हर व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित करता है संविधान, फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 26, 2020 12:28 PM2020-11-26T12:28:52+5:302020-11-26T12:31:01+5:30

ऐतिहासिक घटना की याद में हम हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाते हैं. एक राष्ट्र केवल जमीन, नदियों, पहाड़ों से ही नहीं बनता बल्कि इसका सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा उसके नागरिक हैं जो संविधान द्वारा शासित होते हैं.

Constitution day india ensures dignity of every person 26 November 1949 blog of Firdaus Mirza | हर व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित करता है संविधान, फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग

‘कानून के समक्ष समानता’, ‘अवसर की समानता’, ‘शिक्षा का अधिकार’, जैसे अनुच्छेद 14, 16, 21 ए के तहत दिए गए हैं. (file photo)

Highlightsडॉ. बाबासाहब आंबेडकर के कुशल मार्गदर्शन में संविधान सभा द्वारा किए गए अथक प्रयासों का फल है.हमारे पूर्वजों का प्रतिफल है जो उन्होंने भविष्य की पीढ़ियों से उम्मीद की थी. भारत के प्रत्येक नागरिक को अन्य नागरिकों के अधिकारों को पहचानना चाहिए.

26 नवंबर, 1949 को, हमने अपने संविधान को अपनाया और अधिनियमित किया. हमारा संविधान अपने सभी नागरिकों के लिए न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सुरक्षा का संकल्प लेते हुए विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, पूजा पद्धति की स्वतंत्रता; स्थिति और अवसर की समानता और सबसे बढ़कर हर व्यक्ति की गरिमा का आश्वासन देता है.

इस ऐतिहासिक घटना की याद में हम हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाते हैं. एक राष्ट्र केवल जमीन, नदियों, पहाड़ों से ही नहीं बनता बल्कि इसका सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा उसके नागरिक हैं जो संविधान द्वारा शासित होते हैं. कूले के शब्दों में राज्य ‘एक राष्ट्र या समाज के लोग हैं, जो संयुक्त प्रयासों द्वारा पारस्परिक सुरक्षा और लाभ को बढ़ावा देने के लिए एकजुट हों.’

संविधान वह योजना या व्यवस्था है जिसके द्वारा राज्य के विभिन्न अंगों को विनियमित किया जाता है. देशवासी, सरकार के अंग, विधानमंडल, कार्यपालिका और न्यायपालिका सभी संविधान के दायरे में हैं. भारत का संविधान डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के कुशल मार्गदर्शन में संविधान सभा द्वारा किए गए अथक प्रयासों का फल है.

यह हमारे पूर्वजों का प्रतिफल है जो उन्होंने भविष्य की पीढ़ियों से उम्मीद की थी. जब भी हम संविधान का उल्लेख करते हैं, हम अपने मौलिक अधिकारों की पूर्ति की उम्मीद करते हैं, लेकिन हम देश और साथी नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों पर चर्चा नहीं करते हैं. यह समय की जरूरत है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को अन्य नागरिकों के अधिकारों को पहचानना चाहिए.

जब तक हम प्रत्येक नागरिक के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए काम नहीं करते हैं, हम अपने स्वयं के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं जो कि ‘कानून के समक्ष समानता’, ‘अवसर की समानता’, ‘शिक्षा का अधिकार’, जैसे अनुच्छेद 14, 16, 21 ए के तहत दिए गए हैं.

जब तक हम दूसरों के विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, उपासना पद्धति की स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करते हैं, हम अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अंत:करण और मुक्त पेशे की स्वतंत्रता, धर्म को मानने और प्रचार की स्वतंत्रता, धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता, अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा की उम्मीद नहीं कर सकते, जिसकी गारंटी संविधान के अनुच्छेद 19, 25, 26, 28 और 29 के तहत दी गई है.

अगर हम चाहते हैं कि हमारे साथ धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव किए बिना समान व्यवहार किया जाए और किसी को भी इन आधारों पर समान अवसर से वंचित नहीं किया जाए तो हर कीमत पर प्रत्येक भारतीय की स्थिति और अवसर की समानता सुनिश्चित की जानी चाहिए. अस्पृश्यता के अभिशाप के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए तभी हम अनुच्छेद 15, 16 और 17 के तहत अपना अधिकार प्राप्त कर सकते हैं.

संविधान की भावना भारतीयों में भाईचारे की है और यह व्यक्ति की गरिमा को सुनिश्चित करता है. केवल हमारे प्रयासों से ही मानव तस्करी, बेगारी और बाल मजदूरी पर रोक लग सकेगी जैसा कि अनुच्छेद 20, 21, 22, 23 और 24 द्वारा अपेक्षित है. संविधान सभा में अपने अंतिम संबोधन में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने कहा था, ‘‘स्वतंत्रता के द्वारा, हमने कुछ भी गलत होने के लिए अंग्रेजों को दोष देने का बहाना खो दिया है. यदि इसके बाद चीजें गलत होती हैं, तो हम खुद को छोड़कर और किसी को भी दोषी नहीं ठहरा सकेंगे. चीजों के गलत होने का बहुत खतरा है.

समय तेजी से बदल रहा है..यदि हम उस संविधान को संरक्षित करना चाहते हैं जिसमें जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा बनाई गई सरकार का सिद्धांत प्रतिष्ठापित किया गया है, तो आइए संकल्प लें कि हम अपने पथ पर आने वाली बुराइयों की पहचान करने और उन्हें मिटाने में ढिलाई नहीं करेंगे. यह देश की सेवा करने का एकमात्र तरीका है. मैं इससे बेहतर रास्ता नहीं जानता.’’

अगर हम अपने कठोर मेहनत से हासिल किए गए संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना चाहते हैं तो हमें साथी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और उन्हें पहचानने के लिए कार्य करना चाहिए. हमें लोगों को उनके धर्म, जाति, खान-पान और पहनावे के आधार पर आंकना बंद करना चाहिए. हमें इन संवैधानिक अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करने का प्रयास करना चाहिए. यह संविधान के निर्माताओं को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

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