ब्लॉग: राजनीतिक माहौल पलट दिया है भाजपा ने...क्या बिहार में भी होगा महाराष्ट्र वाला खेल?

By राजेश बादल | Published: July 12, 2023 07:47 AM2023-07-12T07:47:58+5:302023-07-12T07:49:30+5:30

महाराष्ट्र और बिहार उन राज्यों में आते हैं जिनकी पार्टी-प्रणाली टुकड़ों-टुकड़ों में बंटी हुई है. यहां भाजपा ने दिखाया है कि वह न केवल छोटे-छोटे टुकड़ों की राजनीतिक निष्ठाओं को प्रभावित कर सकती है, बल्कि बड़े दलों का नक्शा भी बिगाड़ने की क्षमता रखती है.

BJP changed political environment by breaking Sharad Pawar party in Maharashtra | ब्लॉग: राजनीतिक माहौल पलट दिया है भाजपा ने...क्या बिहार में भी होगा महाराष्ट्र वाला खेल?

ब्लॉग: राजनीतिक माहौल पलट दिया है भाजपा ने...क्या बिहार में भी होगा महाराष्ट्र वाला खेल?

मेरा विचार है कि शरद  पवार की पार्टी को तोड़ कर भाजपा ने उसी तरह से राजनीतिक माहौल को पलट दिया है जिस तरह कभी नीतीश कुमार ने रातोंरात तेजस्वी के साथ मिलकर भाजपा के खेमे में परले दर्जे की बेचैनियां पैदा कर दी थीं. बिहार और महाराष्ट्र को मिला कर लोकसभा की 88 सीटें होती हैं. इन सीटों के एक बड़े हिस्से के हाथ से निकल जाने का अंदेशा कोई छोटा-मोटा नहीं था. 

इसलिए भाजपा ने इन दोनों प्रांतों में उन ताकतों को तोड़ने की योजना बनाई जो या तो गठजोड़ के नेतृत्व से नाखुश थीं, या जिनके भीतर  पहले से अंतर्विरोध चले आ रहे थे.  पहली श्रेणी में बिहार की छोटी पार्टियां आती थीं, और दूसरी श्रेणी महाराष्ट्र की बड़ी पार्टियों से बनती है. 

जनता दल (एकीकृत) के राष्ट्रीय जनता दल से मिलने के कारण ही महादलितों और अति पिछड़ों के राजनीतिक नुमाइंदों को लगने लगा था कि तेजस्वी को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने वाले नीतीश कुमार अब पहले वाले नीतीश नहीं रह गए हैं जिन्हें कमजोर जातियों का चैंपियन समझा जाता था. 

उधर महाराष्ट्र में पहले शिवसेना और बाद में राष्ट्रवादी कांग्रेस के भीतर ऐसे तत्वों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी जो कांग्रेस के बजाय भाजपा के साथ गठजोड़ को अधिक लाभकारी मान रहे थे. शिवसेना तो भाजपा की सबसे पुरानी और वैचारिक रूप से स्वाभाविक सहयोगी थी ही, राष्ट्रवादी कांग्रेस का पवार से असंतुष्ट नेतृत्व देख चुका था कि 2019 में किस तरह से ‘साहब’ ने भाजपा सरकार को अपनी तरफ से बिना मांगे समर्थन देने का प्रस्ताव रख दिया था.

चुनावी राजनीति की गहरी समझ रखने वाली वरिष्ठ  पत्रकार नीरजा चौधरी पिछले दिनों जब महाराष्ट्र की यात्रा करके लौटीं तो उन्होंने मुझे एक निजी बातचीत में बताया कि वहां देहात के किसी किसान से पूछो या मंत्रालय (राज्य सरकार का मुख्यालय) के किसी अफसर से, सभी यही कहते हैं कि अगर अभी चुनाव हो जाए तो महाविकास आघाड़ी (कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिवसेना का गठजोड़) को ही चुनाव में जीत मिलेगी. 

