ब्लॉग: मतदाता की जागरूकता से ही बचेगा लोकतंत्र
By विश्वनाथ सचदेव | Published: May 8, 2024 10:55 AM2024-05-08T10:55:18+5:302024-05-08T11:04:38+5:30
दुनिया का सबसे बड़ा जनतांत्रिक देश होने का दावा करने वाले भारत में चुनाव का स्तर इतना नीचा क्यों होता जा रहा है। ये एक गंभीर सवाल तेजी से खड़ा हो रहा है।
![Blog: Democracy will survive only through voter awareness | ब्लॉग: मतदाता की जागरूकता से ही बचेगा लोकतंत्र Blog: Democracy will survive only through voter awareness | ब्लॉग: मतदाता की जागरूकता से ही बचेगा लोकतंत्र](https://d3pc1xvrcw35tl.cloudfront.net/sm/images/420x315/ele-indi_202405291015.jpg)
फाइल फोटो
वे तीनों पढ़े लिखे हैं। कहना चाहिए उच्च शिक्षा-प्राप्त हैं। उनमें से दो पत्रकार हैं और तीसरा एक बड़े सामाजिक- सांस्कृतिक संगठन में उच्च अधिकारी। इन तीनों में हो रही बातचीत देश में चल रहे चुनाव के बारे में थी और तीनों इस बात पर चिंता प्रकट कर रहे थे कि दुनिया का सबसे बड़ा जनतांत्रिक देश होने का दावा करने वाले देश में चुनाव का स्तर इतना नीचा क्यों होता जा रहा है।
देश में मतदान का तीसरा दौर पूरा हो चुका है बाकी के चार दौर भी शीघ्र ही समाप्त हो जाएंगे। 4 जून को मतदान का परिणाम भी सामने आ जाएगा। तब मतदाता तय कर लेगा कि किसको सत्ता में बिठाना है और किसे विपक्ष की भूमिका देनी है। चुनाव जनतंत्र का उत्सव ही नहीं होते, जनतंत्र की प्राण-वायु भी होते हैं और उन तीन जागरूक नागरिकों की चिंता भी इसी बात को लेकर थी कि देश में चुनाव-प्रचार का घटता स्तर इस प्राण-वायु में जहर घोल रहा था।
जहर घोलने जैसे शब्द कुछ कठोर लग सकते हैं, लेकिन चुनाव-प्रक्रिया के आगे बढ़ने के साथ-साथ जिस तरह चुनाव-प्रचार की भाषा का स्तर गिरता जा रहा है, उसे देखकर देश के इन तीन बुद्धिजीवियों के आकलन को अनदेखा करना भी गलत होगा। सही यह भी है कि आम मतदाता भी इस गिरते स्तर से स्वयं को कुछ ठगा हुआ महसूस कर रहा है।
हमारे राजनेता यह भूल रहे हैं कि राजनीति सत्ता के लिए नहीं सेवा के लिए होनी चाहिए।
चुनाव-प्रचार के स्तर का लगातार गिरना यही दर्शाता है कि हमारी आज की राजनीति सही मुद्दों को अनदेखा कर रही है। निश्चित रूप से यह चिंता की बात है कि हमारी राजनीति का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है। सारे प्रावधानों के बावजूद हमारे राजनेता घटिया भाषा और घटिया भावों के सहारे राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे। विडंबना यह भी है कि ऐसे घटिया आचरण को रोक पाने में संबंधित एजेंसियां विफल सिद्ध हो रही हैं।
इस घटिया राजनीति का विरोध होना ही चाहिए और यह विरोध जागरूक मतदाता को ही करना है। मतदाता की जागरूकता जनतंत्र की सफलता-सार्थकता की पहली शर्त है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मुंबई के तीन बुद्धिजीवी जिस अंतर्धारा की बात कर रहे थे उसके मूल में यह जागरूकता प्रवाहित हो रही है।