ब्लॉग: गठबंधन बनाम क्षेत्रीय दलों की राजनीति

By प्रमोद भार्गव | Updated: June 6, 2024 11:01 IST2024-06-06T10:55:52+5:302024-06-06T11:01:21+5:30

दस साल बाद इस आम चुनाव में एक बार फिर क्षेत्रीय मुद्दों और क्षेत्रीय दलों का प्रभाव दिखाई दिया है। क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक ताकत स्थानीय मुद्दे और जातीयता होती है।

Blog: Politics of Coalition vs Regional Parties | ब्लॉग: गठबंधन बनाम क्षेत्रीय दलों की राजनीति

फाइल फोटो

Highlightsआम चुनाव में एक बार फिर क्षेत्रीय मुद्दों और क्षेत्रीय दलों का प्रभाव दिखाई दिया हैक्षेत्रीय दलों की राजनीतिक ताकत स्थानीय मुद्दे और जातीयता होती हैयूपी में मायावती, मुलायम सिंह और अखिलेश यादव जैसे क्षेत्रीय ताकतों को सत्ता का सुख मिला है

दस साल बाद इस आम चुनाव में एक बार फिर क्षेत्रीय मुद्दों और क्षेत्रीय दलों का प्रभाव दिखाई दिया है। क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक ताकत स्थानीय मुद्दे और जातीयता होती है। देश के सबसे ज्यादा 80 संसदीय सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में मायावती, मुलायम सिंह और अखिलेश यादव को जब भी सत्ता का सुख मिला है, उसमें यही राजनीति के गुण शामिल रहे हैं। यही दक्षिण भारत के राज्यों में क्षेत्रीय क्षत्रपों का दबदबा देखने में आया।

तमिलनाडु में स्टालिन की द्रमुक ने इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर राज्य की सभी 39 सीटों पर जीत दर्ज करा ली है। आप के साथ मिलकर कांग्रेस ने पंजाब में 10 सीटें इंडिया गठबंधन के खाते में डलवा दीं। पश्चिम बंगाल की क्षेत्रीय नेता ममता बनर्जी ने अपने जादू को बनाए रखा है। तृणमूल ने महिला और मुस्लिम मतदाताओं को साधकर 30 सीटों पर सफलता प्राप्त की। जबकि उसकी 2019 में 22 सीटें थीं।

भाजपा को यहां 2019 में जीती 18 सीटों की तुलना में 2024 में 11 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। ममता ने बंगाल में इंडिया के साथ कोई गठबंधन भी नहीं किया था। वे अकेली चलीं और उन्होंने भाजपा के सीएए एवं संदेशखाली के मुद्दों को नाकाम कर दिया। तय है, ममता आगे भी क्षेत्रीय क्षत्रप बनी रहेंगी। वे अब सीएए और एनआरसी का भी संसद में अपने सांसदों से मुखर विरोध कराएंगी। भाजपा के चर्चित चेहरे सुरेश गोपी ने केरल में जीत दर्ज कर एक बड़ी कामयाबी दर्ज की है।

भाजपा स्पष्ट बहुमत में जरूर नहीं है, लेकिन उसने अपनी पार्टी का विस्तार करते हुए ओडिशा में जबरदस्त दस्तक दी है। नवीन पटनायक के 24 साल से चले आ रहे राज को खत्म करके भाजपा ने जता दिया है कि वह पार्टी के देशव्यापी विस्तार के लिए संघर्ष करती रहेगी। ओडिशा में भाजपा को दोहरी खुशी मिली है। यहां उसने लोकसभा की 21 सीटों में से 20 सीटें जीतकर अप्रत्याशित ढंग से अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा दी है।

दूसरी तरफ भाजपा को यहां हुए विधानसभा चुनाव में भी स्पष्ट बहुमत मिल गया है। विधानसभा की कुल 147 सीटों में से भाजपा ने 78 सीटों पर विजय हासिल की है। नवीन पटनायक के बीजू जनता दल को 51 सीटों पर संतोष करना पड़ा है। भाजपा की इस बड़ी जीत में यहां की मूल निवासी द्रौपदी मुर्मु को राष्ट्रपति बनाया जाना भी रहा है। नवीन पटनायक उम्रदराज होते जा रहे हैं और उन्होंने अपने दल के किसी नेता को अपने समकक्ष नहीं बनाने की बड़ी भूल की है। अतएव आगे यह पार्टी कितना चल पाएगी, कहना मुश्किल है।

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