ब्लॉग: 'फादर्स डे' के बहाने मानवीय संबंधों के बदलते स्वरूप की चिंता
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 17, 2024 11:31 AM2024-06-17T11:31:42+5:302024-06-17T11:31:42+5:30
अन्यथा विदेशी परिपाटी अनुसार ‘फादर्स डे’ और ‘मदर्स डे’ तकनीकी माध्यमों के साथ मनाए जाएंगे और मानवीय संबंध वास्तविकता के धरातल पर अस्त-व्यस्त दिखाई देंगे।
दौड़-धूप के जमाने में यदि समय को लेकर कोई बात की जाए तो हर व्यक्ति अभावग्रस्त दिखाई देता है, जिसके पीछे का कारण जिम्मेदारियों से जुड़ा होता है और समस्याओं से भी घिरा होता है। किंतु इनके बीच ही मानवीय संबंध बुने और संवारे जाते हैं। दुर्भाग्य से अब आपसी रिश्तों में निजता की कमी के साथ ‘तकनीकी प्यार’ अधिक मिलने लगा है।
कोई भी त्यौहार हो या फिर अन्य अवसर, सारी भावनाएं-संवेदनाएं तकनीकी माध्यमों पर उड़ेल दी जाती हैं। कोई इसे विदेशी संस्कृति मानता है तो किसी को इसमें नया जमाना दिखाई देता है। रविवार को ‘फादर्स डे’ के अवसर पर सोशल मीडिया संदेशों से भरा हुआ मिला।
नेता हो या फिर अभिनेता, सामान्य व्यक्ति हो या फिर विशिष्ट सभी ने अपने विचारों और आदर्शों को सार्वजनिक किया। किसी सीमा तक व्यापार और व्यवसाय को भी इसमें अपना हित साध्य करने का अवसर मिल गया। इसके बावजूद सामाजिक समस्याएं अपनी जगह बनी रहीं। पिता की कोशिश कि बेटा बेहतर बने और बेटे का प्रयास कि उसकी अगली पीढ़ी उससे भी बेहतर बने, बस इसी संघर्ष में आज संबंधों का दायरा है. मिलने-जुलने के अवसर कम हो रहे हैं।
समय का नितांत अभाव दिखने लगा है। जब पिता परिवार के लिए संघर्ष करता है तो उसे जिम्मेदारी माना जाता है, किंतु जब उसका बेटा वही काम करता है और अपने माता-पिता से दूर जाता है तो उसे खुदगर्ज मान लिया जाता है। अनेक परिवारों में बच्चों का विदेश जाना समाज को दिखाने के लिए आदर्श स्थिति है, लेकिन दूसरी तरफ माता-पिता को अकेले छोड़ना बच्चों की अनदेखी कही जाती है।
वास्तविक रूप में दोनों ही परिस्थितियां मानव निर्मित हैं। हर परिवार में बच्चों को योग्यता अनुसार आगे बढ़ने का अवसर दिया जाता है, जिसमें कोई देश- कोई विदेश पहुंच जाता है। किंतु दोनों स्थितियां हर परिवार के लिए सहज नहीं होती हैं। यहीं परिवार संभालने और संबंध निभाने की चुनौती सामने आती है, जिसे कुछ मामलों में हवा-हवाई तौर पर निभा लिया जाता है तो कुछ मामलों में समझौते नहीं किए जाते हैं।
मगर समाज दोनों को अलग-अलग ढंग से देखता है। दरअसल परिवार का विकास भी पारिवारिक ढांचागत आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिए. हालांकि इस पर बहुत कम ही विचार होता है। फिर भी यदि परिवार का गठन सही ढंग से होता है तो उसके टूटने और बिखरने की संभावना कम रहती है।
यदि समय अनुरूप परिवार का विकास होता है तो अनेक प्रश्न खड़े होते हैं। विशेष रूप से माता-पिता का एक समय के बाद अकेले रहना संभव नहीं होता है। ऐसे में भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए ही परिवार का विस्तार और गठन किया जाना चाहिए, जिससे बिखराव और एकाकीपन की संभावना कम हो।
जिम्मेदारी निर्वहन भी हो और नए परिवार के विकास में कोई बाधा नहीं आए। अन्यथा विदेशी परिपाटी अनुसार ‘फादर्स डे’ और ‘मदर्स डे’ तकनीकी माध्यमों के साथ मनाए जाएंगे और मानवीय संबंध वास्तविकता के धरातल पर अस्त-व्यस्त दिखाई देंगे।