जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग: चीन से आर्थिक मुकाबले की रणनीति बनाएं
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 18, 2020 05:45 AM2020-06-18T05:45:41+5:302020-06-18T05:45:41+5:30
भारत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के प्रावधानों के तहत चीन के आयात पर प्रत्यक्ष प्रतिबंध नहीं लगा सकता है लेकिन भारत सरकार चीनी सामान पर एंटी डंपिंग ड्यूटी जरूर लगा सकती है.
सोमवार को लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के द्वारा किए गए विश्वासघात और खूनी संघर्ष के बाद पूरे भारत में चीन विरोधी माहौल दिखाई दे रहा है. ऐसे में सरकार के साथ-साथ पूरा देश चीन से आर्थिक मोर्चे पर मुकाबले के लिए तैयारी करते हुए दिखाई दे रहा है.वस्तुत: इस समय दिखाई दे रही चीन की बौखलाहट के पीछे कुछ स्पष्ट कारण दिखाई दे रहे हैं. चीन से निवेश निकलकर भारत आने का परिदृश्य चीन की बौखलाहट का बड़ा कारण है. ख्यात वैश्विक कंपनी ब्लूमबर्ग के द्वारा प्रकाशित नई रिपोर्ट मई 2020 के मुताबिक कोविड-19 महामारी के कारण चीन के प्रति नाराजगी से चीन में कार्यरत कई वैश्विक निर्यातक कंपनियां अपने मैन्युफैक्चरिंग का काम पूरी तरह या आंशिक रूप से चीन से बाहर स्थानांतरित करने की तैयारी कर रही हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन से बाहर निकलती कंपनियों को आकर्षित करने के लिए भारत इन्हें बिना किसी परेशानी के जमीन मुहैया कराने पर काम कर रहा है. खासतौर से जापान, अमेरिका, दक्षिण कोरिया और ब्रिटेन की कई कंपनियां भारत को प्राथमिकता देते हुए दिखाई दे रही हैं. ये चारों देश भारत के टॉप-10 ट्रेडिंग पार्टनर्स में शामिल हैं.
यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि चीन की अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट है. चीन से निर्यात घट गए हैं, साथ ही हिंद महासागर क्षेत्र में बड़े देश व्यापारिक हित के कारण भारत के साथ साझेदारी बढ़ा रहे हैं. इन सब कारणों के साथ-साथ अमेरिका ने भारत को जी-7 में शामिल होने के लिए खुला निमंत्रण दिया है. एक ओर जब दुनिया भर में चीन के प्रति नकारात्मकता है, वहीं दूसरी ओर अब चीन के द्वारा किए गए खूनी संघर्ष के बाद देश के कोने-कोने में लोग चीन को आर्थिक टक्कर देने का संकल्प लेते हुए दिखाई दे रहे हैं.
ऐसे में निश्चित रूप से हमें चीन से व्यापार घाटे में कमी लाने और चीन से आयात में और व्यापार घाटे में कमी करने की डगर पर आगे बढ़ना होगा. गौरतलब है कि हाल ही में चीन के सीमा शुल्क सामान्य विभाग (जीएसीसी) के द्वारा भारत-चीन व्यापार संबंधी दी गई जानकारी में कहा गया है कि वर्ष 2001 में दोनों देश के बीच कारोबार महज तीन अरब डॉलर का था, फिर वह वर्ष-प्रतिवर्ष बढ़ता गया. भारत और चीन के बीच वर्ष 2018 में द्विपक्षीय व्यापार 95.7 अरब डॉलर मूल्य का था, वह 2019 में घटकर 92.68 अरब डॉलर मूल्य का रहा. स्पष्ट है कि वर्ष 2019 में भारत-चीन के बीच व्यापार वर्ष 2018 की तुलना में करीब 3 अरब डॉलर कम रहा. जहां वर्ष 2018 में चीन ने भारत को 76.87 अरब डॉलर मूल्य का निर्यात किया, वहीं 2019 में चीन ने भारत को 74.72 अरब डॉलर मूल्य का निर्यात किया. यानी चीन से भारत को किए जाने वाले निर्यात में भी कमी आई.
इसी तरह जहां 2018 में चीन को भारत ने 18.83 अरब डॉलर मूल्य के निर्यात किए, वहीं चीन को भारत ने वर्ष 2019 में 17.95 अरब डॉलर मूल्य के निर्यात किए. दोनों देशों के बीच व्यापार में गिरावट के साथ-साथ वर्ष 2019 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा (चीन को निर्यात की तुलना में वहां से आयात का आधिक्य) 56.77 अरब डॉलर रहा. यह व्यापार घाटा 2018 में 58.04 अरब डॉलर था. स्पष्ट है कि चीन के साथ व्यापार घाटे में भी कमी आई है. सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि जहां हम चीन को एक रुपए मूल्य का निर्यात कर रहे हैं, उसकी तुलना में चीन से करीब साढ़े चार रु पए मूल्य का आयात करते हैं. इतना ही नहीं चिंताजनक यह भी है कि हमारे कुल विदेश व्यापार घाटे का करीब एक तिहाई व्यापार घाटा चीन से संबंधित है.
यद्यपि भारत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के प्रावधानों के तहत चीन के आयात पर प्रत्यक्ष प्रतिबंध नहीं लगा सकता है लेकिन भारत सरकार चीनी सामान पर एंटी डंपिंग ड्यूटी जरूर लगा सकती है. यह एक प्रकार का शुल्क है जिससे चीनी वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाएंगी और भारतीय उत्पादक उनका मुकाबला कर सकेंगे.
भारत ने चीन से दूध एवं दुग्ध उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाया हुआ है, क्योंकि उनकी गुणवत्ता अस्वीकार्य थी. इसी तरह कुछ मोबाइल फोन जिन पर अंतरराष्ट्रीय मोबाइल स्टेशन उपकरण पहचान संख्या या अन्य सुरक्षा सुविधाएं नहीं थीं, उन्हें भी प्रतिबंधित किया हुआ है. इसके साथ चीन से कुछ इस्पात उत्पादों के आयात पर भी प्रतिबंध लगाया हुआ है. जब हम देश को आत्मनिर्भर बनाने के मामले में विभिन्न चुनौतियों को देखते हैं तो पाते हैं कि कई वस्तुओं का उत्पादन बहुत कुछ आयातित कच्चे माल और आयातित वस्तुओं पर आधारित है. खासतौर से दवाई उद्योग, मोबाइल उद्योग, चिकित्सा उपकरण उद्योग, वाहन उद्योग तथा इलेक्ट्रिक जैसे कई उद्योग. बहुत कुछ आयातित माल पर आधारित हैं.
हम उम्मीद करें कि लद्दाख की गलवान घाटी में चीन के द्वारा किए गए खूनी संघर्ष के बाद अब एक ओर सरकार के द्वारा चीन से कम जरूरी आयातों को नियंत्रित किया जाएगा, वहीं दूसरी ओर देश के मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर के लिए चीन से आयात की जा रही ज्यादा जरूरी वस्तुओं और कच्चे माल को देश में ही उत्पादित किए जाने के कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी. ऐसी रणनीति से निश्चित रूप से चीन से आयात में कमी होगी और साथ ही चीन से व्यापार घाटे में और कमी आ सकेगी. हम उम्मीद करें कि सरकार और देश के लोग चीन को आर्थिक टक्कर देने का संकल्प लेंगे।