BJP new President: नए भाजपा अध्यक्ष के चयन को लेकर दुविधा!

By हरीश गुप्ता | Published: January 16, 2025 07:00 PM2025-01-16T19:00:09+5:302025-01-16T19:03:29+5:30

BJP new President: समय सीमा तय की गई थी और सूत्रों ने संकेत दिया था कि फरवरी की शुरुआत में नड्डा के उत्तराधिकारी की नियुक्ति हो जाएगी.

BJP new President Pm narendra modi amit shah jp nadda rss mohan bhagwat Dilemma regarding selection of new BJP president blog harish gupta | BJP new President: नए भाजपा अध्यक्ष के चयन को लेकर दुविधा!

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Highlightsयह प्रक्रिया फरवरी के अंत या मार्च की शुरुआत तक पूरी हो सकती है. पार्टी विधानसभा चुनावों में या अन्यत्र अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई है.बहस हो रही है कि दलित अध्यक्ष को दक्षिण भारत से चुना जाए या उत्तर भारत से.

BJP new President: भाजपा आलाकमान ने स्पष्ट संकेत दिए थे कि जे.पी. नड्डा की जगह नया पार्टी प्रमुख जनवरी के अंत तक नियुक्त कर दिया जाएगा. 25 से अधिक राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे नहीं हो पाने के कारण तारीख को थोड़ा पुनर्निर्धारित किया गया था. 15 अक्तूबर को के. लक्ष्मण की नियुक्ति के साथ ही राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई थी और यह स्पष्ट था कि इसमें देरी होगी. फिर भी, एक समय सीमा तय की गई थी और सूत्रों ने संकेत दिया था कि फरवरी की शुरुआत में नड्डा के उत्तराधिकारी की नियुक्ति हो जाएगी.

लेकिन अब यह सामने आ रहा है कि यह प्रक्रिया फरवरी के अंत या मार्च की शुरुआत तक पूरी हो सकती है. इसके कई कारण हैं जैसे दिल्ली के चुनाव, जहां पार्टी ने अरविंद केजरीवाल के गढ़ को ध्वस्त करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है और कई राज्यों में उपयुक्त अध्यक्षों के चयन की दुविधा, जहां पार्टी विधानसभा चुनावों में या अन्यत्र अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई है.

दूसरी वजह यह है कि हाईकमान यह तय नहीं कर पाया है कि 2029 के लोकसभा चुनाव तक के लिए पार्टी की कमान किसी दलित को सौंपी जाए या नहीं. राज्यसभा में हुई बहस के बाद दलितों के मुद्दे ने तूल पकड़ा और भाजपा शायद अपनी राह आसान करना चाहती है. इसलिए इस बात पर भी बहस हो रही है कि दलित अध्यक्ष को दक्षिण भारत से चुना जाए या उत्तर भारत से.

1980 में अपनी स्थापना के बाद से भाजपा ने 11 अध्यक्ष देखे हैं और बंगारू लक्ष्मण को छोड़कर, जो थोड़े समय के लिए पार्टी अध्यक्ष रहे, कोई भी दलित जाति से नहीं रहा. पार्टी के उच्च स्तरों से कई नाम चर्चा में हैं, जिनमें मौजूदा केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, पार्टी महासचिव दुष्यंत गौतम और उत्तर प्रदेश की मंत्री बेबी रानी मौर्य शामिल हैं.

तर्क दिया जा रहा है कि अगर पार्टी को अपनी पहुंच और जनाधार बढ़ाना है तो उसे दक्षिण से किसी को लाना चाहिए. पार्टी ने पूर्व और पूर्वोत्तर राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है. अब दक्षिण की ओर देखने का समय आ गया है. पार्टी में यह भी कहा जा रहा है कि ओबीसी समुदाय से किसी व्यक्ति को लाया जाना चाहिए. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी भी इसी समुदाय से आते हैं और इसलिए दुविधा है.

‘24 अकबर रोड’ किसे मिलेगा?

करीब 50 साल तक कांग्रेस का राष्ट्रीय मुख्यालय और ऐतिहासिक पता रहे ‘24 अकबर रोड’ को अपने पास बनाए रखने को लेकर कांग्रेस की भाजपा से बड़ी खींचतान शुरू हो सकती है. दशकों की देरी के बाद पार्टी पहले ही नए पते 9-ए, कोटला रोड पर चली गई है. लेकिन यह बंगला भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है.

