ब्लॉगः 2014 के बाद से शुरू हुआ, 7 साल में बदल गई लोगों की सोच

By डॉ उदित राज | Published: February 13, 2022 07:35 PM2022-02-13T19:35:03+5:302022-02-13T19:36:30+5:30

दिल्ली जंतर मंतर और लखनऊ और न जाने कहां कहां धरना और प्रदर्शन कर रहे हैं। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से अपने सवाल बार बार उठवाना चाहते हैं।

blog 2014 People thinking changed in 7 years covid coronavirus pm narendra modi | ब्लॉगः 2014 के बाद से शुरू हुआ, 7 साल में बदल गई लोगों की सोच

देश का नाम विदेश में नहीं हुआ करता था। विश्व गुरु बनने के करीब हैं। दूसरे हमसे सीख रहे हैं।

Highlightsमोदी जी की बात आती है तो एक हिस्सा समर्थन में आ खड़ा हो जाता है। बेरोजगारी और महंगाई पर भी यही मानसिकता बन गई है। आम आदमी सत्यापित नहीं कर सकता और वो वही स्वीकार लेता है।

2014 से नई सोच बुनियाद पड़ी और अब तक एक मंजिल हासिल कर चुकी है। कुछ वर्षों से झूठ बोलना कोई असुविधा जनक बात नहीं रह गई। जब देश के बड़े जिम्मेदार लोग झूठ बोलें तो सामान्य लोग उससे सीखते हैं। कुछ लोग जरूर असहमत हों लेकिन भीड़ की आवाज में उन्हें चुप करा देती है।

पड़ताल करना चाहिए कि झूठ का असर कितना पड़ चुका है। लाखों लोग कोरोना में मरे और नदी में तैरती लाशें देखीं। समाज का एक हिस्सा इससे द्रवित नहीं हुआ और अपने नेता के झूठ को सुनते सुनते उसका देखने का नजरिया बदल चुका है। वो मानने को तैयार नहीं हैं कि लाखों लोग मरे और सरकार ने उपचार का अग्रिम तैयारी नहीं की।

मनोविज्ञान में एक अध्याय पढ़ाया जाता है कि जो व्यक्ति लगातार झूठ बोले तो वो ऐसी स्थिति को प्राप्त कर लेता है कि झूठ सच लगने लगता है। भक्त जनों का यही हाल इस समय है। 20 से 25 दिन सरकार गायब रही और लोग महामारी से अपने स्तर पर लड़े। वो भयानक मंजर सबने देखा लेकिन दूसरे दिशा से आवाज आती रही की सरकार चिंतित और कर रही है।

बार-बार कहा गया और उसका असर हुआ कि इतने खौफनाक दृश्य को भूल गए। लगभग साढ़े तीन करोड़ परीक्षार्थी जूझ रहे हैं कि कोरोना के कारण प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठ नहीं पाए या डिजिटल सुविधा न होने के कारण, तैयारी न कर सके। दो साल की उम्र  का नुकसान हुआ है। ये परीक्षार्थी चाहते हैं कि दो अवसर और दिया जाए।

इन समस्याओं को लेकर दिल्ली जंतर मंतर और लखनऊ और न जाने कहां कहां धरना और प्रदर्शन कर रहे हैं। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से अपने सवाल बार बार उठवाना चाहते हैं। उन्होंने यथा संभव उठाया भी। विपक्ष के किसी नेता को नहीं छोड़ा होगा और सबसे निवेदन करते फिरते रहते हैं मामले को उठाएं।

इसके बावजूद जब मोदी जी की बात आती है तो एक हिस्सा समर्थन में आ खड़ा हो जाता है। इस तरह की मानसिकता का निर्माण 2014 के बाद से शुरू हुआ है। आपात काल की जोर जबरदस्ती को लोग भूले नहीं थे और सरकार उखाड़ फेंका। फर्क है कि उस  समय झूठ और पाखंड का सहारा नहीं लिया।

वर्तमान हालात ऐसे हो गए हैं कि कितना भी बड़ा भ्रष्टाचार हो, अनैतिक कृत्य या झूठ व अन्याय हो वो बहुतों के नजर में कोई गलत नहीं है। सीधा जवाब है की पहले भी तो भ्रष्टाचार था। तानाशाही क्या पहले नहीं हुआ करती थी? बेरोजगारी और महंगाई पर भी यही मानसिकता बन गई है। कुछ काल्पनिक बातों का प्रचार कर दिया है जो आम आदमी सत्यापित नहीं कर सकता और वो वही स्वीकार लेता है।

