सरकार की कानून प्रवर्तन एजेंसियों की दया पर निर्भर आम आदमी, गिरफ्तारी की शक्तियों का हो रहा बेजा इस्तेमाल

By फिरदौस मिर्जा | Published: June 9, 2022 01:09 PM2022-06-09T13:09:43+5:302022-06-09T13:17:53+5:30

पुलिस को लोगों की सुरक्षा और समाज में व्यवस्था बनाए रखने के लिए गिरफ्तार करने की शक्ति दी गई है। औपनिवेशिक काल में गिरफ्तारी की शक्ति का इस्तेमाल मुख्य रूप से हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने और आम भारतीयों के मन में डर बनाए रखने के लिए किया जाता था।

common man is at mercy of the law enforcement agencies of government | सरकार की कानून प्रवर्तन एजेंसियों की दया पर निर्भर आम आदमी, गिरफ्तारी की शक्तियों का हो रहा बेजा इस्तेमाल

सरकार की कानून प्रवर्तन एजेंसियों की दया पर निर्भर आम आदमी, गिरफ्तारी की शक्तियों का हो रहा बेजा इस्तेमाल

छापेमारी, गिरफ्तारी, रिमांड, जमानत से इंकार, उच्च न्यायालय द्वारा जमानत देना, इंटरनेशनल ड्रग कार्टेल का हिस्सा होने का आरोप। ये है आर्यन खान की रियल लाइफ स्टोरी। उन्हें राष्ट्र-विरोधी बताते हुए किंग खान को अयोग्य पिता घोषित कर दिया गया था। कुछ न्यूज चैनलों ने उस लड़के के खिलाफ फैसला और सजा भी सुनाई। लेकिन कहानी का क्लाइमेक्स चार्जशीट से उनका नाम हटाना है।

ऊपर की कहानी भले ही ऐसे सेलेब्रिटी की है, जिसका आम आदमी से कोई सरोकार नहीं है लेकिन जब इसे कानूनी नजरिये से देखा जाता है, तो हमें एहसास होता है कि एक आम आदमी ताकतवर सरकार और उसकी पुलिस के सामने कितना कमजोर व असहाय है। यह प्रकरण हमें उस काले पक्ष को दिखाता है कि संविधान में इतने सारे मौलिक अधिकार होने के बावजूद हम अभी भी सरकार की कानून प्रवर्तन एजेंसियों की दया पर निर्भर हैं।

हम सभी जानते हैं कि जब आर्यन को रिमांड कोर्ट के सामने पेश किया गया था और एनसीबी द्वारा उसकी जमानत याचिका का विरोध किया गया था, कोर्ट ने उसके खिलाफ सबूतों को बहुत मजबूत पाया और सत्र न्यायाधीश रैंक के एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी ने जमानत आवेदन को खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय के समक्ष भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल ने कई दिनों तक एनसीबी द्वारा सबूतों के कब्जे के बारे में तर्क दिया। आर्यन कई दिनों तक जेल में रहा, जब तक कि हाईकोर्ट ने उसे कड़ी शर्तों पर जमानत नहीं दे दी।

शुरुआत से ही मामले की सत्यता और यहां तक कि तत्कालीन जांच अधिकारी की मंशा के बारे में गंभीर संदेह थे। आखिरकार, जांच अधिकारी को बदल दिया गया और अब यह कहा जा रहा है कि आर्यन के खिलाफ कोई सबूत नहीं है तथा उस पर गलत मुकदमा चलाया गया।

आर्यन खान एक सुपरस्टार के बेटे हैं, देश के टॉप मोस्ट वकीलों तक पहुंच होने के बाद भी उन्हें इस कठिन परीक्षा का सामना करना पड़ता है। जब मैं आर्यन की जगह एक आम आदमी के बेटे को रखता हूं तो मेरी रीढ़ कांप जाती है और सोचता हूं कि उसका क्या होता होगा? एक दशक से अधिक समय तक जेल में रहने के बाद लोगों को सम्मानपूर्वक बरी किए जाने की खबरें हमें नियमित मिल रही हैं।

आजादी के बाद, संविधान को अपनाने से प्रत्येक व्यक्ति को जीवन का अधिकार मिला जिसमें उसकी स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा का अधिकार भी शामिल है। लेकिन इस तरह की घटनाओं से स्पष्ट हो जाता है कि ये अधिकार पुस्तकों तक ही सीमित हैं, व्यावहारिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार याद दिलाया कि ‘गिरफ्तारी अपमानजनक होती है, स्वतंत्रता का हनन करती है और हमेशा के लिए दाग लगा देती है।’ किसी ऐसे व्यक्ति से पूछिए जिसे अनावश्यक रूप से गिरफ्तार किया गया हो और आपको ऐसी ही प्रतिक्रिया मिलेगी।

पुलिस को लोगों की सुरक्षा और समाज में व्यवस्था बनाए रखने के लिए गिरफ्तार करने की शक्ति दी गई है। औपनिवेशिक काल में गिरफ्तारी की शक्ति का इस्तेमाल मुख्य रूप से हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने और आम भारतीयों के मन में डर बनाए रखने के लिए किया जाता था। ऐसा लगता है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां आजादी के कई दशकों बाद भी इस औपनिवेशिक छवि से बाहर नहीं निकल पाई हैं। आजकल इन एजेंसियों को बड़े पैमाने पर उत्पीड़न का एक साधन माना जाता है और जनता की मित्र नहीं। गिरफ्तार करने की शक्ति उनके अहंकार में बहुत योगदान देती है।

हमें अपनी अगली पीढ़ी को संदिग्ध मंशा से काम करने वाले अधिकारियों की पाशविक शक्ति से बचाना है। हमें लोगों को केवल उनके धर्म, जाति या राजनीतिक झुकाव के आधार पर आंकना बंद करना चाहिए और सभी तरह के अन्याय के खिलाफ खड़ा होना चाहिए। सजा देना पुलिस का नहीं, अदालतों का काम है।

Web Title: common man is at mercy of the law enforcement agencies of government

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