क्योंकि यही वह जगह है जहां दिवंगत इंदिरा गांधी ने 1977 के चुनाव में अपमानजनक हार के बाद अपनी यात्रा शुरू की थी और पार्टी टूट गई थी. इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस 1978 में 24, अकबर रोड कार्यालय में चली गई और आंध्र प्रदेश के तत्कालीन सांसद गद्दाम वेंकटस्वामी ने पार्टी को अपना आधिकारिक आवास देने की पेशकश की.

हालांकि 24, अकबर रोड एक अस्थायी व्यवस्था के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन कांग्रेस वहीं रही. अपने मुख्यालय के अलावा, कांग्रेस के पास जो अन्य बंगले हैं, वे हैं 26 अकबर रोड, जिसमें सेवा दल का अग्रिम मोर्चा है. सरकार ने सभी राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को नए स्थान आवंटित करने का निर्णय लिया तथा उनसे लुटियंस दिल्ली बंगला क्षेत्र खाली करने को कहा.

2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने इन बंगलों का आवंटन रद्द कर दिया था, क्योंकि इनमें रहने वाले नए स्थान पर जाने की समयसीमा का पालन करने में विफल रहे थे. अंत में, कांग्रेस नए मुख्यालय में चली गई और महत्वपूर्ण दस्तावेजों तथा अन्य ऐतिहासिक कीमती सामानों को पैक करने के लिए समय मांगा.

यदि मनोहर लाल खट्टर की अध्यक्षता वाले आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय से आने वाली रिपोर्टों की मानें तो अब और समय नहीं दिया जाएगा. पार्टी नेतृत्व 24 अकबर रोड को किसी नेता के नाम पर आवंटित करने पर भी विचार कर रहा है, क्योंकि विपक्ष के नेता राहुल गांधी पहले ही नया बंगला स्वीकार कर चुके हैं.

कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं का यह भी तर्क है कि भाजपा की तरह, जिसने दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर जाने के बाद लुटियंस दिल्ली में 11, अशोक रोड पर अपना कार्यालय नहीं छोड़ा है, उसे भी बंगला बनाए रखने की अनुमति दी जानी चाहिए. उनका कहना है ‘हम हाई-प्रोफाइल बैठकों के लिए कम से कम एक बंगला बनाए रखना चाहते हैं.’

नीतीश के फीके पड़ते करिश्मे से भाजपा चिंतित

भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री बनाए रखने के खिलाफ नहीं है, जैसा कि राज्य के कई नेताओं ने कहा है. भाजपा उन्हें राज्य में विधानसभा चुनाव साथ लड़ने के बाद हटाने के लिए इच्छुक नहीं है, जैसा कि मुख्य रूप से महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति के कारण व्यापक रूप से माना जा रहा है.

भाजपा की मुख्य चिंता यह है कि खराब कानून व्यवस्था के कारण नीतीश कुमार का ग्राफ गिर रहा है. बिहार में उनकी शराबबंदी की नीति के कारण कानून व्यवस्था का मुद्दा काफी हद तक उभरा, क्योंकि पुलिस और नौकरशाही ने अपने खेल खेले. भाजपा भी ‘बिहार में शराबबंदी’ के मुद्दे पर विपरीत दृष्टिकोण नहीं रख सकती.

नीतीश कुमार इस मुद्दे से अवगत हैं और इसी कारण से उन्होंने महिला संवाद यात्रा शुरू की है. लेकिन उनके सलाहकार और शुभचिंतक चिंतित हैं क्योंकि कानून प्रवर्तन एजेंसियां चंपारण से रोजाना हजारों लीटर अवैध शराब जब्त कर रही हैं. यह सर्वविदित है कि 2016 में लागू शराबबंदी राज्य में विफल रही है, लेकिन नीतीश का मानना है कि शराबबंदी सफल रही है और महिलाओं की मांग के कारण शराब पर प्रतिबंध लगाया गया है. उनका दौरा महिलाओं पर केंद्रित रहने वाला है और वे शराबबंदी को महिलाओं के सामने सफलता के रूप में पेश कर सकते हैं.

आखिर वे वही नीतीश कुमार हैं जिन्होंने बिहार को ‘जंगल राज’ से निकाला था. लेकिन भाजपा इससे प्रभावित नहीं है और नया फॉर्मूला तैयार करने की तैयारी में है. भाजपा आलाकमान ने पार्टी नेताओं को निर्देश जारी किए हैं कि वे सहयोगियों के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी से बचें.

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