कृपाशंकर चौबे का ब्लॉग: शोध कार्यों की गुणवत्ता सुधारने की चुनौती
By कृपाशंकर चौबे | Published: July 23, 2019 03:10 PM2019-07-23T15:10:27+5:302019-07-23T15:15:05+5:30
शोध की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए केंद्र सरकार की कोशिश का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग देश के सभी केंद्रीय, राज्य और निजी विश्वविद्यालयों में पिछले दस वर्षो में विभिन्न विषयों में हुए पीएचडी शोध प्रबंधों की गुणवत्ता का अध्ययन कराने जा रहा है.
देश में पीएचडी करनेवालों की संख्या लगातार बढ़ रही है किंतु शोध की गुणवत्ता को लेकर संशय और सवाल बरकरार हैं. केंद्रीय मानव संसाधन मंत्नालय के एक आंकड़े के अनुसार 2011 से 2017 के बीच पीएचडी में नामांकन करानेवालों की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2011 में पीएचडी के लिए जहां 81,430 लोगों ने नामांकन कराए थे, वहीं 2017 में वह संख्या बढ़कर 1,61,412 हो गई. पीएचडी करनेवालों की संख्या में वृद्धि होने के बावजूद शोध की गुणवत्ता में सुधार लाना एक राष्ट्रीय चुनौती बना हुआ है.
शोध की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए केंद्र सरकार की कोशिश का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग देश के सभी केंद्रीय, राज्य और निजी विश्वविद्यालयों में पिछले दस वर्षो में विभिन्न विषयों में हुए पीएचडी शोध प्रबंधों की गुणवत्ता का अध्ययन कराने जा रहा है. प्रस्तावित अध्ययन छह महीने में पूरा होगा. उस अध्ययन से आए निष्कर्षो का इस्तेमाल नीति बनाने के लिए किया जाएगा. इसके पहले यूजीसी ने शोध प्रबंधों में चोरी की रोकथाम के लिए नियम बनाया था. यूजीसी के उच्चतर शिक्षा संस्थानों में अकादमिक सत्यनिष्ठा और साहित्यिक चोरी रोकथाम विनियम, 2018 को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रलय ने मंजूरी देते हुए साहित्यिक चोरी (प्लेगरिज्म) के लिए दंड का प्रावधान किया था. उस नियम के लागू होने के बाद अब साहित्यिक चोरी के दोषी पाए गए शोधार्थी का पंजीकरण रद्द हो सकता है और अध्यापकों की नौकरी जा सकती है.
नए नियम में यह साफ कहा गया है कि शोध प्रबंध या इस तरह का अन्य कोई दस्तावेज जमा करने से पहले शोधार्थी को एक शपथपत्न देना होगा. उसमें उल्लेख करना होगा कि दस्तावेज छात्न की ओर से खुद तैयार किया गया है और वह उसका मौलिक काम है. उसमें यह भी उल्लेख करना होगा कि संस्थान की ओर से साहित्यिक चोरी पकड़ने वाले उपकरण से दस्तावेज की गहन जांच कर ली गई है. प्रत्येक शोध निर्देशक को एक प्रमाणपत्न जमा करना होगा, जिसमें उल्लेख करना होगा कि शोधार्थी का काम चोरी मुक्त है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के मसौदे में भी शोध की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है. कहना न होगा कि इन सभी कदमों का उद्देश्य अनुसंधान का मान उन्नत करना है. वैसे, शोध का मान उन्नत करने के लिए केवल सरकारी प्रयास काफी नहीं हैं. अब शोध निर्देशकों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए. शोध निर्देशकों की यह पहली जिम्मेदारी है कि वे शोधार्थी को यह बोध कराएं कि शोध एक गंभीर और श्रमसाध्य विद्या कर्म है. वे शोधार्थी में शोध-वृत्ति जागृत करें और उसे शोध की सारस्वत महत्ता का बोध कराएं. शोध निर्देशकों की यह भी जिम्मेदारी है कि वे शोधार्थी में शोध का अपेक्षित दृष्टिकोण विकसित करें, शोध के विषय के चयन के पहले उसकी सार्थकता पर गंभीरता से गौर करें और इस पर सतर्क नजर रखें कि शोधार्थी में विषय को लेकर अपेक्षित रुचि, निरंतरता और सक्रियता है कि नहीं, क्योंकि उसके बिना वह शोध करने में सक्षम नहीं होगा.