ब्लॉगः NRC को लेकर नया विवाद, विवादित पहलू के तीन पक्ष आमने-सामने
By शशिधर खान | Published: June 7, 2022 01:04 PM2022-06-07T13:04:30+5:302022-06-07T13:04:43+5:30
ताजा विवाद वर्तमान एनआरसी, कोऑर्डिनेटर हितेश देव सरमा ने अपने पूर्ववर्ती प्रतीक हाजेला के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराकर खड़ा किया है। प्रतीक हाजेला ने सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में अगस्त, 2019 में एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) तैयार किया था, लेकिन उसको लेकर असम की भाजपा सरकार ने विवाद पैदा किया।
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), 2019 लागू होते ही जगह-जगह हिंसा भड़की और केंद्र सरकार को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) तथा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का काम ढीला करना पड़ा। असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण ही मुख्य रूप से नागरिकता संशोधन कानून बनाया गया, जिसे असम के बाद पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में भी लागू करके राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार करवाने की केंद्र की योजना थी। विवाद के कारण राष्ट्रीय स्तर पर यह काम रोक दिया गया, क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में था। फिर उसके बाद कोरोना वाली बाधा सामने आ गई। लेकिन असम में एनआरसी तैयार करवाने का काम कोरोना से पहले विवाद के बावजूद सीधे सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जारी रहा और कोरोना के लगभग काबू में आने के बावजूद विवाद नया रंग लेता चला गया। विवादित पहलू के तीन पक्ष हैं और आमने-सामने हैं। सुप्रीम कोर्ट, असम सरकार और एनआरसी कोऑर्डिनेटर तीनों के बीच रस्साकशी के बीच राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर विवाद झूल रहा है।
ताजा विवाद वर्तमान एनआरसी, कोऑर्डिनेटर हितेश देव सरमा ने अपने पूर्ववर्ती प्रतीक हाजेला के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराकर खड़ा किया है। प्रतीक हाजेला ने सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में अगस्त, 2019 में एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) तैयार किया था, लेकिन उसको लेकर असम की भाजपा सरकार ने विवाद पैदा किया। प्रतीक हाजेला पर आरोप लगा कि उन्होंने ‘कई अयोग्य व्यक्तियों का नाम एनआरसी में शामिल कर लिया।’ उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के ही आदेश से प्रतीक हाजेला का तबादला असम से बाहर मध्यप्रदेश कर दिया गया। असम सरकार ने प्रतीक हाजेला की जगह हितेश देव सरमा को नवंबर, 2019 में एनआरसी कोऑर्डिनेटर नियुक्त किया, जो पहले से ही विवाद के घेरे में थे। हितेश देव सरमा की सोशल मीडिया पर टिप्पणियों के बारे में कथित सांप्रदायिक पूर्वाग्रह से ग्रसित होने के आरोप लगते रहे, लेकिन राज्य सरकार के लिए वे ‘सही सोच’ वाले व्यक्ति थे। उस वक्त भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल थे, जिन्होंने विदेशी (बांग्लादेशी) घुसपैठियों की पहचान करके उन्हें स्वदेश भेजने और सिर्फ असमियों को नागरिकता प्रदान करने की मुहिम चलाई।