ब्लॉग: समतामूलक शिक्षा होती है राष्ट्रीय विकास का आधार
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 11, 2023 11:56 AM2023-11-11T11:56:49+5:302023-11-11T12:00:26+5:30
मौजूदा केंद्रीय राजनैतिक एवं प्रशासनिक नेतृत्व की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के प्रति निष्ठा और उससे उपजे क्रियान्वयन की प्रतिबद्धता शिक्षा दिवस के इस ध्येय आह्वान की सफलता के प्रति एक आश्वासन देती दिखाई पड़ती है।
नई दिल्ली: यह संयोग ही है कि ‘पाठ्यक्रम को बदलकर ही हम शिक्षा को बदल सकते हैं’ इस ध्येय वाक्य के साथ आजाद भारत इस वर्ष का राष्ट्रीय शिक्षा दिवस एक वैचारिक संकल्प के साथ मना रहा है। इसमें यह अनुप्राणित है कि देश में पाठ्यक्रम को बदलने से ही शिक्षा प्रणाली को एक नया कलेवर दिया जा सकता है तथा शिक्षा की विषयवस्तु, पद्धतियों और प्रक्रियाओं को वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप संवर्धित किया जा सकता है।
मौजूदा केंद्रीय राजनैतिक एवं प्रशासनिक नेतृत्व की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के प्रति निष्ठा और उससे उपजे क्रियान्वयन की प्रतिबद्धता शिक्षा दिवस के इस ध्येय आह्वान की सफलता के प्रति एक आश्वासन देती दिखाई पड़ती है। गौरतलब है कि आद्योपांत राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 अपनी वैचारिकी में शिक्षा को एक ऐसी आधारभूत एवं बहु-उद्देशीय परियोजना के रूप में प्रस्तुत करती है, जहां शिक्षा किसी व्यक्ति या समाज अथवा व्यवस्था को नहीं बल्कि संपूर्ण राष्ट्र को संवर्धित और परिवर्तित करने में सामर्थ्यवान होती है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मूल प्रस्तावना लोकतांत्रिक, समतामूलक और ज्ञान-आधारित समाज की निर्मिति में सबके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की अनिवार्यता को नैसर्गिक और अपरिहार्य मानती है। नि:संदेह 21वीं सदी भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए एक संक्रमण की सदी है, जहां भारतीय शिक्षा व्यवस्था अपने संपूर्ण कलेवर को संरचना, उद्देश्य, सिद्धांत, प्रक्रिया, अभ्यास एवं अनुप्रयोग आदि के संदर्भ में पुनरावलोकित करते हुए पुनर्परिभाषित हो रही है।
भारतीय उच्च शिक्षा की मौजूदा स्थिति और प्रगति यह बताती है कि 1100 से अधिक विश्वविद्यालयों, 40000 महाविद्यालयों और 11000 एकल विशेषज्ञता के उच्च शिक्षण संस्थानों के साथ 2035 तक भी हम उच्च शिक्षा के नामांकन में केवल आधी आबादी को ही ले जा पाने में समर्थ होंगे। भारतीय उच्च शिक्षा तंत्र दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शिक्षा तंत्र है, जिसमें 3.8 करोड़ से अधिक विद्यार्थी जुड़े हैं और 15.03 लाख शिक्षक कार्यरत हैं. चिंताजनक बात है कि ‘बिग डाटा, मशीन लर्निंग और ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ की ‘ज्ञानमीमांसीय त्रयी’ से संदर्भित 21वीं सदी के संधान के लिए ‘अर्जुन’ बिना ‘गुरु’ के तैयार हो रहे हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के एक तिहाई से अधिक पद खाली हैं. वहीं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में 40 प्रतिशत से अधिक पदों पर शिक्षक नहीं हैं। 48 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के लगभग 6000 पद रिक्त हैं।