ब्लॉग: खत्म होने की राह पर है नक्सलवाद
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: January 19, 2024 10:41 AM2024-01-19T10:41:13+5:302024-01-19T10:42:48+5:30
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2015 में एक नीति बनाई गई और वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) को खत्म करने के लिए एक कार्ययोजना पर काम शुरू हुआ। पिछड़े इलाकों का विकास करना, सड़कें और अन्य बुनियादी ढांचे बनाना योजना का हिस्सा था जो अब फल देता दिख रहा है।
महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले में नक्सलवादियों के प्रभाव वाले खतरनाक क्षेत्र के दूरस्थ गांव में एक पुलिस चौकी की स्थापना नए साल में एक अच्छी खबर है। आश्चर्य की बात तो यह है कि कई दशकों तक इस विशाल वन क्षेत्र में नक्सलियों की भारी उपस्थिति के बावजूद महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़ सरकारों द्वारा कोई पुलिस चौकी स्थापित नहीं की जा सकी। वास्तव में पिछले 60 वर्षों में इस क्षेत्र में माओवादियों को बड़े पैमाने पर खुली छूट हासिल थी। ऐसे में इस कदम के लिए महाराष्ट्र सरकार की सराहना की जानी चाहिए। करीब 1500 पुलिस कर्मियों की एक मजबूत टुकड़ी ने अंततः अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए गर्देवाड़ा तक 60 किलोमीटर से अधिक पैदल मार्च कर शानदार काम किया। एक ही दिन में सड़क मार्ग बनाकर चौकी बना दी।
गढ़चिरोली और उससे सटे कभी देश के सबसे बड़े आदिवासी जिले बस्तर का हिस्सा रहे अबुझमाड़ के दूरदराज के इलाके में कई दशकों से भयावह नक्सली हिंसा होती रही है, क्योंकि दिल्ली, भोपाल, रायपुर और मुंबई में सरकारें मूकदर्शक बनी रहीं।
छोटे राज्य बनाने के विचार के पीछे मूल मकसद लोगों की समस्याओं से प्रभावी ढंग से निपटना भी था। इस उद्देश्य के साथ अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने नवंबर 2000 में देश के बड़े राज्यों क्रमशः मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और बिहार से काटकर तीन नए राज्यों छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड का गठन किया था। उत्तरप्रदेश नक्सल प्रभावित राज्य नहीं था, लेकिन दो अन्य राज्य माओवादियों से बुरी तरह प्रभावित थे, जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी थी। छत्तीसगढ़ में सबसे भीषण हमलों में झीरम घाटी (2013) में कांग्रेस की रैली शामिल थी जिसमें वी.सी. शुक्ला, महेंद्र कर्मा और नंदकुमार पटेल सहित शीर्ष 25 नेताओं की मौत हो गई। इसके पहले दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ की टुकड़ी पर हमला हुआ था, जिसमें 76 पुलिसकर्मी शहीद हो गए। वर्ष 2010 में हुआ वह हमला भारतीय सुरक्षा बलों पर सबसे भयानक हमला था, जिसने सभी को सदमे में डाल दिया।
एक समय आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड और ओडिशा राज्यों के 100 से अधिक जिलों में छोटी या बड़ी मात्रा में नक्सली दलम या समूह मौजूद थे, जो कथित तौर पर उत्पीड़ितों, दलितों, आदिवासियों और ग्रामीणों के ‘अधिकारों की रक्षा’ करने के घोषित सिद्धांतों के साथ गैरकानूनी काम कर रहे थे. उनके निशाने पर मुख्य रूप से पुलिस और वन अधिकारी थे।
नक्सलवाद 1960 के दशक के मध्य में चारु मजूमदार, कानू सान्याल और जंगल संथाल के नेतृत्व में नक्सलबाड़ी (पश्चिम बंगाल) गांव से शुरू हुआ। इस कट्टरपंथी आंदोलन को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का समर्थन प्राप्त था। 1967 के नक्सलबाड़ी सशस्त्र विद्रोह ने जल्द ही बेरोजगार युवाओं और उन लोगों के मन में जगह बना ली, जो जमींदारों और तत्कालीन सरकारों के अन्याय के खिलाफ थे-मुख्य रूप से इसके निचले अधिकारियों के-जो गरीब ग्रामीणों और असहाय किसानों को लूटते थे।
चूंकि विद्रोह दार्जिलिंग जिले के नक्सलबाड़ी ब्लॉक से शुरू हुआ, इसलिए इसे नक्सलवाद का नाम मिला और विद्रोहियों को नक्सली करार दिया गया। हां, मोदी सरकार नक्सलवाद से सख्ती से निपट रही है; गृह मंत्री अमित शाह कहते रहे हैं कि भाजपा सरकार वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) को खत्म करके रहेगी. लेकिन कांग्रेस ने हमेशा इस आंदोलन को एक सामाजिक-आर्थिक समस्या के रूप में देखा। यदि पिछले 60 वर्षों में नक्सलवाद हद से ज्यादा बढ़कर हमारी आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर चुनौती बन गया है, तो इसका कारण कांग्रेस शासन द्वारा दिखाई गई नरमी थी। कांग्रेस नेता अक्सर कहते थे कि ‘वे गुमराह युवाओं का एक समूह हैं जिन्हें राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल करने की आवश्यकता है।’ निस्संदेह, गृह मंत्री के रूप में पी. चिदम्बरम ने इस खतरे को रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए थे।
नक्सली अपनी रणनीतियों में लगातार बदलाव के साथ केंद्र और राज्य सरकार के लिए कड़ी चुनौती बने हुए हैं। अत्याधुनिक हथियारों और गोला-बारूद का भंडार, अन्य अतिवादी समूहों के साथ गठजोड़, पुलिस वैन पर हमले, पिछड़े इलाकों में घातक बारूदी सुरंगें बिछाना, आदिवासी युवाओं को अपने क्षेत्रों का विस्तार करने के लिए प्रभावित करना आदि ने मिलकर देश में एक बड़ा लाल गलियारा बना दिया था। यहां तक कि पुलिस बल भी असहाय महसूस कर रहे थे। वर्ष 2009-10 उनकी गतिविधियों का चरम बिंदु था। फरवरी 2022 में संसद में सरकार के जवाब के अनुसार उस दशक में 96 जिले वामपंथी उग्रवाद से सबसे अधिक प्रभावित थे।
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2015 में एक नीति बनाई गई और वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) को खत्म करने के लिए एक कार्ययोजना पर काम शुरू हुआ। पिछड़े इलाकों का विकास करना, सड़कें और अन्य बुनियादी ढांचे बनाना योजना का हिस्सा था जो अब फल देता दिख रहा है। अमित शाह ने भोपाल में सेंट्रल जोनल काउंसिल की बैठक में कहा कि 2009 में नक्सली हमलों में 1005 लोग मारे गए थे, 2021 तक यह संख्या घटकर 147 रह गई। गढ़चिरोली जिले के दूरस्थ गांव में पुलिस स्टेशन की स्थापना उन भारतीयों के लिए नक्सल आंदोलन के इतिहास में एक मील का पत्थर है, जिन्होंने अंतहीन पीड़ा झेली है और अपने घरवालों को खोया है।