भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: बजट में मूल समस्याओं की अनदेखी की गई

By भरत झुनझुनवाला | Published: February 2, 2022 08:02 AM2022-02-02T08:02:48+5:302022-02-02T08:05:25+5:30

बजट 2022: देश इस समय जब आयातों से हर तरफ से पिट रहा है, उस स्थिति में अपने देश में बुनियादी संरचना और अन्य पूंजी खर्चो में भारी वृद्धि की जरूरत थी जिससे कि हम अंतरराष्ट्रीय बाजार में खड़े हो सकें.

Budget 2022 Fundamental problems of economy overlooked in budget | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: बजट में मूल समस्याओं की अनदेखी की गई

बजट में मूल समस्याओं की अनदेखी की गई! (फोटो- एएनआई)

वित्त मंत्री ने बजट में मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया है जिसके लिए उन्हें धन्यवाद. उन्होंने कई मशीनों पर आयात कर बढ़ाया है जिनका भारत में उत्पादन हो सकता है. इससे भारत में मशीनों के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा. जैसे मोबाइल फोन के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए मोबाइल फोन के लेंस के आयात पर छूट दी गई है. केमिकल में भी जहां देश में उत्पादन क्षमता उपलब्ध है वहां आयात करों को बढ़ाया गया है. 

सोलर बिजली के उत्पादन के लिए घरेलू सोलर पैनल के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया गया है. रक्षा क्षेत्न में कुल बजट का पिछले साल 58 प्रतिशत घरेलू स्रोतों से खरीदा जा रहा था जो इस वर्ष बढ़ाकर 68 प्रतिशत कर दिया गया है. यह सभी कदम सही दिशा में हैं. इनसे घरेलू उत्पादन में वृद्धि होगी और मेक इन इंडिया बढ़ेगा. 

यह सही दिशा में है. लेकिन इसके बावजूद अर्थव्यवस्था पुन: चल निकलेगी इस पर मुङो संशय है. मुख्य कारण यह है कि सरकार अपनी पुरानी सप्लाई बढ़ाने की गलत नीति पर ही चल रही है. जैसे घरेलू उत्पादन को ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव’ यानी उत्पादन के अनुसार उन्हें सहयोग मात्र दिए जाने को बढ़ावा दिया गया है. लेकिन प्रश्न उठता है कि जब बाजार में मांग नहीं है तो उद्यमी उत्पादन करेगा क्यों और ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव’ लेने की स्थिति में पहुंचेगा कैसे? 

उद्यमी के लिए प्रमुख बात होती है कि वह अपने माल को बाजार में बेच सके. जब तक देश के नागरिकों की क्रयशक्ति नहीं बढ़ेगी और वे बाजार में माल खरीदने को नहीं उतरेंगे तब तक बाजार में माल उत्पन्न नहीं होगा और घरेलू उत्पादन नहीं बढ़ेगा. जैसे यदि किसी की जेब में नोट न हो तो बाजार में आलू 20 रुपए के स्थान पर 10 रुपए किलो में भी उपलब्ध हो तो वह खरीदता नहीं है. 

इसी प्रकार ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव’ की उपयोगिता तब है जब बाजार में मांग हो. लेकिन वित्त मंत्री ने आम आदमी की क्रयशक्ति को बढ़ाने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाए हैं. करना यह चाहिए था कि सरकारी कर्मियों के वेतन में कटौती और सरकारी कल्याणकारी योजनाओं में रिसाव को खत्म करके आम आदमी को सीधे नगद वितरण करना चाहिए जिससे कि आम आदमी बाजार से माल खरीद सके और अर्थव्यवस्था चल सके.  

वित्त मंत्री ने कहा है कि सरकारी निवेश में भी वृद्धि की गई है. यह भी सही है लेकिन बड़ा सच यह है कि सरकार के कुल बजट में 5 लाख करोड़ की वृद्धि हुई है जिसमें  पूंजी खर्चो में 2 लाख करोड़ की और सरकारी खपत में 3 करोड़ की. कहा जा सकता है कि यह 2 लाख करोड़ की वृद्धि अच्छी है. लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. 

