ब्लॉगः नक्सली हिंसा का यह खूनी मंजर कब तक, बस्तर के माओवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा क्यों नहीं बन सकते ?

By गिरीश पंकज | Published: April 29, 2023 09:10 AM2023-04-29T09:10:44+5:302023-04-29T09:11:19+5:30

नक्सलियों के साथ बैठकर उनके मुद्दों को समझना और उनका समाधान भी निकालना जरूरी है। नक्सलियों को भी समझना चाहिए कि खून बहाना कोई समाधान नहीं। आज तक इस रास्ते से कहीं कोई समाधान नहीं निकल सका है, न भविष्य में निकलेगा।

Blog How long will this bloody scene of Naxalite violence last | ब्लॉगः नक्सली हिंसा का यह खूनी मंजर कब तक, बस्तर के माओवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा क्यों नहीं बन सकते ?

ब्लॉगः नक्सली हिंसा का यह खूनी मंजर कब तक, बस्तर के माओवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा क्यों नहीं बन सकते ?

पिछले दिनों नक्सलियों ने बस्तर में दस जवानों को शहीद कर दिया। एक चालक ने भी अपनी जान गंवाई। पिछले चार दशकों में नक्सलियों ने डेढ़ हजार से अधिक लोगों की जानें लीं। इनमें सौ से अधिक जनप्रतिनिधि शामिल हैं। हमारी सुरक्षा व्यवस्था बेहद चाक-चौबंद होनी चाहिए। ड्रोन के सहारे भी हम नक्सली गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं और किसी भी आसन्न खतरे का सामना कर सकते हैं। अब समय आ गया है कि नक्सलियों के सफाये के लिए तंत्र को और सावधान होना होगा। भविष्य में दोबारा नक्सली खूनी वारदात को अंजाम न दे सकें, इसके लिए सुरक्षाबलों को सतर्क रहना होगा।

हमें नक्सलियों से बात करने की भी कोशिश करनी होगी। हालांकि छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सलियों से आग्रह किया है कि वे हिंसा का रास्ता छोड़ दें तो सरकार उनसे बात करने के लिए राजी है। बात तभी होगी, जब नक्सली अपना खूनी रास्ता छोड़ेंगे। एक रास्ता गांधीवाद का भी है। इस हेतु जनमानस को सक्रिय करना होगा। लोग नक्सलियों से मिलें, उनसे बात करें। बहुत पहले हम कुछ पत्रकारों ने नक्सलियों से मिलने के लिए नारायणपुर के घने जंगलों की पांच दिवसीय पदयात्रा की थी। हालांकि उस वक्त नक्सली मिले ही नहीं। लेकिन ऐसे प्रयास होने चाहिए। जैसा अभी एक्टिविस्ट शुभ्र चौधरी के प्रयास से  ‘चेकलेमांदी’ (सुख शांति के लिए बैठक) नामक अभियान चल रहा है। 

नक्सलियों के साथ बैठकर उनके मुद्दों को समझना और उनका समाधान भी निकालना जरूरी है। नक्सलियों को भी समझना चाहिए कि खून बहाना कोई समाधान नहीं। आज तक इस रास्ते से कहीं कोई समाधान नहीं निकल सका है, न भविष्य में निकलेगा। हिंसा केवल प्रतिहिंसा को जन्म देती है। घृणा से घृणा उपजती है। प्रेम ही समाधान है। नक्सली इस बात को समझें। ये जिन आदिवासियों की बात करते हैं, उनकी भी जान ले लेते हैं। उनका विकास नहीं होने देते। इसलिए यह गलत रास्ता छोड़ना होगा। जब नेपाल में नक्सली मुख्यधारा में शामिल हो गए, पूर्वोत्तर के उग्रवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा बन गए, तो बस्तर के नक्सली क्यों नहीं बन सकते? वे इस पर गंभीरता से विचार करें। 

Web Title: Blog How long will this bloody scene of Naxalite violence last

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