ब्लॉगः धार्मिक मामलों में संविधान और समाज के प्रति जवाबदेही को समझना जरूरी

By विश्वनाथ सचदेव | Published: July 6, 2022 12:53 PM2022-07-06T12:53:26+5:302022-07-06T12:54:04+5:30

दुनिया का हर धर्म शांति, करुणा, भाईचारे की शिक्षा देता है। हम यह भी जानते हैं कि सत्य एक ही है, विद्वान अलग-अलग तरीकों से उसकी व्याख्या भर करते हैं। धर्म के सारे रास्ते एक ही ईश्वर तक पहुंचाने वाले हैं।

Blog It is important to understand the accountability to the constitution and society in religious matters | ब्लॉगः धार्मिक मामलों में संविधान और समाज के प्रति जवाबदेही को समझना जरूरी

ब्लॉगः धार्मिक मामलों में संविधान और समाज के प्रति जवाबदेही को समझना जरूरी

धार्मिक भावनाओं का मामला बहुत संवेदनशील है इसलिए इस संदर्भ में कुछ भी बोलने से पहले सौ बार तौलने की बात कही जाती है। विवेक का तकाजा है कि देश का हर नागरिक इस संदर्भ में अपनी भावनाओं पर काबू रखे और अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक हो। कर्तव्य यह है कि धार्मिक उन्माद का वातावरण शांत हो। दुनिया का हर धर्म शांति, करुणा, भाईचारे की शिक्षा देता है। हम यह भी जानते हैं कि सत्य एक ही है, विद्वान अलग-अलग तरीकों से उसकी व्याख्या भर करते हैं। धर्म के सारे रास्ते एक ही ईश्वर तक पहुंचाने वाले हैं। पर सब कुछ जानते हुए भी हम समझना नहीं चाहते, इसीलिए टीवी की बहस तक में भड़क जाते हैं, मेरा धर्म और तेरा धर्म की बात करने लगते हैं जबकि सब धर्म एक आदर्श जीवन जीने की राह बताने का ही काम करते हैं। 

जीवन के इस आदर्श में नफरत के लिए कोई जगह नहीं है-नहीं होनी चाहिए। किसी की भावनाओं को आहत करने का अधिकार न किसी को है, और न होना चाहिए। किसी भी सभ्य समाज में किसी का भी हक नहीं बनता कि वह धार्मिक भावनाओं के नाम पर नफरत का जहर फैलाए। इस नफरत को समाप्त करने के लिए हर नागरिक को हरसंभव प्रयास करना होगा। समाज में भाईचारा बना रहे, इसके लिए जो प्रयास अपेक्षित है, उन्हीं का हिस्सा है हमारा संविधान जो हमने स्वयं अपने लिए बनाया है। यह संविधान देश के हर नागरिक को, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो, समानता का अधिकार देता है। धर्म के नाम पर किसी को भी कोई विशेषाधिकार नहीं है हमारी व्यवस्था में। न ही हमारा संविधान धर्म के नाम पर किसी भी प्रकार के भेदभाव की अनुमति देता है। आसेतु-हिमालय यह भारत सबका है-उन सबका जो इस देश के नागरिक हैं और नागरिक होने की पहली और सबसे महत्वपूर्ण शर्त है संविधान का पालन। हमारा धर्म, हमारी जाति, हमारा वर्ग, हमारा वर्ण, सब संवैधानिक मर्यादाओं से बंधे हुए हैं। समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुता के आधारों पर खड़ा हमारा संविधान सर्वोपरि है। उसकी अवहेलना, उसका अपमान दोनों अपराध हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख न्यायाधीश ने हाल ही में अमेरिका में रह रहे भारतवंशियों को संबोधित करते हुए देश के संविधान के प्रति प्रतिबद्धता की बात कही है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि हमारी अदालतों की जवाबदेही भी संविधान के प्रति ही है। सच बात तो यह है कि सवाल सिर्फ न्यायपालिका की जवाबदेही का नहीं है। कानून बनाने वाली हमारी संसद की जवाबदेही भी हमारे संविधान के प्रति ही है और कार्यपालिका भी इसी जवाबदेही से बंधी हुई है। देश के एक सामान्य नागरिक से लेकर देश के 'प्रथम नागरिक', राष्ट्रपति तक का यह दायित्व बनता है कि वह संविधान की मर्यादाओं में काम करे। पर एक जवाबदेही और भी है, जो संविधान के प्रति जवाबदेही से कम महत्वपूर्ण नहीं है- यह जवाबदेही समाज के प्रति होती है। जिस समाज में हम रहते हैं, जो समाज हमने स्वयं अपना जीवन जीने के लिए बनाया है, उसके प्रति भी हमारी एक जवाबदेही है। वह समाज स्वस्थ रहे, यह दायित्व भी हमारा ही है-और यहां स्वस्थ रहने का मतलब मानसिक और नैतिक स्वास्थ्य से है। हमारा दायित्व बनता है कि हम समाज के इस स्वास्थ्य के प्रति निरंतर जागरूक रहें। इस संदर्भ में न कोई कोताही बरतें और न ही किसी को कोताही बरतने दें। यही एक अच्छे और सच्चे नागरिक का कर्तव्य है।

Web Title: Blog It is important to understand the accountability to the constitution and society in religious matters

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