कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: मजदूर संगठन आत्मावलोकन करें

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 1, 2019 08:34 AM2019-05-01T08:34:26+5:302019-05-01T08:34:26+5:30

इस वक्त मजदूर संगठनों को आत्मावलोकन की बहुत सख्त जरूरत है. शंकरगुहा नियोगी की यह सीख उन्होंने नहीं मानी है कि मजदूर संगठन सिर्फ आठ नहीं, चौबीस घंटों के लिए होने चाहिए. इसीलिए वे समझ ही नहीं पा रहे कि र्निबध पूंजी के बरक्स र्निबध श्रम की मांग के लिए यही सबसे उपयुक्त समय है.

Blog of Krishna Pratap Singh: Observe Labor Organization | कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: मजदूर संगठन आत्मावलोकन करें

कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: मजदूर संगठन आत्मावलोकन करें

भूमंडलीकरण के चोले में आई नवउपनिवेशवादी नीतियों के ‘सफल’ पच्चीस से ज्यादा सालों बाद हमारे देश के सयाने लोग पूछते हैं कि अब जब मजदूरों के पुराने कौशल बेकार हो गए, न वे श्रमिक रहे, न वह श्रमिक एकता और कथित रूप से कुछ ज्यादा ही कुशल श्रमिकों का एक हिस्सा अपनी निजी उपलब्धियों व महत्वाकांक्षाओं के फेर में पड़कर योग्यता व प्रतिस्पर्धा के नाम पर मजदूर आंदोलन के मूल्यों से गद्दारी पर आमादा है, तब इस दिवस का क्या औचित्य है? 

उनका पूछना बहुत गलत भी नहीं है. कहां तो ‘दुनिया के मजदूरों एक हो’ का नारा था और कहा जाता था कि उनके पास खोने को सिर्फ बेड़ियां हैं जबकि जीतने को सारी दुनिया और कहां उन्मत्त पूंजी दुनिया भर में उपलब्ध सस्ते श्रम के शोषण का नया इतिहास रचने पर आमादा है. इस आईने में देखें तो मजदूर आंदोलनों के विपर्यय और अवसान के अंदेशे बहुत परेशान करते हैं. लेकिन कोई यह कहे कि इस एक पराजय से मजदूरों की एकता या उनके आंदोलनों की प्रासंगिकता ही खत्म हो गई है तो उससे सहमत नहीं हुआ जा सकता. 

अलबत्ता, इस वक्त मजदूर संगठनों को आत्मावलोकन की बहुत सख्त जरूरत है. शंकरगुहा नियोगी की यह सीख उन्होंने नहीं मानी है कि मजदूर संगठन सिर्फ आठ नहीं, चौबीस घंटों के लिए होने चाहिए. इसीलिए वे समझ ही नहीं पा रहे कि र्निबध पूंजी के बरक्स र्निबध श्रम की मांग के लिए यही सबसे उपयुक्त समय है. क्योंकि पूंजी के भूमंडलीकरण के प्रवर्तक और सबसे बड़े लाभार्थी अमेरिका तक का मन अब, अपने ज्ञात-अज्ञात अंतर्विरोधों के ही कारण सही, उससे उचट रहा है और उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ‘अमेरिका फस्र्ट’ का नारा दे रहे हैं. दुनिया भर में श्रमिकों की संरक्षक नीतियों के उन्मूलन के बाद अमेरिका द्वारा अमेरिकियों के इस संरक्षण को ठीक से समङों तो इसके पीछे उसका अचानक उभर आया राष्ट्रवाद ही नहीं, आज नहीं तो कल संभव हो जाने वाले श्रम के भूमंडलीकरण के अंदेशों से डरा हुआ अमेरिकी मन है.  ठीक इसी समय उससे पूछा जाना चाहिए कि भूमंडलीकरण के नाम पर बड़ी पूंजी के र्निबध प्रवाह के लिए राष्ट्रों व राज्यों की पुरानी सीमाओं व सत्ताओं के अतिक्रमणों का दौर चलाने के बाद श्रम को र्निबध होने से रोकने की लड़ाई वह ‘पुराने हथियारों’ से कैसे जीतेगा? 

Web Title: Blog of Krishna Pratap Singh: Observe Labor Organization

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