Cloud Burst in India: पिछले कुछ दिनों से पहाड़ों पर बादल फटने और भूस्खलन की घटनाएं जिस तरह सामने आ रही हैं, उससे परिदृश्य डरावना लगने लगा है. धराली, किश्तवाड़, थराली में तबाही की खबरें अभी ताजा ही थीं कि मंगलवार को डोडा में बादल फटने से चार लोगों की मौत हो गई. उधर वैष्णो देवी यात्रा के मार्ग पर भूस्खलन से तीस से अधिक लोगों की मौत होने की खबर है. इसी महीने की शुरुआत में पांच अगस्त को उत्तराखंड के धराली में बादल फटने के बाद पानी और मलबे ने रिहाइशी इलाके को जिस तेजी से जलमग्न किया, उसके वीडियो दिल दहला देने वाले थे.
इसके बाद 9 अगस्त को हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में बादल फटा. इस त्रासदी को एक हफ्ता भी नहीं बीता था कि 14 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में बादल फटने से 65 लोगों की मौत हो गई और 200 से ज्यादा लोग लापता हो गए. तीन दिन बाद ही कठुआ में बादल फटने से सात लोगों की मौत हो गई और कई लापता हुए.
22 अगस्त को उत्तराखंड के थराली में बादल फटा तो अब 26 अगस्त को डोडा की त्रासदी सामने आई है. इसी के साथ वैष्णो देवी यात्रा मार्ग में भूस्खलन ने भी प्रकृति के रौद्र रूप को दिखाया है. इस तरह पिछले एक महीने से एक हफ्ता भी नहीं बीतने पा रहा है कि बड़ी तबाही सामने आ रही है. यही नहीं, देश के अनेक हिस्से इन दिनों भयावह बाढ़ से जूझ रहे हैं.
राजस्थान के शुष्क प्रदेश तक को बाढ़ के पानी ने डुबो दिया है और इससे कई लोगों की मौत हो चुकी है. बारिश ने वहां 69 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. हिमाचल प्रदेश, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में अगस्त के आखिरी दिनों में भी बारिश कहर ढा रही है. ऐसा नहीं है कि पहले बाढ़ नहीं आती थी या बादल नहीं फटते थे.
1908 में हैदराबाद (तेलंगाना) की मुसा नदी में आई बाढ़ में पंद्रह हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे. 1970 में जोशीमठ और चमोली के बीच बादल फटने से कई गांव बह गए थे और सैकड़ों लोगों की मौत हुई. 2005 में मुंबई में 950 मिलीमीटर बारिश होने से एक हजार से ज्यादा जानें गई थीं.
2010 में लेह लद्दाख में 200 मिलीलीटर से ज्यादा बारिश होने से पौने दो सौ से अधिक लोग मारे गए थे. 2013 में केदारनाथ की त्रासदी में तो दस हजार लोगों के मारे जाने की बात कही जाती है. पहले ऐसी आपदाएं दशकों के अंतराल में आती थीं,
लेकिन अब अगर एक हफ्ता भी शांति से नहीं बीतने पा रहा तो जाहिर है कि अब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने या सुकून से बैठकर इस पर चिंतन-मनन करने का समय नहीं बचा है. तत्काल ही इस बारे में अगर आवश्यक कदम न उठाए गए तो कहीं ऐसा न हो कि बाद में हमारे पास करने के लिए कुछ बचे ही नहीं!