ब्लॉग: बचाव दल के जांबाज कर्मियों को सलाम

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 29, 2023 01:49 PM2023-11-29T13:49:01+5:302023-11-29T13:50:33+5:30

बाकी बचे दस-बारह मीटर के हिस्से की खुदाई के लिए पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करते हुए रैट माइनर्स की सहायता ली गई, जिन्होंने अप्रत्याशित नतीजे देते हुए दो दिन में ही खुदाई पूरी कर ली।

Blog: Salute to the brave rescue workers Silkyara Tunnel of Uttarakhand | ब्लॉग: बचाव दल के जांबाज कर्मियों को सलाम

(फाइल फोटो)

Highlightsसुरंग में फंसे मजदूरों को बचाने का बचाव दल का प्रयास रंग लायापारंपरिक ज्ञान की सर्वथा उपेक्षा नहीं की जानी चाहिएहमारा देश तो पारंपरिक ज्ञान के मामले में दुनिया के लिए खजाना साबित हो सकता है

नई दिल्ली: आखिरकार उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों को बचाने का बचाव दल का प्रयास रंग लाया। इस काम में 17 दिनों तक लगे रहे बचाव कर्मियों की जितनी भी तारीफ की जाए, कम है। उत्तरकाशी में 12 नवंबर को सुबह लगभग 5 बजे भूस्खलन के चलते ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा अचानक ढह गया था, जिसमें 41 मजदूर अंदर फंस गए।

शुरू में दो दिन एक्सकेवेटर मशीनों से मलबा हटाने की कोशिश की गई, जिसे ‘शॉटक्रीट मेथड’ कहते हैं। इसमें मलबा हटाते ही बड़े प्रेशर से कांक्रीट फेंकी जाती है ताकि और मलबा न गिरे। लेकिन इसमें मनचाही सफलता नहीं मिलने पर ‘ट्रेंचलेस’ तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया गया, जिसमें मलबे के बीच से हल्‍के स्टील पाइप डालकर रास्ता बनाया जाता है, जिसमें से रेंगते हुए मजदूर बाहर निकल सकते हैं।

ऑगर मशीन से जब यह काम शुरू किया गया तो उम्मीद जताई गई थी कि बहुत जल्द सभी मजदूरों को बाहर निकाल लिया जाएगा। लेकिन दस-बारह मीटर की ही ड्रिलिंग जब बाकी रह गई थी तो मलबे में सुरंग की छत का लोहे का जाल सामने आ जाने से ऑगर मशीन खराब हो गई और उसके कुछ हिस्से टूटकर सुरंग में ही फंस गए। ऐसा लग रहा था कि काम अब लंबा चलेगा और मजदूरों तक पहुंचने के लिए वर्टिकल ड्रिलिंग की शुरुआत भी कर दी गई। हालांकि इसमें कंपन के कारण मलबा नीचे सुरंग में गिरने की आशंका भी थी। इस बीच ऑगर मशीन द्वारा बनाई गई सुरंग में बाकी बचे दस-बारह मीटर के हिस्से की खुदाई के लिए पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करते हुए रैट माइनर्स की सहायता ली गई, जिन्होंने अप्रत्याशित नतीजे देते हुए दो दिन में ही खुदाई पूरी कर ली। 

इस घटना ने साबित किया है कि पारंपरिक ज्ञान की सर्वथा उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए और हमारा देश तो पारंपरिक ज्ञान के मामले में दुनिया के लिए खजाना साबित हो सकता है। हालांकि अत्याधुनिक तकनीकें भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। अगर ऑगर मशीन ने अधिकांश हिस्से तक सुरंग नहीं बना ली होती तो रैट माइनर्स तकनीक से पूरी की पूरी सुरंग खोद पाना संभव नहीं होता। इसलिए इस घटना का सबक यह है कि अत्याधुनिक तकनीक और पारंपरिक ज्ञान का समन्वित तरीके से इस्तेमाल किया जाना चाहिए। सिलक्यारा सुरंग में हमारे जांबाज बचाव कर्मियों ने यह कर दिखाया है और निश्चित रूप से इसके लिए उन्हें सलाम किया जाना चाहिए।

Web Title: Blog: Salute to the brave rescue workers Silkyara Tunnel of Uttarakhand

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