संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. यदि ओमिक्रॉन की संक्रमण दर इतनी अधिक ही रहती है और इसका बुरा असर लंबे समय में भी सामने नहीं आता है तो संभव है कि इसे ‘हर्ड इम्युनिटी’ या दूसरे शब्दों में प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक ‘प्राकृतिक टीके’ के रूप में देखा जाए, जो अंग्रेजी कहावत ‘ब्लैसिंग्स इन डिसगाइस’(दु:ख के भेष में सुख) को साबित करेगा. यही उम्मीद हिब्रू विश्वविद्यालय, जेरुसलम के इजराइली वैज्ञानिक जैविका ग्रेनोट और प्रो एम्नोन लहाड़ को भी है और हालात के भी संकेत अभिशाप के वरदान में बदलने के हैं.
 

Web Title: corona effect does omicron termed as blessing to us after south africa experience

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