ब्लॉग:लुप्तप्राय ‘जेब्रा’ के संरक्षण की चुनौती
By रमेश ठाकुर | Published: January 31, 2024 01:21 PM2024-01-31T13:21:33+5:302024-01-31T13:23:38+5:30
इस जानवर की सुंदरता अनायास ही किसी को भी अपनी ओर खींचती है। शरीर पर बनी प्राकृतिक रूप से सफेद-काले रंग की धारियां आकर्षित करती हैं पर स्थिति आज ऐसी है कि जेब्रा का दीदार हम सिर्फ किताबों में ही करते हैं।
जंगली जेब्रा की आबादी का संरक्षण दुनिया में सरकारों के लिए हमेशा से चुनौती भरा रहा है. इस विषय पर वैश्विक मंचों पर व्यापक स्तर पर चर्चाएं भी हुईं, जिसके फलस्वरूप सन् 2012 में ‘स्मिथसोनियन नेशनल जू’ और ‘कंजर्वेशन बायोलॉजी इंस्टीट्यूट’ द्वारा ‘इंटरनेशनल जेब्रा दिवस’ मनाने का प्रचलन शुरू किया गया।
इस जानवर की सुंदरता अनायास ही किसी को भी अपनी ओर खींचती है। शरीर पर बनी प्राकृतिक रूप से सफेद-काले रंग की धारियां आकर्षित करती हैं पर स्थिति आज ऐसी है कि जेब्रा का दीदार हम सिर्फ किताबों में ही करते हैं।
एक जमाने में भारत के प्रत्येक चिड़ियाघरों में जेब्रा की संख्या अच्छी खासी हुआ करती थी लेकिन अब एकाध चिड़ियाघरों में ही कहीं बचे हैं। हालांकि अपने स्तर पर केंद्र व राज्यों की सरकारों ने प्रयास तो बहुतेरे किए, लेकिन सफलता नहीं मिली। अब केंद्र ने जेब्रा को लेकर एक नई पहल शुरू की है। जिस तरह से विदेशों से चीतों को लाकर मध्यप्रदेश के कूनो चिड़ियाघर में छोड़ा गया, उसी तर्ज पर ‘जेब्रा और जिराफ’ को भी लाने के प्रयास हो रहे हैं।
बिहार, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश के तीन जू को चिन्हित किया गया है। इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि आजादी के पहले भारत में अंग्रेज ट्रांसपोर्टेशन के लिए जेब्रा गाड़ी का इस्तेमाल करते थे। वर्ष 1930 में ‘जेब्रा गाड़ी’ बंगाल के कलकत्ता में चलती थी। गाड़ी का प्रयोग इसलिए होता था, क्योंकि जेब्रा घोड़े और बैलों से कहीं ज्यादा ताकतवर और फुर्तीले होते हैं। दरअसल, जेब्रा के साथ सबसे बड़ी समस्या ये थी कि उन्हें संभालना बेहद मुश्किल होता था।
इनके संरक्षण की एक बड़ी समस्या ये भी है कि ये जोड़े में ही रहना पसंद करते हैं। मादा है तो उसे नर चाहिए और नर है तो उसे मादा की आवश्यकता होगी। सिंगल जेब्रा खुद को असहज समझता है।
पिछले वर्ष गुवाहाटी के एक जू में लगभग 30 वर्षों बाद एक जेब्रा देखा गया।
उसे कर्नाटक के मैसूर चिड़ियाघर से लाया गया था। वहीं बिहार के ‘संजय गांधी जैविक उद्यान’ में भी इंडोनेशिया से जेब्रा लाने की सहमति बन गई है। संसार में वर्तमान में जेब्रा की तीन प्रजातियां मौजूद हैं- ग्रेवी जेब्रा, मैदानी जेब्रा और पहाड़ी जेब्रा. मैदानी जेब्रा तीनों प्रजातियों में सबसे अच्छा माना जाता है जो भारत में रह सकता है। भारत की सरजमीं उनके रहने के अनुकूल बताई जाती है।