जाहिर है कि अगर आज की परिस्थिति में इस तरह का अनौपचारिक जायजा लिया जाए तो आघाड़ी के पक्ष में इस तरह की बातें करने से पहले लोग दो बार सोचेंगे. कारण साफ है. भाजपा ने आघाड़ी की दो बड़ी पार्टियों की ताकत अगर आधी नहीं तो कम-से-कम चालीस फीसदी कम कर दी है. 

समझा जा रहा है कि भाजपा ऐसा कारनामा बिहार में भी करेगी. वहां वह नीतीश कुमार के जनता दल (एकीकृत) के भीतर  पनप  रहे असंतोष का लाभ उठा कर उसे विभाजित करने की योजना बनाने की जुर्रत कर सकती है.

महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस को विभाजित करके भारतीय जनता पार्टी ने एक ऐसा धमाका किया है जिससे कुछ लोगों की नींद टूट गई है. ये लोग यह सोच कर चैन की नींद सो रहे थे कि 48 लोकसभा सीटों वाले इस प्रदेश में महाविकास आघाड़ी भारतीय जनता पार्टी वाले सत्तारूढ़ गठजोड़ से आगे है और लोकसभा चुनाव तक यही स्थिति रहने वाली है. 

इस धमाके का एक असर यह भी हुआ है कि वे चौंक कर महाराष्ट्र के साथ-साथ बिहार की राजनीति के घटनाक्रम के प्रति सतर्क हो गए हैं. महाराष्ट्र में अचानक शरद पवार की हैसियत घट जाने की हकीकत ने उन्हें याद दिला दिया है कि कुछ दिन  पहले ही भाजपा ने बिहार के भाजपा विरोधी महागठबंधन से जीतन राम मांझी की पार्टी को खींच लिया था. साथ में उन्हें यह भी याद आ गया है कि मांझी से पहले भाजपा नीतीश-तेजस्वी-कांग्रेस के गठबंधन से उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ मिला चुकी है.

ध्यान देने की बात यह है कि महाराष्ट्र और बिहार उन राज्यों में आते हैं जिनकी पार्टी-प्रणाली टुकड़ों-टुकड़ों में बंटी हुई है. यहां भाजपा ने दिखाया है कि वह न केवल छोटे-छोटे टुकड़ों की राजनीतिक निष्ठाओं को प्रभावित कर सकती है, बल्कि बड़े दलों का नक्शा भी बिगाड़ने की क्षमता रखती है. लेकिन भाजपा को अभी एक और बड़ा मोर्चा सर करना है. यह है उन प्रदेशों का जहां पार्टी-प्रणाली कई टुकड़ों में विभाजित नहीं है. गुजरात (26), छत्तीसगढ़ (11), कर्नाटक (28), हिमाचल प्रदेश (4), राजस्थान (25) और मध्य प्रदेश (29) ऐसे ही राज्य हैं. यहां 123 सीटों पर कमोबेश लड़ाई या तो सीधे-सीधे भाजपा और कांग्रेस के बीच है, या धीरे-धीरे ऐसी स्थिति बनती जा रही है. 

भाजपा केवल गुजरात को लेकर ही यहां आश्वस्त हो सकती है. बाकी सभी जगहों पर वह विधानसभा की राजनीति में 2019 के पहले से ही कांग्रेस से पिट रही है. पिछले लोकसभा चुनाव में पुलवामा के आतंकवादी हमले के जवाब में की गई बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक का लाभ मिलने और उसके साथ-साथ कई स्थानीय पहलुओं के चलते भाजपा ने इन राज्यों में अभूतपूर्व सफलता हासिल की थी. तो क्या उसे इसी इतिहास पर भरोसा करके बैठे रहना चाहिए? 

अगर भाजपा राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से सत्ता नहीं छीन पाई, और मध्य प्रदेश में अपनी सत्ता छिनवा बैठी, तो इसका खामियाजा उसे लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है. इन प्रदेशों में उसकी कुछ सीटें कम हो सकती हैं. हो सकता है कि भाजपा के रणनीतिक आक्रमण का दूसरा चरण उसके विरोधियों को एक बार फिर अचरज में डाल दे.

Web Title: BJP changed political environment by breaking Sharad Pawar party in Maharashtra

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