इस समय जब देश आयातों से हर तरफ से पिट रहा है, उस स्थिति में अपने देश में बुनियादी संरचना एवं अन्य पूंजी खर्चो में भारी वृद्धि करने की जरूरत थी जिससे कि हम अंतरराष्ट्रीय बाजार में खड़े हो सकें. उस जरूरत को देखते हुए सरकारी खपत में 3 करोड़ की वृद्धि और सरकारी निवेश में 2 करोड़ की वृद्धि उचित नहीं दिखती है. अधिक वृद्धि पूंजी खर्चो में की जानी चाहिए थी जो कि वित्त मंत्री ने नहीं की है. 

इसलिए हम विश्व अर्थव्यवस्था में वर्तमान की तरह पिटते रहेंगे ऐसी संभावना है. सरकारी कर्मियों के लिए सामान खरीदने से हम विश्व बाजार में खड़े नहीं होंगे.

वित्त मंत्री ने जीएसटी की वसूली में अप्रत्याशित वृद्धि की बात कही है जो कि सही भी है. लेकिन प्रश्न यह है कि यदि जीएसटी में पिछले समय की तुलना में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है; तो जीडीपी में मात्र 9 प्रतिशत की वृद्धि क्यों? कारण यह है कि जो 9 प्रतिशत की वृद्धि बताई जा रही है यह विवादास्पद है. 

जीडीपी की गणना अपने देश में मुख्यत: संगठित क्षेत्र के आंकड़ों के आधार पर की जाती है. जीएसटी में वृद्धि उत्पादन के कारण नहीं बल्कि इसलिए हो रही है कि असंगठित क्षेत्र पिट रहा है, असंगठित क्षेत्र का उत्पादन घट रहा है और वह उत्पादन जो अभी तक असंगठित क्षेत्र में होता था वह अब संगठित क्षेत्र में होने लगा है. जैसे बस स्टैंड पर पहले रेहड़ी पर लोग चना बेचते थे और अब पैकेट में बंद चना बिक रहा है. 
असंगठित रेहड़ी वाले का धंधा कम हो गया और उतना ही उत्पादन संगठित पैकेटबंद चने का बढ़ गया. कुल उत्पादन उतना ही रहा. लेकिन रेहड़ी वाला टैक्स नहीं देता था और पैकेटबंद उत्पादक जीएसटी देता है इसलिए जीएसटी की वसूली बढ़ गई. 

वित्त मंत्री को जीएसटी की वृद्धि को गंभीरता से समझना चाहिए कि इसके समानांतर जीडीपी में वृद्धि क्यों नहीं हो रही है? मेरे अनुसार यह एक खतरे की घंटी है कि छोटे आदमी का धंधा कम हो रहा है उसकी क्रयशक्ति कम हो रही है और देश का कुल उत्पादन सपाट है जबकि जीएसटी बढ़ रही है.

जीएसटी की वसूली का दूसरा पक्ष राज्यों की स्वायत्तता का है. जून 2022 में केंद्र सरकार द्वारा राज्यों द्वारा जीएसटी में जो वसूली की कमी हुई है उसकी भरपाई करना बंद हो जाएगा. जुलाई 2022 के बाद राज्यों को जीएसटी की कुल वसूली में अपने हिस्से मात्र से अपने बजट को चलाना होगा. कई राज्यों की आय 25 से 40 प्रतिशत तक एक ही दिन में घट जाएगी. 

इस समस्या से निपटने के लिए वित्त मंत्री ने राज्यों के लिए ऋण लेना और आसान कर लिया है जो कि तात्कालिक समस्या के लिए ठीक है लेकिन ऋण लेकर राज्य कब तक अपना बजट चलाएंगे?

इस बजट का एकमात्र गुण मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए विशेष वस्तुओं के आयात कर में वृद्धि करना है. बाकी अर्थव्यवस्था की सभी मूल समस्याओं की अनदेखी की गई है और मेरे आकलन से अर्थव्यवस्था इसी प्रकार ढुलमुल चलती रहेगी और हम विश्व अर्थव्यवस्था में पिछड़ते रहेंगे.

Web Title: Budget 2022 Fundamental problems of economy overlooked in budget

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