बार बार कहना कि पहले देश का नाम विदेश में नहीं हुआ करता था। विश्व गुरु बनने के करीब हैं। दूसरे हमसे सीख रहे हैं। भारत की संस्कृति और अध्यात्म का फैलाव अब जाकर हो रहा है। समय आ गया है कि अतीत से पुनः भारत को सृजित करें। पहले के प्रधानमंत्री को विदेशों में जानते नहीं थे। असली आज़ादी 2014 के बाद शुरू हुई और बहुत कुछ करना है।

इस झूठ को पावं लगाने के लिए एक और बड़ा झूठ बोला जा रहा है कि इन सबको करने के लिए त्याग करना होता है। मतलब कि बेरोजगारी और महंगाई बड़ी बात नहीं और देश के खातिर बर्दाश्त कर लेना चाहिए। जो इनके खिलाफ बोले या लिखे उसको राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिया जा रहा है। झूठ एक विचारधारा भले न हो लेकिन एक सोच जरुर है।

यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि एक नई संस्कृति का जन्म हो गया है। इतने कम समय में देश की एक बड़ी आबादी की सोच बदलना आसान कार्य नहीं था। कई मोर्चों पर लगातार काम हुआ तब जाकर यह स्थिति बनी। ज्यादातर टीवी चैनल्स ने लगातार झूठ और नफरत फैलाए। व्हाट्सएप की बड़ी भूमिका रही है। अन्य सोशल मीडिया माध्यम हैं  जैसी फेसबुक, ट्विटर आदि। अखबार कहां पीछे रहने वाले थे।

कर्मकांड और भाग्यवाद आदि को बड़े पैमाने पर फैलाए गए। इस क्षेत्र में सत्यापन या प्रमाणिकता की जरूरत नहीं पड़ती है। वेद का सार क्या है? दुनिया भ्रम है और सत्य इन्सान के सोच और समझ के बाहर है। जो कहा जाए उसे ज्यों का त्यों मान लिया जाए। वैज्ञानिक सोच खत्म होती है यहां।

आरएसएस एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है और उसकी छमता असीम है। इस संगठन की जाल पूरे देश में है और इसके कार्यकर्ता  बड़े समर्पित हैं जो अल्प समय में कोई संदेश निम्न स्तर तक पहुंचा सकते है। शासक की बात को लोगों तक पहुंचाने की ऊर्जा इनमें है। यह भी कहा जा सकता है कि इनकी प्रयोगशाला की नीति सरकारी और अन्य तंत्र द्वारा लोगों के मनों में कूट कूट कर बैठा दिया गया है।

झूठ तर्क को कमजोर करता है। तर्क और विज्ञान जब कमजोर पड़ जाएं तो उस समाज का पतन निश्चित है। लोगों को भाग्य पर भरोसा ज्यादा और अपनी दिमागी सोच और शारीरिक क्षमता पर कम। इससे तकनीक और अनुसंधान पर प्रतिकूल असर पड़ता है। सौंदर्य का भाव का अभाव स्वाभाविक है।

साहित्य और कविता- पाठ जीवन की सच्चाई से दूर हो जाते हैं। महिलाओं की आजादी और मर्जी पर पाबंदी को होना सुनिश्चित है। परलोक के पाने के चक्कर  में वर्तमान को गौड़ समझने लगते हैं। लोगों में खुशी पर भी असर पड़ता है क्योंकि वो परंपरा और वर्जनाओं से बंध जाते हैं और इक्षा और चाहत को दबाकर जीने लगते हैं। रचनात्मकता मर जाती है जिसका असर सभी क्षेत्रों पर पड़ता है।

इस वातावरण में विज्ञान , साहित्य, तकनीकी, न्याय, अभिव्यक्ति की आजादी संभव नही है। अर्थव्यवस्था  का कमजोर होना स्वाभाविक है। सुधार और संघर्ष भी मंद पड़ेंगे। जातिवाद बढ़ेगा जो इन चुनावों में देखा जा सकता है। धार्मिक कट्टरता का पनपना ये स्वाभाविक बात होगी।

 

Web Title: blog 2014 People thinking changed in 7 years covid coronavirus pm narendra modi

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