ब्लॉग: सुशासन का प्रतीक होता है राम राज्य
By विश्वनाथ सचदेव | Published: January 25, 2024 10:53 AM2024-01-25T10:53:39+5:302024-01-25T11:11:00+5:30
22 जनवरी 2024 यह कैलेंडर की एक तारीख मात्र नहीं है। अयोध्या में भगवान राम के ‘भव्य, दिव्य मंदिर’ की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही यह तारीख, जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है, ‘नये इतिहास-चक्र की भी शुरुआत’ है।
22 जनवरी 2024 यह कैलेंडर की एक तारीख मात्र नहीं है। अयोध्या में भगवान राम के ‘भव्य, दिव्य मंदिर’ की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही यह तारीख, जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है, ‘नये इतिहास-चक्र की भी शुरुआत’ है। इस अवसर पर किए गए संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संकल्प ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ को एक नया आयाम भी दिया है। यह सही है कि भाजपा के लिए अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण एक चुनावी वादे का पूरा होना भी है।
अयोध्या में मंदिर निर्माण को पूरे देश में जो प्रतिसाद मिला है, वह कल्पनातीत है। भाजपा को इसका राजनीतिक लाभ मिलेगा, इसमें कोई संशय नहीं, पर जैसा कि प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा है, ‘राम विवाद नहीं, समाधान हैं’। उनके इस कथन को समझा और स्वीकारा जाना चाहिए। यह भी समझा जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री का यह कथन देश में संभावनाओं के नये आयाम भी खोल रहा है।
राम और राष्ट्र के बीच की दूरी को पाटने का एक स्पष्ट संकेत भी प्रधानमंत्री ने दिया है। इस बात को समझने की ईमानदार कोशिश होनी चाहिए। राम की महत्ता हिंदू समाज के आराध्य होने में ही नहीं है, राम प्रतीक हैं सुशासन के। सुशासन, जिसमें हर नागरिक को, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, वर्ण, वर्ग का हो, प्रगति करने का समान और पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए। तुलसी ने कहा है, ‘दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, राम राज नहिं कहुहि व्यापा’, इस राज में, ‘नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना, नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना’। किसी भी अच्छे शासन में यह बुनियादी स्थिति होनी चाहिए।
राम राज्य की बात तो हम बहुत करते हैं पर यह भूल जाते हैं कि राम राज्य की परिकल्पना में हर नागरिक को समान अधिकार प्राप्त थे। राम ने तो स्वयं यह बात स्पष्ट की थी कि यदि राज-काज में उनसे कोई गलती हो जाती है तो हर नागरिक को यह अधिकार है, और यह उसका दायित्व है कि वह राजा को गलती का एहसास कराए। आज जब देश ‘राममय’ हो रहा है, इस अपने-पराये का भेद मिटाने की आवश्यकता को भी समझना जरूरी है। धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर होने वाला कोई भी विभाजन ‘राम राज्य’ में स्वीकार्य नहीं हो सकता।
सांस्कृतिक अथवा धार्मिक राष्ट्रवाद के नाम पर किसी को कम या अधिक भारतीय आंकना भी राम राज्य की भावना के प्रतिकूल है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अयोध्या में नया मंदिर बनने के बाद हिंदू समाज में एक नया उत्साह । स्वाभाविक भी है यह, पर इस भाव की सीमाओं को भी समझना होगा हमें। नदी जब किनारा छोड़ती है तो बाढ़ आ जाती है। सरसंघचालक मोहन भागवत ने प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर कहा था, ‘जोश के माहौल में होश की बात’ करनी जरूरी है। यह होश ही वह किनारे हैं जो नदी को संयमित रखते हैं।