ब्लॉग: महिला की शिकायत पर इतनी राजनीति क्यों?
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: May 20, 2024 11:01 AM2024-05-20T11:01:29+5:302024-05-20T11:06:01+5:30
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निजी सहायक बिभव कुमार के खिलाफ दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष स्वाति मालीवाल की शिकायत पर आम आदमी पार्टी ने हंगामा मचाया हुआ है।
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फाइल फोटो
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निजी सहायक बिभव कुमार के खिलाफ दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष स्वाति मालीवाल की शिकायत पर आम आदमी पार्टी ने हंगामा मचाया हुआ है। अपने ही दल की एक पुरानी सदस्य के आरोपों को बरगलाने की कोशिश में राज्य सरकार की मंत्री आतिशी मार्लेना पूरी जान लगा रही हैं।
मजेदार बात यह है कि अपनी ही पार्टी की राज्यसभा सदस्य की चिंता न करते हुए आम आदमी पार्टी उन पर भारतीय जनता पार्टी के इशारों पर काम करने का आरोप लगा रही है।
हालांकि बीती 13 मई को दिल्ली के मुख्यमंत्री के आवास पर मालीवाल के साथ जो हुआ, वह उन्होंने सार्वजनिक रूप से सामने रखा, किंतु असंवेदनशीलता की हद यहां तक रही कि उसका सीधे तौर पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया। जब हंगामा बढ़ा और पुलिस सक्रिय हुई तो कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर डाले जाने लगे। आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी के बीच बिभव कुमार को शनिवार को गिरफ्तार कर लिया गया तथा पांच दिन की पुलिस हिरासत तक में भेज दिया गया।
हालांकि इसके पहले अग्रिम जमानत की भी कोशिश हुई, जो अदालत ने खारिज कर दी। मगर कहा यह भी गया कि ये सब भाजपा की साजिश के तहत हुआ और चेहरा मालीवाल को बनाया गया. इसमें कोशिश दिल्ली के मुख्यमंत्री को फंसाने की थी, जो सफल नहीं हो पाई।
यदि आम आदमी पार्टी की सारी बातों को मान भी लिया जाए तो क्या एक महिला के आरोपों की जांच नहीं होनी चाहिए, उसकी शिकायतों को नजरअंदाज कर देना चाहिए? महिला आयोग की अध्यक्ष महिलाओं के साथ हुए अन्याय या दुर्व्यवहार के खिलाफ लड़ती है, लेकिन जब अध्यक्ष रह चुकी महिला के साथ ही अन्याय हो तो क्या उसे शांत होकर अपनी पार्टी को बचाने में जुट जाना चाहिए।
वह भी तब, जब उसकी अपनी पार्टी के एक सांसद उसे खुलेआम समर्थन देते हैं। दरअसल आम आदमी पार्टी जिस चरित्र और सिद्धांत की बात करती है, उसे उन पर कायम रहना चाहिए। उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार न तो बदलना चाहिए और न ही राजनीति के लिए उन्हें ताक पर रख देना चाहिए। वर्तमान में जरूरत इस बात की है कि मालीवाल के मामले को राजनीति के चश्मे से देखने की बजाय, उसे निष्पक्ष भाव से देख किसी कानून-सम्मत नतीजे पर पहुंचना चाहिए। गलती तय अदालत करेगी किंतु मामला न्याय की चारदीवारी तक पहुंचने देना चाहिए।
यदि उसमें कोई विलंब या अवरोध पैदा किया जाता है तो निश्चित रूप से कहीं न कहीं दाल में कुछ काला है। फिलहाल चुनाव चल रहे हैं, इसलिए हर बात में कोई न कोई राजनीतिक नजरिया खोजा जा रहा है, किंतु घटना मात्र की आवश्यकता यह है कि सच्चाई जानकर दोषी को सजा दी जाए और कम से कम महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष को तो न्याय पाने से वंचित करने की कोशिशों को नाकाम किया जाए।